जाॅन स्टुअर्ट मिल (John Stuart Mill) का जन्म
लन्दन में 20 मई, सन् 1806 को हुआ था। उसके पिता जेम्स मिल एक प्रसिद्ध इतिहासकार एवं उपयोगितावादी
विचारक थे। जाॅन के पिता अपने पुत्र को एक तेजस्वी विद्वान बनाना चाहते थे। अपने बच्चों की शिक्षा के बारे में उनके विचार कुछ विलक्षण ही थे। उनका कहना था कि स्कूल
में बच्चों की पढ़ाई ठीक तरह नहीं हो सकती। यदि बच्चों को प्रतिभावन बनाना है तो उन्हें अपने ढंग से घर पर
ही पढ़ाया जाये। जाॅन को उसके पिता घर पर ही कठोर, किन्तु शुष्क वातावरण में पढ़ाया करते थे। इसका परिणाम
यह हुआ कि तीन वर्ष की अवस्था में ही उसे ग्रीक भाषा की शिक्षा दी गयी और आठ वर्ष की आयु में उसे गणित
और अंग्रेजी की उच्च शिक्षा मिलने लगी। बचपन में जब खेलने-कूदने के दिन होते हैं, मिल ने प्लेटो, हेरोडोटस,
जेनोफन और ल्युशियन का अध्ययन पूरा कर लिया था। साथ-ही-साथ उसने लेटिन भाषा भी सीख ली।
सन् 1852 में श्रीमती टेलर का निधन हो गया। वह पुनः किताबों की दुनिया में खो गया। एक विद्वान और विचारक के रूप में उसे अब अपूर्व यश प्राप्त हो चुका था। उसकी लोकप्रियता का लाभ उठाने में राजनीतिक दल भी पीछे नहीं थे। सन् 1866 में वेस्टमिंस्टर क्षेत्र से उसे काॅमन सभा का चुनाव लड़ाया गया। उसने संसद में महिला मताधिकार, अल्पमत प्रतिनिधित्व तथा खुले मतदान का प्रबल समर्थन किया। उसके भाषणों को सुनकर प्रधानमन्त्राी ग्लेडस्टन ने कहा था, फ्जाॅन मिल जब भाषण दे रहे थे, तो मेरे दिमाग में बार-बार यह भावना जागृत हो रही थी, जैसे मैं किसी सन्त की बात सुन रहा हूं। रूढि़वादी अंग्रेजों को उसके प्रगतिशील विचार पसन्द नहीं आये और जब तीन वर्ष बाद काॅमन सभा के पुनः चुनाव हुए तो वह हार गया।
वे बार-बार आठ वर्ष के मिल के हाथों में प्लेटो के
संवाद’ थमा देते थे। कभी ‘रिपब्लिक’, कभी ‘लाॅज’ और कभी अरस्तू की ‘लाॅजिक’ उसके हाथ में देकर कहते,
इन्हें पढ़ो। आठ वर्ष के जाॅन को प्लेटो के संवादों के बहुत से अंश याद हो गये थे। उसने तर्कशास्त्र, राजनीति,
मनोविज्ञान, रसायन विज्ञान और अर्थशास्त्र का गहरा अध्ययन किया। एकान्तप्रिय मिल अध्ययन में इस तरह निमग्न
रहता कि यदि कोई उससे मिलने आता तो वह उसे या तो अपना शत्रु समझता या अपरिचित। सरस्वती की इस
कठोर आराधना का मिल को मूल्य चुकाना पड़ा वह युवावस्था में ही बूढ़ा होने लगा। वह एक अजीब थकावट,
उदासी और मानसिक तनाव का शिकार होने लगा।
उसका मन बहलाने के लिए उसके पिता ने उसे फ्रांस भेज दिया। जहां वह जेरेमी बेन्थम के भाई सर सेमुअल बेन्थम के पास रहा। फ्रांस में मिल नदियों के किनारों, सागर के तटों और पहाड़ों की वादियों में घूमता रहा। पहली बार उसने जीवन में प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा को निहारा, उसे वनस्पति शास्त्र और प्राणी शास्त्र के अध्ययन में दिलचस्पी उत्पन्न हुई। फ्रांस के प्राकृतिक सौन्दर्य और ताजी हवा के झोंकों ने उसके रुग्ण मन में एक नयी मस्ती बिखेर दी। इंगलैण्ड वापस लौटने पर मिल फिर किताबों की दुनिया में खो गया। उसे इन्हीं दिनों बेन्थम की पुस्तक ‘कानून के सिद्धांत’ पढ़ने को मिली।
