मेकियावेली का राज्य सम्बन्धी विचार

मैकियावेली का जन्म इटली के पुनर्जागरण आन्दोलन के अग्रणी नगर फ्रलोरेन्स के एक सामान्य कुल में सन् 1469 में हुआ। उसको कोई बहुत उच्च शिक्षा तो प्रदान नहीं की गई पर लेटिन का अच्छा ज्ञान कराया गया। उसमें योग्यता, चतुराई और बुद्धिमत्ता इतनी अधिक थी कि प्लोरेन्स के गणराज्य में उसे गृह एवं विदेश कार्यालय में क्लर्की प्राप्त हो गई। चार वर्ष में ही वह उन्नति करते हुए चांसरी के द्वितीय सचिव के उच्च पद तक पहुंचा कर 1512 ई. तक इस पद पर बना रहा। इस कालावधि (1498-1512) में उसकी योग्यता से प्रभावित होकर उसे फ्रलोरेन्स का दूत बनाकर विशेष कार्य के लिए विदेश राज्यों में भेजा गया। वह विभिन्न यूरोपियन देशों में 23 बार दूत नियुक्त हुआ जिससे उसे फ्रांस के लुई बारहवें, पवित्र रोमन सम्राट मेक्सिमिलियन प्रथम, पोप जुलियस द्वितीय के दरबारों में जाने तथा वहां के वूफटीतिक दाव-पेचों और राजीतिक षड्यन्त्रों के अध्ययन का अच्छा अवसर मिला।

मैकियावेली के राज्य सम्बन्धी विचार

मैकियावेली ने राज्य का कोई सिद्धान्त प्रतिपादित नहीं किया है। न उसने राज्य की कोई परिभाषा दी है, न उसकी उत्पत्ति या विकास का सिद्धान्त प्रतिपादित किया है और न ही उसके तत्वों आदि का विश्लेषण अथवा उन पर विचार ही किया है। उसने जो कुछ भी कहा है वह तो क्षमतापूर्वक राज्य को तात्कालिक परिस्थितियों में चलाने की युक्तियां हैं। ये युक्तियां या ‘राज्य कला’ ही उसके राजनीतिक विचार बन गए हैं।

राज्य और राज्य कला से सम्बन्धित विषयों पर उसके विचार निम्नलिखित हैं-

(i) राज्य की उत्पत्ति व प्रकृति-यद्यपि मैकियावेली ने राज्य की उत्पत्ति पर स्पष्ट रूप से अपने विचार व्यक्त नहीं किए हैं, परन्तु पिफर भी यत्र-तत्र इस विषय में उसके कुछ विचार पढ़ने को मिलते हैं।

मैकियावेली राज्य की उत्पत्ति का कारण मनुष्य स्वभाव की आसुरी और स्वार्थी प्रवृत्ति को मानता है। वह अरस्तू की तरह राज्य को एक प्राकृतिक संस्था नहीं मानता। उसकी मान्यता है कि मनुष्य ने अपनी असुविधाओं को दूर करने के लिए राज्य की स्थापना की है। अतः वह एक मानवकृत और कृत्रिम संस्था है। इस तरह मैकियावेली हाॅब्स की भांति राज्य की उत्पत्ति में संविदा सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है।

राज्य की प्रकृति या स्वरूप दर्शाते हुए मैकियावेली राज्य को अन्य सभी संगठनों से उच्च और श्रेष्ठ मानता है। समाज के अन्य सभी संगठन उसके अधीन और उसके प्रति उत्तरदायी हैं, किन्तु राज्य किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं है, क्योंकि राज्य ही एकमात्र ऐसा साधन है जिसके माध्यम से मानव कल्याण के सर्वोच्च लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं। अतः व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने आपको राज्य की सेवा में समर्पित कर दे।

(ii) राज्य के विस्तार की आवश्यकता-राज्य के निरन्तर विस्तृत होते रहने की आवश्यकता बताते हुए मैकियावेली ने एक बार पुनः मानव स्वभाव की चर्चा की है। वह कहता है कि मनुष्य का स्वभाव पारे की भांति होता है, वह निरन्तर बढ़ते रहना चाहता है। उसी प्रकार वैभव और राज-व्यवस्था है और राज्य को भी बढ़ते रहना चाहिए। जो राज्य इस सिद्धान्त का पालन नहीं करता, वह स्थिर नहीं रह सकता है। इसी आधार पर वह राज्य को दो भागों में बांटता है-(1) स्वस्थ राज्य और (2) अस्वस्थ राज्य। उसके अनुसार स्वस्थ राज्य युद्धशील होता है और निरन्तर संघर्ष में लगा रहता है। इस सम्बन्ध में वह रोमन साम्राज्य के पतन का उदाहरण देते हुए बताता है कि उसके पतन का एक कारण उसका सदैव एक समान बने रहना था, रोमन साम्राज्य के शासकों ने उसके विस्तार की चेष्टा नहीं की।

अतः ‘प्रिन्स’ व ‘डिस्कोर्सेज’ में वह इस बात पर बल देता है कि राज्य के अधिकृत प्रदेश को निरन्तर बढ़ाते रहने की आवश्यकता है। वस्तुतः मैकियावेली का इटली के एकीकरण का जो लक्ष्य था, उसे दृष्टि में रखते हुए ही उसके द्वारा इस प्रकार के विचार व्यक्त किए गए हैं।

