वर्णनात्मक शोध क्या है वर्णनात्मक शोध की विशेषताएँ?

वर्णनात्मक शोध एक ऐसी शोध है जिसका उद्देश्य विषय या समस्या के संबंध में यथार्थ या वास्तविक तथ्यों को एकत्रित कर उनके आधार पर एक विवरण प्रस्तुत करना है। सामाजिक जीवन से संबंधित कई पक्ष ऐसे होते हैं जिनके संबंध में भूतकाल में कोई गहन अध्ययन नहीं किए गए। ऐसी दशा में यह आवश्यक हो जाता है कि सामाजिक जीवन से संबद्ध विभिन्न पक्षों के संबंध में जानकारी प्राप्त की जाए, वास्तविक तथ्य या सूचनाएँ एकत्रित की जाए और उन्हें जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया जाए। 

यहाँ मुख्य जोर इस बात पर दिया जाता है कि विषय से संबंधित एकत्रित किए गए तथ्य वास्तविक एवं विश्वसनीय हों अन्यथा जो वर्णनात्मक विवरण प्रस्तुत किया जाएगा, वह वैज्ञानिक होने के बजाय दार्शनिक ही होगा। यदि हमें किसी जाति, समूह या समुदाय के सामाजिक जीवन के संबंध में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है तो हमारे लिए आवश्यक है कि किसी वैज्ञानिक प्रविधि को काम में लेते हुए वास्तविक तथ्य एकत्रित किए जाए। 

तथ्यों को प्राप्त करने हेतु अवलोकन, साक्षात्कार, अनुसूची, प्रश्नावली अथवा किसी अन्य प्रविधि का प्रयोग किया जा सकता है।

वर्णनात्मक शोध की विशेषताएँ

वर्णनात्मक शोध की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं-
  1. इस प्रकार की शोध (अनुसंधान) में विषय या समस्या के विभिन्न पक्षों पर सविस्तार प्रकाश डाला जाता है।
  2. यदि किसी विषय से संबंधित कोई अध्ययन पूर्व में नहीं किया गया हो तो उसके अध्ययन के लिए वर्णनात्मक शोध को ज्यादा उपयुक्त समझा जाता है। 
  3. इस प्रकार के अध्ययन में सामान्यतः किसी प्राक्कल्पना का निर्माण नहीं किया जाता। 
  4. वर्णनात्मक शोध के विभिन्न चरण वैज्ञानिक विधि के चरणों के समान ही होते हैं। इसमें विषय का सावधानीपूर्वक चुनाव, उचित प्रविधियों का प्रयोग, निदर्शन-प्रणाली द्वारा उत्तरदाताओं का चयन, वास्तविक तथ्यों का संकलन तथा पक्षपात-रहित होकर परिणामों का विश्लेषण करना आदि बातें आती हैं। 
  5. वर्णनात्मक अनुसंधान में शोधकर्ता की भूमिका एक समाज-सुधारक या भविष्य वक्ता के रूप में नहीं होकर एक वैज्ञानिक अर्थात् निष्पक्ष अवलोकन-कर्ता के रूप में होती है। 
शोध कार्य में ध्यान देने योग्य बातें वर्णनात्मक शोध में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक हैः 
  1. शोध विषय या समस्या का चुनाव सावधानीपूर्वक इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि उससे संबद्ध सभी आवश्यक एवं निर्भर-योग्य तथ्य एकत्रित किए जा सके। 
  2. शोध-कार्य को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने के लिए आवश्यक है कि तथ्यों के संकलन के लिए प्रविधियों का चुनाव पूर्ण सावधानी के साथ किया जाए। 
  3. वर्णनात्मक शोध में वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण बनाए रखने की अत्यंत आवश्यकता है। इसका कारण यह है कि पक्षपात, मिथ्या झुकाव एवं पूर्वधारणा आदि के अध्ययन में प्रवेश कर जाने की काफी संभावना रहती है। अपने अध्ययन-विवरण को वस्तुनिष्ठता की कीमत पर रोचक बनाने के लोभ से शोधकर्ता को अपने आपको बचाना चाहिए। 
  4. वर्णनात्मक शोध-कार्य काफी विस्तृत होता है, अतः उसे समयबद्ध एवं व्यय में मितव्ययतापूर्ण होना आवश्यक है। ऐसे अध्ययन में समय एवं धन की काफी आवश्यकता पड़ती है। अतः इस बात की सावधानी रखी जानी चाहिए कि अनावश्यक मदों पर श्रम, समय एवं धन को नष्ट नहीं किया जाए। 

