वैज्ञानिक पद्धति किसे कहते हैं, यह क्या है, इसकी सहायता से अध्ययन कैसे किया जाता है?

साधारणतः उस पद्धति को वैज्ञानिक पद्धति कहा जाता है जिसमें अध्ययनकर्ता तटस्थ या निष्पक्ष रहकर किसी विषय, समस्या या घटना का अध्ययन करता है। इस हेतु वह अवलोकन करता है, प्रश्नावली, अनुसूची या किसी अन्य प्रविधि की सहायता से तथ्य संकलित करता है, उनका वर्गीकरण एवं सारणीयन करता है, विश्लेषण एवं व्याख्या करता है, कार्य-कारण संबंधों का पता लगाता है, सामान्यीकरण करता है, वैज्ञानिक निष्कर्ष निकालता और नियमों व सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है, उनका सत्यापन करता है। इससे उसकी पूर्वानुमान या भविष्यवाणी करने की क्षमता बढ़ जाती है।

वैज्ञानिक पद्धति के अर्थ के संबंध में लुंडबर्ग ने लिखा है, व्यापक अर्थ में वैज्ञानिक पद्धति तथ्यों के व्यवस्थित अवलोकन, वर्गीकरण तथा व्याख्या निर्वाचन से निर्मित है। इसे अन्य शब्दों में स्पष्ट करते हुए आपने अन्यत्र लिखा है, समाज-वैज्ञानिकों में यह दृढ़ विश्वास पाया जाता है कि उनके सम्मुख जो समस्याएँ हैं, उनका समाधान सामाजिक घटनाओं के बुद्धिमत्तापूर्ण और व्यवस्थित अवलोकन, सत्यापन, वर्गीकरण तथा विश्लेषण द्वारा ही संभव है। अपने यथार्थ (परिशुद्ध) स्वरूप में इसी उपागम को वैज्ञानिक पद्धति कहते हैं।

बवुल्फ ने लिखा है, व्यापक अर्थों में कोई भी अनुसंधान विधि जिसके द्वारा विज्ञान की रचना और विस्तार होता है, वैज्ञानिक-पद्धति कहलाती है।


एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में लिखा है, वैज्ञानिक पद्धति एक सामूहिक शब्द है जो उन अनेक प्रक्रियाओं को व्यक्त करता है जिनकी सहायता से विज्ञानों का निर्माण होता है। व्यापक अर्थ में, अन्वेषण की कोई भी पद्धति जिसकी सहायता से वैज्ञानिक या अन्य निष्पक्ष तथा व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त किया जाता है वैज्ञानिक पद्धति कहलाती है। स्पष्ट है कि वैज्ञानिक पद्धति का संबंध व्यवस्थित ढंग से ज्ञान के संचय से है। इस पद्धति की सहायता से संचित ज्ञान के आधार पर ही कोई विषय विज्ञान का रूप ग्रहण करता है।

वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताएँ

वैज्ञानिक पद्धति की प्रमुख विशेषताएँ हैंः

1. ज्ञान का आधार वैज्ञानिक पद्धति है-मूर्त और अमूर्त सामाजिक तथ्यों के अध्ययन के लिए समाज-विज्ञान विभिन्न वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के रूप में, ज्ञान प्राप्त करने या तथ्य एकत्रित करने हेतु समाजमिति अवलोकन पद्धति, अनुसूची अथवा प्रश्नावली पद्धति, सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति, वैयक्तिक जीवन अध्ययन पद्धति, सांख्यिकीय पद्धति, साक्षात्कार पद्धति, ऐतिहासिक पद्धति आदि का प्रयोग किया जाता है। इनमें से एकाधिक पद्धतियों को काम में लेते हुए सामाजिक घटनाओं का अध्ययन किया जाता है।

2. अवलोकन द्वारा तथ्यों को एकत्रित किया जाता है-वैज्ञानिक पद्धति के अंतर्गत तथ्यों के संकलन हेतु अनुसंधानकर्ता प्रत्यक्ष निरीक्षण और अवलोकन करता है। इसमें काल्पनिक या दार्शनिक विचारों को कोई स्थान नहीं दिया जाता। इसमें तो अध्ययनकर्ता स्वयं घटनास्थल पर पहुँचकर घटनाओं का निरीक्षण और तथ्यों का संकलन करता है। यदि समाज-वैज्ञानिक को बाल-अपराध अथवा वेश्यावृत्ति की समस्या का अध्ययन करना है या भीड़ व्यवहार के संबंध में जानकारी प्राप्त करनी है तो वह इनसे संबंधित तथ्यों को स्वयं घटनाओं का अवलोकन करते हुए एकत्रित करेगा।