(iii) राज्यों का वर्गीकरण और विभिन्न शासन प्रणालियां-मैकियावेली ने अपनी पुस्तक ‘प्रिन्स’ में यत्र-तत्र फ्रांस, स्पेन तथा इंग्लैण्ड के सुदृढ़ एवं शक्तिशाली राजतन्त्रों की प्रशंसा की है और यह इच्छा व्यक्त की है। कि इटली में भी सुदृढ़ राजतन्त्र स्थापित हो, जिसके द्वारा सभी नैतिक बन्धनों से ऊपर उठकर इटली की एकता स्थापित करने और उसे शक्तिशाली बनाने का कार्य किया जा सके। लेकिन, इसका अभिप्राय यह नहीं है कि मैकियावेली राजतन्त्र को ही सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था मानता था। उसने इटली के लिए राजतन्त्र को आदर्श के कारण नहीं, वरन् तत्कालीन परिस्थितियों के कारण अपनाने का पक्ष ग्रहण किया है। 

गणतन्त्र की अपेक्षा राजतन्त्र को ही इटली के लिए उपयुक्त मानने के उसने तीन कारण दिए हैं। ये इस प्रकार हैं-(1) लोगों का भ्रष्ट चरित्र, (2) राज्यों में सम्पत्ति की असमानता, और (3) इटली की तत्कालीन व्यवस्था।

वास्तव में वह राजतन्त्र को सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था नहीं मानता, यह बात डिस्कोर्सेज में उसके द्वारा किए गए राज्यों के वर्गीकरण तथा उसके गुण-दोषों के विवेचन से स्पष्ट हो जाती है।

एथेन्स और रोमन गणराज्य की प्रशंसा करते हुए मैकियावेली ने कहा कि एथेन्स का गणराज्य सैकड़ों वर्षों तक उन्नति के चरम शिखर पर रहा और उससे भी अधिक रोमन साम्राज्य ने सम्राटों से मुक्त होकर अपना उत्थान किया। वस्तुतः राज्य को महान व्यक्ति का स्वार्थ नहीं अपितु सार्वजनिक कल्याण की भावना बनाती है और यह सार्वजनिक सुख केवल गणतन्त्रों में ही प्राप्त हो सकता है। 

गणतन्त्र और राजतन्त्र की तुलना करते हुए डिस्कोर्सेज में निम्नलिखित कारणों से गणतन्त्र को अधिक उपयोगी बताया है-

(i) गणतन्त्र में शासन की बागडोर सामान्य जनता में होती है और सामान्य जनता एक व्यक्तिगत राजा की अपेक्षा अधिक समझदार होती है। 

(ii) राज्य के पदाधिकारियों के चयन करने में जनता का निर्णय किसी एक राजा की अपेक्षा अधिक सही होता है। 

(iii) राजतन्त्र में राज्य की प्रकृति समयानुकूल परिवर्तित नहीं होती पर जनतन्त्र में राज्य का स्वरूप और प्रकृति आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। 

(iv) राजा राज्य के निर्णय के लिए उत्तम है पर राज्य को कायम रखने के लिए गणतन्त्र ही अधिक उपयुक्त होता है। 
(v) सामान्य जनता उतनी कृतघ्नी नहीं हो सकती जितना कि एक राजा हो सकता है।

शासनतन्त्रों अथवा सरकारों का वर्गीकरण मैकियावेली ने इस उद्देश्य से किया है कि आदर्श शासन कायम किया जा सके। उसके लिए आदर्श शासन वही है जो पूर्णतया सफल हो और जिसकी सत्ता मजबूत हो। इस क्षेत्र में अरस्तू के पथ का अनुसरण करते हुए उसने सरकारों को उनके शुद्ध व विकृत रूप मानकर 6 भागों में विभक्त किया है। संख्या के आधार पर वह भी शासन का वर्गीकरण शुद्ध और विकृत रूपों में करता है-

शासन के शुद्ध रूप-
  1. राजतन्त्र
  2. कुलीनतन्त्र
  3. वैध प्रजातन्त्र
शासन के तीन विकृत रूप निम्न हैं-
  1. तानाशाही
  2. धनिकतन्त्र या वर्गतन्त्र
  3. प्रजातन्त्र ।
मैकियावेली ने यद्यपि पोलिबियस और सिसरो के इस विचार से सहमति प्रकट की है कि मिश्रित सरकार सर्वश्रेष्ठ होती है क्योंकि उसमें प्रत्येक शासनतन्त्र के अच्छे गुणों का समावेश होता है और समुचित किया है और वे हैं-राजतन्त्र तथा गणतन्त्र। मैकियावेली मानता है कि राजतन्त्र या गणतन्त्र इसमें से कोई भी शासन व्यवस्था सभी परिस्थितियों के लिए ठीक नहीं है। वह आदर्श शासन व्यवस्था गणतन्त्र को मानता है और कहता है कि सामान्य स्थिति में राजा मूर्ख होते हैं जबकि लोगों में निर्णय लेने और न्याय करने की क्षमता अधिक होती है, किन्तु चूंकि मानव स्वभाव के कारण सभी परिस्थितियों में गणतन्त्र का अपनाना सम्भव नहीं है, इसलिए वह राजतन्त्र की ओर झुक जाता है। वह कुलीनतन्त्र की कठोर आलोचना करता है और सामन्तवाद का भी विरोधी है। उसके अनुसार सामन्त वर्ग आलसी और निठल्ला होता है और दूसरों के श्रम की चोरी द्वारा अपना जीवन बिताता है।

संक्षेप में, सामान्य परिस्थितियों में उसका झुकाव गणतन्त्र की ओर है, किन्तु तात्कालीन इटली में विद्यमान अव्यवस्था जैसी स्थिति या संकटकाल के लिए वह राजतन्त्र को ही उपयुक्त समझता है।

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