मूल्यांकन अनुसंधान क्या है ?

आज अधिकांश देश नियोजित परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। वे कल्याणकारी राज्य के रूप में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। जो देश अपने लोगों की खुशहाली के लिए विकास कार्यक्रमों पर अरबों-खरबों रुपया खर्च करता है, वह यह भी ज्ञात करना चाहता है कि आखिर उन कार्यक्रमों का उन लोगों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है जिनके लिए वे बनाये गये हैं। आज गरीबी-उन्मूलन, स्वास्थ्य, आवास, परिवार कल्याण, अपराध, बाल-अपराध, समन्वित ग्रामीण विकास आदि के क्षेत्र में अनेक अनुसंधान-कार्य इस उद्देश्य से चलाये जा रहे हैं कि इन कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का पता लगाया जा सके, यह ज्ञात किया जा सके कि लक्ष्यों एवं परिणामों में कहाँ तक साम्यता है, कहाँ तक इच्छित लक्ष्यों के अनुरूप आगे बढ़ा जा सका है। इस प्रकार के अनुसंधान-कार्यों द्वारा किसी कार्यक्रम, किसी विकास योजना की सफलता-असफलता का मूल्यांकन किया जाता है। 

उदाहरण के रूप में, डा. एस. सी. दुबे ने शमीरपेट नामक गाँव के अपने अध्ययन के आधार पर बताया है कि वहाँ सामुदायिक विकास कार्यक्रम इच्छित मात्रा में जन-सहयोग प्राप्त नहीं कर सका है। कार्यक्रम में मानवीय कारकों की उपेक्षा की गयी है और इसी के फलस्वरूप ग्रामीण लोगों ने उनके विकास हेतु प्रारंभ की गई उत्तम से उत्तम योजनाओं को भी अस्वीकार कर दिया है। यह मूल्यांकनात्मक अनुसंधान का एक उदाहरण है। सन् 1960 से इस प्रकार के अनुसंधान की ओर भारत का झुकाव बढ़ा है। सामुदायिक विकास कार्यक्रमों की सफलता का पता लगाने हेतु, भारत सरकार ने एक स्थायी ‘कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन’ की स्थापना की।

मूल्यांकनात्मक अनुसंधान के संबंध में विलियमसन, कार्प एवं डालफिन ने बताया है कि यह अनुसंधान वास्तविक जगत् में संपादित की गयी ऐसी खोज है जिसके माध्यम से यह मूल्यांकन किया जाता है कि व्यक्तियों के किसी समूह विशेष के जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से जो कार्यक्रम बनाया गया, वह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में कहाँ तक सफल रहा है। इसके द्वारा कार्यक्रम की प्रभावकता को आँका जाता है। जहाँ उद्देश्यों तथा उपलब्धियों में अंतर कम से कम हो, वहाँ उस कार्यक्रम को उतना ही सफल माना जाता है। इस प्रकार का मूल्यांकन इस उद्देश्य से किया जाता है ताकि नियोजित परिवर्तन के विभिन्न कार्यक्रमों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन किये जा सके, उन्हें अधिक कारगर एवं सफल बनाया जा सके। इस प्रकार के अनुसंधान के द्वारा यह पता लगाया जाता है कि सामाजिक नियोजन एवं परिवर्तन के उद्देश्य से प्रेरित कार्यक्रम इच्छित उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल क्यों नहीं हो रहा है और उसे सफल बनाने हेतु क्या कदम उठाये जाने चाहिए। 

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि सामाजिक नियोजन एवं परिवर्तन के लक्ष्य से प्रेरित क्रियात्मक कार्यक्रमों की सफलता-असफलता को ज्ञात करने एवं उनकी प्रभावकता का पता लगाने हेतु जो खोज की जाती है, उसी को मूल्यांकनात्मक अनुसंधान कहते हैं। इस प्रकार की अनुसंधान व्यावहारिक अनुसंधान का ही एक प्रकार है। इन अनुसंधानों की व्यावहारिक उपयोगिता काफी है। इसका यह तात्पर्य नहीं है कि मूल्यांकनात्मक अनुसंधान का विशुद्ध अनुसंधान की दृष्टि से कोई महत्व नहीं है। इस प्रकार के अनुसंधान में उन सभी अध्ययन विधियों का प्रयोग किया जाता है जिन्हें विशुद्ध अनुसंधान में काम में लिया जाता है। इसमें किसी भी कार्यक्रम की प्रभावकता का पता लगाने के लिए लोगों के विश्वासों, विचारों, दृष्टिकोणों, भावनाओं आदि को जानने-समझने के लिए समाजमितीय पैमानों को काम में लिया जाता है।

जनगणना विभाग, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, सर्वेक्षण एवं सांख्यिकीय विभाग विभिन्न कार्यक्रमों की सफलता का आकलन करने हेतु समय-समय पर मूल्यांकनात्मक अनुसंधान का सहारा लेते हैं। इस प्रकार के अनुसंधान-कार्य में इस बात की सावधानी बरतना आवश्यक है कि अध्ययन पूर्णतः वैज्ञानिक होने के बजाय कहीं व्यक्तिपरक न हो जायें। किसी भी कार्यक्रम के प्रभाव का सही मूल्यांकन किया जाना चाहिए, किसी भी रूप में न तो कम और न ही ज्यादा, अन्यथा परिणाम निराशाजनक ही होंगे।

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