3. तथ्यों का वर्गीकरण एवं विश्लेषण किया जाता है-असंबद्ध या बिखरे हुए आंकड़ों या तथ्यों के आधार पर कोई वैज्ञानिक निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है। सही निष्कर्ष निकालने के लिए यह आवश्यक है कि प्राप्त तथ्यों को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध किया जाए। इसके लिए तथ्यों को समानता के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँटा जाता है। यह कार्य वर्गीकरण के अंतर्गत आता है। इसके पश्चात तथ्यों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया जाता है। किसी भी विषय को विज्ञान मानने का प्रमुख कारण यह है कि उसमें सही निष्कर्षों तक पहुँचने के लिए तथ्यों का वर्गीकरण एवं विश्लेषण किया जाता है।

4. ‘क्या है’ का उल्लेख किया जाता है-वैज्ञानिक पद्धति के अंतर्गत वास्तविक घटनाओं की विवेचना की जाती है। कोई भी विज्ञान इस बात पर विचार नहीं करता कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है अथवा क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए। वह तो घटनाओं या तथ्यों का यथार्थ चित्रण करता है। वे जिस रूप में हैं उनका ठीक वैसा ही चित्रण करता है, ‘क्या है’ का ही उल्लेख करता है। उदाहरण के रूप में, विज्ञान तो संयुक्त परिवार प्रथा या जाति-व्यवस्था का प्राप्त तथ्यों के आधार पर ठीक उसी रूप में उल्लेख करता है जिस रूप में वे हैं, न कि यह बताने का प्रयत्न कि वे अच्छी हैं या बुरी।

5. कार्य-कारण संबंधों की विवेचना की जाती है-वैज्ञानिक पद्धति के अंतर्गत घटनाओं, तथ्यों और विभिन्न समस्याओं के कार्य-कारण संबंधों को जानने का प्रयत्न किया जाता है। विज्ञान तो किसी घटना या समस्या के पीछे छिपे कारणों की खोज करता है। वह तो यह मानकर चलता है कि कोई भी घटना जादुई चमत्कार से घटित नहीं होकर वुफछ विशिष्ट कारणों से घटित होती है जिनका पता लगाना वैज्ञानिक का दायित्व है। कार्ल माक्र्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत एवं दुर्खीम का आत्महत्या का सिद्धांत कार्य-कारण के सह-संबंध को स्पष्ट करते हैं।

6. सिद्धांतों की स्थापना की जाती है-वैज्ञानिक पद्धति की सहायता से कार्य-कारण संबंधों की विवेचना की जाती है, तथ्यों या घटनाओं के पारस्परिक संबंध ज्ञात किए जाते हैं। वर्गीकरण या विश्लेषण किया जाता है और तत्पश्चात सामान्य निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इन निष्कर्षों के आधार पर ही सिद्धांत या वैज्ञानिक नियम बनाये जाते हैं।

7. सिद्धांतों की पुनर्परीक्षा संभव है-समाज-विज्ञान भी भौतिकशास्त्र या रसायनशास्त्र के समान अपने सिद्धांतों या नियमों की परीक्षा एवं पुनर्परीक्षा करने में सक्षम है। इनमें वैज्ञानिक पद्धति की सहायता से तथ्य एकत्रित किए जाते हैं और इस पद्धति से प्राप्त तथ्यों की प्रमुख विशेषता यह है कि इनकी प्रामाणिकता की जाँच की जा सकती है। समाज-विज्ञानों में सिद्धांतों की जाँच करना वास्तव में संभव है। 

उदाहरण के रूप में, तथ्यों के आधार पर प्राप्त इस निष्कर्ष कि टूटे परिवार बाल-अपराध के लिए काफी सीमा तक उत्तरदायी हैं, अलग-अलग स्थानों पर परीक्षा और पुनर्परीक्षा की जा सकती है।