उसका मन बहलाने के लिए उसके पिता ने उसे फ्रांस भेज दिया। जहां वह जेरेमी बेन्थम के भाई सर सेमुअल बेन्थम के पास रहा। फ्रांस में मिल नदियों के किनारों, सागर के तटों और पहाड़ों की वादियों में घूमता रहा। पहली बार उसने जीवन में प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा को निहारा, उसे वनस्पति शास्त्र और प्राणी शास्त्र के अध्ययन में दिलचस्पी उत्पन्न हुई। फ्रांस के प्राकृतिक सौन्दर्य और ताजी हवा के झोंकों ने उसके रुग्ण मन में एक नयी मस्ती बिखेर दी। इंगलैण्ड वापस लौटने पर मिल फिर किताबों की दुनिया में खो गया। उसे इन्हीं दिनों बेन्थम की पुस्तक ‘कानून के सिद्धांत’ पढ़ने को मिली।
सन् 1830 में मिल का परिचय एक अत्यन्त प्रतिभाशालिनी एवं मेधावी सुन्दरी
श्रीमती हेरियट टेलर नामक उच्च वर्गीय महिला से होना। श्रीमती टेलर के संपर्क से मिल के बौद्धिक संकट का
अन्त हो गया। उसने टेलर से विवाह कर लिया।
सन् 1852 में श्रीमती टेलर का निधन हो गया। वह पुनः किताबों की दुनिया में खो गया। एक विद्वान और विचारक के रूप में उसे अब अपूर्व यश प्राप्त हो चुका था। उसकी लोकप्रियता का लाभ उठाने में राजनीतिक दल भी पीछे नहीं थे। सन् 1866 में वेस्टमिंस्टर क्षेत्र से उसे काॅमन सभा का चुनाव लड़ाया गया। उसने संसद में महिला मताधिकार, अल्पमत प्रतिनिधित्व तथा खुले मतदान का प्रबल समर्थन किया। उसके भाषणों को सुनकर प्रधानमन्त्राी ग्लेडस्टन ने कहा था, फ्जाॅन मिल जब भाषण दे रहे थे, तो मेरे दिमाग में बार-बार यह भावना जागृत हो रही थी, जैसे मैं किसी सन्त की बात सुन रहा हूं। रूढि़वादी अंग्रेजों को उसके प्रगतिशील विचार पसन्द नहीं आये और जब तीन वर्ष बाद काॅमन सभा के पुनः चुनाव हुए तो वह हार गया।
सन् 1873 में
एविगनाॅन में मिल का निधन हो गया और उसे अपनी पत्नी के निकट ही कब्र में लिटा दिया गया।
उसकी पुस्तकों का प्रकाशन क्रम सन् 1843 से प्रारम्भ हुआ जो 1873 में उसकी मृत्यु के पश्चात एक वर्ष तक चलता रहा। उसकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
जाॅन स्टुअर्ट मिल की कृतियां
