हिंदी में विराम चिन्ह कौन कौन से हैं?

शब्दों और वाक्यों का परस्पर सम्बन्ध बताने तथा किसी विषय को भिन्न-भिन्न भागों में बाँटने और पढ़ने में यथा स्थान रुकने के लिए लेखन में जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें विराम चिन्ह  कहते हैं”।

पढ़ते समय गति, प्रवाह व स्पष्टता लाने हेतु कुछ नियमों का पालन किया जाता है, अगर हम उन नियमों का पालन ना करें तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। हमें कब, कहां, और कैसे बोलना है ताकि हमारी भाषा व मनोभाव व विचार ठीक तरह से सम्प्रेषणीय हो इसके लिए विराम चिन्हों का प्रयोग करना पड़ता हैं यथा-हम किसी को रोके रखना चाहते हैं परन्तु उच्चारित ऐसे करते हैं, रोको मत, जाने दो ठीक उच्चारित करने के लिए रोको, मत जाने दो ऊपर वाला वाक्य अर्थ को अनर्थ कर रहा है।

बोलते, पढ़ते या लिखते समय हमें रुकने की आवश्यकता होती है- कभी श्वास लेने के लिए तो कभी अर्थ बोध के लिए। इस रूकने को विराम कहते हैं। अर्थ बोध के लिए जहाँ हम रुकते हैं वहां विराम-चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। विराम-चिन्हों के प्रयोग से अर्थ में स्पष्टता आती है, उच्चारण में सुविधा मिलती है। हिन्दी भाषा में इन विराम चिन्हों का प्रयोग किया जाता है।

विराम चिन्ह के प्रकार

हिन्दी में प्रचलित विराम चिह्न हैं:
  1. पूर्ण विराम (।)
  2. अल्प विराम (,)
  3. अर्द्ध विराम (;)
  4. प्रश्न सूचक चिह्न (?)
  5. विस्मयादि सूचक या बोधक चिह्न (!)
  6. अवतरण या उद्धरण चिह्न (“)
  7. योजक या विभाजक चिह्न (.)
  8. निर्देशक (डैश) (-)
  9. कोष्ठक ( )
  10. हंसपद ( ्र)

1. पूर्ण विराम (।) - प्रत्येक वाक्य की समाप्ति पर पूर्ण विराम ( । ) लगाया जाता है- यथा ‘श्याम दिल्ली जाता है।’


2. अल्पविराम (,) -  जहाँ भावभिव्यक्ति करते समय बहुत कम रुकना पड़ता है, वहाँ अल्प विराम ( , ) लगाया जाता है। यह चिह्न वाक्य के बीच में लगता है। यह न्यूनतम विराम का द्योतक है। इसका प्रयोग अधिक होता है।

3. अर्द्ध विराम (;) - जहाँ अल्पविराम से अधिक और पूर्ण विराम से कम रुकना पड़े वहाँ अर्द्ध विराम ( ; ) का प्रयोग होता है। इसका प्रयोग उदाहरण सूचक ‘जैसे’ शब्द से पूर्व प्राय: किया जाता है- “कोई शब्द व्यक्ति, वस्तु या स्थान आदि का बोध कराए उसे संज्ञा कहते हैं; जैसे - राम, मोहन, पुस्तक, दिल्ली आदि।” 

सामान्यत: इसका प्रयोग इन स्थलों पर होता है:
  1. समानाधिकरण वाक्यों के मध्य में, जैसे - भारत में स्वतंत्रता संग्राम का शंख महात्मा गाँधी ने फूँका; अहिंसा और सत्याग्रह का आरंभ उन्होंने ही किया; अंग्रेजों के विरूद्ध बड़े-बड़े आन्दोलनों का नेतृत्व उन्होंने ही किया और अंततः उन्हें सफलता भी मिली।
  2. मिश्र और संयुक्त वाक्य में विपरीत अर्थ प्रकट करने वाले उपवाक्यों के बीच में, जैसे- लोग उसे गालियाँ देते; वह उन्हें अपना प्यार देता, लोग उस पर पत्थर फेंकते; वह उनके कल्याण के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता।
4. प्रश्न सूचक चिह्न (?) - यह विराम चिह्न प्रश्न सूचक वाक्य के अंत में प्रयुक्त होता है, जैसे - तुम कहाँ जा रहे हो? यदि एक ही वाक्य में छोटे-छोटे कई प्रश्न वाचक वाक्य हों तो पूरे वाक्य की समाप्ति पर हिन्दी के भाषिक तत्व ही प्रश्न सूचक चिह्न लगाया जाता है, जैसे - तुम कहाँ गए थे, कैसे आए और क्या चाहते हो? 