वर्णनात्मक शोध-कार्य के चरण 

वर्णनात्मक शोध-कार्य के सफलतापूर्वक संचालन के लिए इन चरणों से गुजरना आवश्यक होता है- 

1. शोध के उद्देश्यों का प्रतिपादन - सर्वप्रथम शोध के उद्देश्यों को निर्धारित किया जाता है, तत्पश्चात् उद्देश्यों को स्पष्टतः परिभाषित किया जाता है। यहाँ शोध से संबद्ध मौलिक प्रश्नों को स्पष्ट किया जाता है। ऐसा करने से अनावश्यक तथ्यों के संकलन एवं धन व श्रम की बर्बादी को रोका जा सकता है। 

2. तथ्य-संकलन की प्रविधियों का चुनाव - तथ्य-संकलन की विभिन्न प्रविधियों में से विषय या समस्या की प्रकृति के अनुरूप उपयुक्त प्रविधि का चुनाव शोध-कर्ता को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने की दृष्टि से नितांत आवश्यक है। इसके अभाव में विषय से संबद्ध प्रामाणिक तथ्यों एवं आंकड़ों को एकत्रित नहीं किया जा सकता। 

3. निदर्शन का चुनाव - समूह या समग्र की प्रत्येक इकाई का समय एवं साधनों की सीमितता के कारण अध्ययन किया जाना संभव नहीं होता। अतः संपूर्ण जनसंख्या में से निदर्शन की किसी उपयुक्त विधि की सहायता से कुछ प्रतिनिधि इकाइयों का चुनाव कर लिया जाता है। इन इकाइयों का अध्ययन कर जो निष्कर्ष निकाले जाते हैं, वे संपूर्ण जनसंख्या पर लागू होते हैं तथा साथ ही काफी विश्वसनीय भी होते हैं। 

4. आंकड़ों का संकलन एवं उनकी जाँच - अध्ययन की इकाइयों का किसी निदर्शन-पद्धति द्वारा चुनाव कर लेने के पश्चात वैज्ञानिक प्रविधियों अर्थात् अवलोकन, साक्षात्कार, अनुसूची अथवा प्रश्नावली का सहारा लेते हुए आवश्यक तथ्य एकत्रित किए जाते हैं। साथ ही उचित रीति से इन तथ्यों की जाँच भी की जाती है ताकि अध्ययन में अनावश्यक बातें सम्मिलित नहीं हो सके। 

5. तथ्यों का विश्लेषण - इसका तात्पर्य यह है कि जिन तथ्यों को संकलित किया गया है, उनका समानता एवं भिन्नता के आधार पर अलग-अलग समूहों में वर्गीकरण किया जाता है, उनका सारणीयन किया जाता है। साथ ही तथ्यों की सांख्यिकीय विवेचना भी की जाती है। इस कार्य हेतु वस्तुनिष्ठ एवं प्रशिक्षित अध्ययनकर्ता का होना परम आवश्यक है। 

6. प्रतिवेदन (रिपोर्ट) का प्रस्तुतीकरण -यहाँ अध्ययन विषय के संबंध में तथ्य-युक्त विवरण एवं सामान्य निष्कर्ष प्रस्तुत किए जाते हैं। यहाँ इस प्रकार की भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए कि लोग उसका भिन्न-भिन्न अर्थ नहीं लगा सके।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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