जाॅन स्टुअर्ट मिल के जीवन की कहानी अध्ययन, चिन्तन और लेखन की कहानी है। 1834 से 1840 तक वह ‘लन्दन रिव्यू’ का सम्पादक रहा। इस पत्रिका का नाम बाद में ‘लन्दन एण्ड वेस्टमिंस्टर रिव्यू’ कर दिया गया। मिल ने इस पत्रिका के सम्पादन में अपनी विद्वता एवं लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। उसने अनेक महत्वपूर्ण लेख लिखे, जिसके कारण एक तर्कशील विद्वान के रूप में उसे बहुत प्रसिद्धि मिली।उसकी पुस्तकों का प्रकाशन क्रम सन् 1843 से प्रारम्भ हुआ जो 1873 में उसकी मृत्यु के पश्चात एक वर्ष तक चलता रहा। उसकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- सिस्टम आफ लाॅजिक (System of logic)
- दि प्रसिपल्स आफ पाॅलिटिकल इकोनाॅमी (The Principles of Political Economy)
- आन लिबर्टी (On liberty)
- कन्सीडेरेशन आफ रिप्रेजेण्टिव गवर्नमेण्ट (Consideration of representative government)
- यूटिलिटेरियानिज्म (Utilitarianism)
- थाॅट्स आन पालियामेण्टरी रिफाॅर्स (Thoughts on Parliamentary Reforms)
- दि सबजेक्शन आफ विमैन (The subject of women)
- आटोबायोग्राफी (Autobiography)
- एसेज आन रिलिजन (Essays on religion) सन् 1843 में मिल की पुस्तक ‘सिस्टम आफ लाॅजिक’ प्रकाशित हुई।
सन् 1860 में मिल की पुस्तक ‘यूटिलिटेरियाजिज्म’ प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में
मिल ने बेन्थम के उपयोगितावादी विचारों को आगे अवश्य बढ़ाया, किन्तु नये रूप में, नयी व्याख्या के साथ जिससे
उपयोगितावाद के बेन्थमी माॅडल ने अपने आप दम तोड़ दिया।
सन् 1863 में उसकी पुस्तक ‘रिप्रेजेण्टेटिव गवर्नमेण्ट’
प्रकाशित हुई। इसमें लोकतन्त्रा की कमजोरियों और उन्हें दूर करने के उपायों का वर्णन था।
सन् 1869 में ‘दि
सबजेक्शन आफ विमैन’ प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में महिलाओं के उत्थान का बहुत जोरदार प्रतिपादन किया गया
था। इस पुस्तक पर मिल की पत्नी श्रीमती टेलर का प्रभाव बहुत स्पष्ट रूप में दिखाई देता है।
मिल की मृत्यु के बाद उसकी पाण्डुलिपियों को संकलित कर तीन अन्य रचनाओं का प्रकाशन हुआ। इनमें सर्वाधिक प्रमुख है, मिल की ‘आत्मकथा’ जो सन् 1873 में प्रकाशित हुई। मिल की ‘आत्मकथा’ वस्तुतः उसके जीवन की कहानी के बजाय, उसके चिन्तन की कहानी है।
मिल की मृत्यु के बाद उसकी पाण्डुलिपियों को संकलित कर तीन अन्य रचनाओं का प्रकाशन हुआ। इनमें सर्वाधिक प्रमुख है, मिल की ‘आत्मकथा’ जो सन् 1873 में प्रकाशित हुई। मिल की ‘आत्मकथा’ वस्तुतः उसके जीवन की कहानी के बजाय, उसके चिन्तन की कहानी है।
सन् 1874 में प्रकाशित ‘थ्री ऐसेज आन रिलिजन’ में मिल ने ईसाई
धर्म की रूढि़वादिता पर कड़े प्रहार किये हैं। एक संगठन के रूप में, एक संस्था के रूप में उसने चर्च को मानव
स्वतन्त्रता का विरोधी कहा।
सन् 1910 में ‘लेटर्स’ का प्रकाशन हुआ। इसमें मिल के पत्रों को संकलित कर दो खण्डो
में प्रकाशित किया गया। इन पत्रों से मिल की बहुमुखी प्रतिभा एवं गहरी अनुभूति का भी आभास मिलता है।
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जाॅन स्टुअर्ट मिल