8. सिद्धांत सार्वभौमिक हैं-समाज-विज्ञान वैज्ञानिक पद्धति को काम में लेते हुए जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हैं, वे सार्वभौमिक प्रकृति के होते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि यदि परिस्थितियाँ समान रहें तो समाज विज्ञानों में विकसित सिद्धांत विभिन्न समाजों और कालों में खरे उतरते हैं। उदाहरण के रूप में, यह सिद्धांत सार्वभौमिक रूप से ठीक पाया गया है कि पारिवारिक विघटन सामाजिक विघटन पर आधारित है।

9. भविष्यवाणी करने की क्षमता है-कोई भी विषय इस कारण विज्ञान माना जाता है कि वह ‘क्या है’ के आधार पर ‘क्या होगा’ बताने में अर्थात् भविष्यवाणी करने में समर्थ है। अन्य शब्दांे में, वैज्ञानिक पद्धति की सहायता से संचित ज्ञान-भंडार के आधार पर भविष्य की ओर संकेत करने की प्रत्येक विज्ञान की क्षमता है। उदाहरण के रूप में, समाज में वर्तमान में होने वाले परिवर्तन को ध्यान में रखकर समाजशास्त्र यह बता सकता है कि भविष्य में सामाजिक व्यवस्था का रूप क्या होगा, जाति-व्यवस्था किस रूप में रहेगी तथा परिवारों के कौन से प्रकार विशेष रूप से पाए जाएंगे। समाजशास्त्र के मौजूदा ज्ञान के आधार पर कहा जा सकता है कि प्राकृतिक विज्ञानों के समान यह भी भविष्यवाणी करने में काफी सीमा तक समर्थ है।

10. तर्क की प्रधानता-वैज्ञानिक पद्धति की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह तर्क पर आधारित है। तर्क तथ्य और विवेक से जुड़ा हुआ है। किसी बात को बुद्धिमत्ता पूर्वक, प्रमाणित या अप्रमाणित किया जा सकता है, इसके लिए तर्क देना आवश्यक होता है, साथ ही आवश्यकतानुसार तथ्य भी दिए जाते हैं। वैज्ञानिक पद्धति के अंतर्गत सर्वप्रथम तथ्यों के संकलन के लिए ऐसी पद्धतियों एवं उपकरणों के चुनाव पर जोर दिया जाता है जो तर्कसंगत हों, तार्किकता पर आधारित हों। साथ ही इस पद्धति के अंतर्गत संकलित तथ्यों का विश्लेषण भी तार्किकता के आधार पर किया जाता है। इस पद्धति की सहायता से वैज्ञानिक निष्कर्षों के प्रस्तुतीकरण में भी तर्क का सहारा लिया जाता है। 

वैज्ञानिक पद्धति में यद्यपि अनुभवसिद्ध प्रमाणों या तथ्यों पर जोर दिया जाता है लेकिन तार्किकता के आधार पर जो बात मालूम पड़ती है, यथार्थ जान पड़ती है, उसे भी स्वीकार कर लिया जाता है। यदि कहा जाए कि वैज्ञानिक पद्धति का आधार ही तर्क या तार्किकता है तो इसमें किसी भी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है।

11. वस्तुनिष्ठता-वैज्ञानिक पद्धति में वस्तुनिष्ठता पर विशेष बल दिया जाता है। बिना वस्तुनिष्ठता के वैज्ञानिक निष्कर्ष निकालना किसी भी रूप में संभव नहीं है। वस्तुनिष्ठता का तात्पर्य है-घटनाओं का अध्ययन ठीक उसी रूप में करना जिस रूप में वे हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग करते हुए अध्ययनकर्ता को प्रत्येक स्तर पर इस बात की विशेष सावधानी रखनी होती है कि उसके स्वयं के पूर्वाग्रहों, विचार, भावनाएँ, पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण अध्ययन में बाधक नहीं बन जाए। उसे तो पूर्णतः निष्पक्ष (वस्तुनिष्ठ) होकर तथ्यों या घटनाओं का यथार्थ चित्रण करना है, निष्कर्ष निकालने हैं, प्राक्कल्पना की सत्यता या असत्यता को प्रमाणित करना है।

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