आत्मकथा शब्द की व्युत्पत्ति, अर्थ एवं परिभाषा

'आत्मकथा' शब्द की व्युत्पत्ति के संबंध में संस्कृत के आचार्यों ने कहा है - इस शब्द की उत्पत्ति आत्मन और कथा से हुई है । विभक्ति तत्पुरूष के नियम के अनुसार इसमें से पूर्वपद 66 की विभक्ति का लोप हुआ है । इस शब्द के विग्रह हैं आत्मनः कथा, आत्मना कथा और - आत्मने कथा | " 

संस्कृत के आचार्यों ने इसके अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है - आत्मनः विषये कथ्यते यस्यां सा आत्मकथा' अर्थात् 'जहाँ अपने ही विषय में बात की जाए, वही आत्मकथा है । ' “आत्मना आत्मने लिखित आत्मनः कथा" अर्थात स्वयं अपने द्वारा अपने लिए प्रणीत अपनी कथा | इस अर्थ को और स्पष्ट करते हुए विद्वानों ने कहा है -“ अपनी कहानी, अपने द्वारा कही या लिखी हुई कहानी और अपने ही विकास और अतीत के दर्शनार्थ लिखित कथा | 

आत्मकथा का अर्थ

'आत्मकथा' अंग्रेजी के 'Autobiography' का हिन्दी रूपांतरण है | यहाँ ‘Auto’ का अर्थ 'आत्मा' और ‘Biography' का अर्थ 'जीवनी' है। इस प्रकार से आत्मकथा का अर्थ हुआ - “संबद्ध व्यक्ति द्वारा अपने जीवन की कहानी स्वयं लिखी जाना | आत्मकथा अकाल्पनिक गद्य रूप है| आत्मकथा में कल्पना का कोई स्थान नहीं है | अपने वैयक्तिक जीवन के तथ्यों का वर्णन ही आत्मकथा में करते हैं । " आत्मकथा का आशय है कि केवल आत्मानुभव लिखे जाते, उसमें कल्पना का लेश भी न हो । आत्मकथा बहुत ही कठिन कार्य है । अपने जीवन के क्षणों को चाहे वह अच्छा हो या बुरा, समाज के सामने प्रस्तुत करता है। 

आत्मकथा 'आत्मक' जीवन विधा है। इसका उदय आधुनिक काल में हुआ और पाश्चात्य प्रभाव से ही यह विधा हिन्दी में विकसित हुई । “स्वयं लिखी अपनी जीवनी आत्मकथा कहलाती है । दूसरे शब्दों में जब काई व्यक्ति कलात्मक, साहित्यिक ढ़ंग से अपनी जीवनी स्वयं लिखता है तब उसे आत्मकथा कहते हैं | ”

आत्मकथा की परिभाषा

कई विद्वानों ने आत्मकथा की परिभाषाएँ देकर उसके स्वरूप को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। 

Encyclopaedia of Britannica : "As the suggestive moneclature of southey implies is the biography of a person writen by himself”  ( आत्मकथा स्वयं का स्वलिखित इतिहास है ) 

Oxford Dictionary : “ The story of one's life written by himself " 1 ( स्वयं द्वारा लिखेगये स्वयं की कहानी है) 

A Readers Guide to Literary Terms: The author of an autobiography presents a continous narrative of the major events of his past"  

आत्मकथा के बारे में भारतीय विद्वानों ने निम्न विचार व्यक्त किये हैं। आत्मकहानी, आत्मगाथा, आत्मचरित्र, आपवीति, आत्मवृत्त, निजवृत्तांत, मेरी कहानी आदि इसके विविध नाम दिये गये हैं। प्रमुख विद्वानों ने आत्मकथा के संदर्भ में अपने जो विचार तथा कुछ टिप्पणियाँ प्रस्तुत की हैं, वे इस प्रकार हैं -

आदर्श हिन्दी कोश में आत्मकथा की परिभाषा यों दी गई है वृत्तांत आत्म-चरित है - स्व जीवन का वृहत् हिन्दी कोश में आत्मकथा की इस प्रकार परिभाषा दी गई है - इसमें आत्म शब्द का विग्रह करके अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा हैं |  यह आत्मन् शब्द का समास व्यवहृत रूप है, जिसका अर्थ है अपना, निज का, आत्मा का, मन का, कथा का अर्थ है जीवन कहानी । अतः आत्मकथा का अर्थ हुआ स्वलिखित जीवन-चरित।मानक हिन्दी कोश में आत्मकथा यों परिभाषित हुई है। “जीवन की मुख्य बातों के वर्णन को आत्मकथा का प्रधान गुण माना जाता है| 