5. विस्मयादि सूचक या बोधक चिह्न (!) -  हर्ष, विषाद, घृणा, आश्चर्य, भय, चिन्ता प्रकट करने वाले वाक्यों या वाक्यांशों के अन्त में वाह! बहुत सुन्दर लड़की है। विस्मय: ऐ! वह फेल हो गया। किसी व्यक्ति विशेष को सम्बोधित किया जाता है, उसमें विस्मयादि बोधक! लगता है- सुनीता! इधर आओ! यह विराम चिह्न हर्ष, विशाद, घृणा, आश्चर्य, भय आदि सूचक शब्दों, पदबंधों तथा वाक्यों के अंत में लगता है, जैसे - आह! उसे बड़ी पीड़ा हो रही है (शब्द)। इतना ऊँचा महल! (पदबंध)! कितना रमणीक दृश्य है! (वाक्य)। संबोधन के लिए भी इसी चिह्न का प्रयोग किया जाता है, जैसे - साथियों! आज बलिदान का समय आ गया है।

6. अपूर्ण विराम (:) - किसी बात या उक्ति को अलग करके बताना हो तब अपूर्ण विराम ( : ) का चिन्ह लगाया जाता है- उदारणार्थ ‘किसी ने ठीक कहा है: ‘पराधीन सपनेहु सुख नाहीं।’

7. द्वि-बिन्दु रेखिका (:-) - किसी बात को समझाने के लिए क्या कोई उदाहरण देना हो तो द्वि-बिन्दु (:-) रेखिका का प्रयोग करते हैं। उदाहरणार्थ:- ‘जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता का बोध कराए, उसे विशेषण कहते हैं। जैसे:- कोयल काली है आम पीला है फूल लाल है

8. योजक या विभाजक चिह्न (.) - युग्म रूप में जिन शब्दों का प्रयोग हो यथा धीरे-धीरे, जल्दी-जल्दी जहाँ शब्दों को जोड़ा जाए यथा माता-पिता, भाई-बहन, राजा-प्रजा।

9. संक्षेपक (0) - किसी व्यक्ति, वस्तु या संगठन के नाम को संक्षेप में लिखने के लिए संक्षेपक ( 0 ) का प्रयोग होता है- यथा उत्तर प्रदेश-उ0 प्र0 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल-आ0 रा0 शु0 अटल बिहारी वाजपेयी-अ0वि0वा0

10. त्रुटिपूरक या हंस पद (^) - लिखते समय जब कोई पद छूट जाता है, तब उसके उचित स्थान यह चिन्ह (^) लगाकर छुटा हुआ अंश ऊपर लिख दिया जाता है यथा ‘रमा ने अपने भाई को पत्र लिखा।’

11. अवतरण या उद्धरण चिह्न (“) - लेखक या कवि का कथन उसी के शब्दों में उद्घृत करने में अवतरण चिन्ह (“ “) का प्रयोग होता है इसके दो रूप है -
  1. इकहरा उद्धरण चिह्न (’ ‘) और 
  2. दुहरा उद्धरण चिह्न (“ “)। 
1. इकहरे उद्धरण - इकहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग कवि या लेखक का उपनाम, पुस्तक या समाचारपत्रों के नाम लिखने में किया जाता है, जैसे - सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने ‘परिमल’ ग्रंथ की रचना की। ‘नंदन’ बच्चों की पत्रिका है। सूक्ति या कहावत को स्पष्ट करने के लिए, काव्य पंक्तियों और उपवाक्यों में, जैसे - उस बालक पर यह कहावत चरितार्थ होती है, ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’। तुलसीदास ने ठीक ही लिखा है ‘भय बिनु होई न प्रीति’। 

2. दुहरे अवतरण - दुहरे अवतरण चिह्न का प्रयोग लेखक या वक्ता के कथन को यथावत् उद्धृत करने में, जैसे - “सत्याग्रही के लिए आवश्यक है - सत्य और अहिंसा के प्रति दृढ़ निष्ठा” - महात्मा गाँधी। 

पंडित मदन मोहन मालवीय ने कहा था, “शिक्षार्थियों को अनुशासन में रहकर अध्ययन करना चाहिए।’’

12. निर्देशक (डैश) (-) यह चिह्न योजक या हाइफन से कुछ बड़ा होता है। इसका प्रयोग किसी उद्धरण या कथन के पहले अल्प विराम के स्थान पर, जैसे - शुक्ल जी का कथन है - “वैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है।” किसी वस्तुओं या कार्यों का विवरण देने में, जैसे - उनकी किसी से नहीं बनती - न मित्रों से और न घर के लोगों से। यह खाने-पीने की बहुत-सी चीजें ले आया - मिठाई, नमकीन, सेब आदि।

13. कोष्ठक ( ) - इस में वह सामग्री जो वाक्य का अंग नहीं होती एवं नाम इत्यादि को स्पष्ट करने के लिए कोष्ठक चिन्ह ( ) का प्रयोग किया जाता है। तथागत (भगवान बुद्ध) के उपदेश मानने योग्य है। बापू (महात्मा गांधी) ने सदैव सत्य व अहिंसा का पालन किया। 

Post a Comment

Previous Post Next Post