सुप्रसिद्ध कवि श्री हरिवंश राय बच्चन ने आत्मकथा की परिभाषा देते हुए आत्मकथा को जीवन की तस्वीर माना है | 

बंगला कवि श्री रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने आत्मकथा को “अज्ञात चितेरे के द्वारा बनाया हुआ चिहन ” बताया है | पंडित 

जवहर लाल नेहरू जी ने इस संदर्भ में लिखा है कि - “इसमें जहाँ तक मुमकिन हो सकता था, मैं ने अपना मानसिक विकास अंकित करने का प्रयास किया है। 

डॉ. विश्वबन्धु आत्मकथा को व्यष्टि-बोध को चिरंतन महत्व के संबंधों से एकाकार करनेवाली विधा मानते हैं रागात्मक गद्य साहित्य की वह माध्यम निरपेक्ष आत्मोन्मुख, अनुभूति प्रवण, तथ्याश्रित, मृत्यवलम्बित, सुसंबद्ध कथानक युक्त, चरित्रप्रधान विधा आत्मकथा कहलाती है, जिसमें लेखक ने अपनी मानसिक पैढ़ावस्था में अतीत की अनुभूतियों, संवेदनाओं, भावनाओं, संस्मृतियों, उभावनाओं, और मानसस्वप्नों के साथ-साथ भुक्त यथार्थ तथा आत्मसात की हुई वाह्य पर्यावरण की समस्त संस्थितियों और परिस्थितियों को अपने अवचेतन के अध्ययन, विश्लेषण, दर्शन, उन्नयन, समर्थन, परिष्करण या गवेषणादि हेतु पूर्ण कलात्मक रीति से इस प्रकार चित्रित किया है कि व्यष्टि का विशिष्ट बोध चिरन्तन मानव संबंधों से एकाएक हो सकें। ''

आत्मकथा विषयक परिभाषाओं का अवलोकन करने से जो तथ्य उभरते हैं वे इस प्रकार हैं - आत्मकथा साहित्य में लेखक अपने जिए हुए जीवन की मुख्य घटनाओं का विवरण सत्य एवं यथार्थ की भूमिका पर आत्मनिरीक्षण एवं परीक्षण करते हुए प्रस्तुत करता है। इन सभी परिभाषाओं के बाद आत्मकथा के विषय में कहा जा सकता है कि “आत्मकथा मानव रूपी जगत में स्थित वह स्थायी प्रज्ञा है जो समय आने पर अपने प्रकाश द्वारा आत्मकथाकार की लेखनी से निकल कर पाठकों को एवम् समाज को आलोकित करती है |

इस तरह सभी भारतीय विद्वानों का मत प्रायः मिलता हुआ प्रतीत हो रहा है | सभी लोग कुछ विशेष बातों पर ही बल देने की ओर इंगित कर रहे हैं, जो है आत्म पर विशेष बल, अपने चरित्र को सच्चाई के साथ पेश किया जाय, अपने साथ-साथ अपने समाज के लोगों का यथार्थ चित्रण व सच्चाई व बेबाकी से जीवन चरित्र का वर्णन किया जाय | आत्मकथा अपनी कथा तो है ही, साथ ही साथ मानव जीवन के साथ चलने वाली उसकी पूर्ववर्ती कथा तथा वर्तमान जीवन से जुड़ी कथा भी लिखी जाती है । वह किसी व्यक्ति द्वारा भी लिखी जा सकती है, कुछ विद्वान सहमत हैं तो कुछ असहमत, कुछ लोग दोनों के पक्ष में |

आत्मकथा के बारे में पाश्चात्य विद्वानों ने भी कुछ अपने विचार रखे हैं। पाश्चात्य शब्दकोषों में भी विद्वानों ने आत्मकथा की परिभाषा पर अपने मत दिये हैं । पाश्चात्य समीक्षकों की दी हुई आत्मकथा पर विचार इस प्रकार हैं -

पाश्चात्य समीक्षक शिप्ले ने आत्मकथा के बारे में अपना मत व्यक्त करते हुए लिखा है कि The autobiography proper is a connected narrative of the author's life with stress laid on interospection or on the significance of his life against a wider background.” “ संक्षेप में अपने विशाल जीवननुभव - कोश को बाह्य जगत की पृष्ठभूमि की सहायता से व्यवस्थित रूप से रखने पर बल दिया है। उन्होंने अर्न्तदृष्टि के साथ संस्मरणात्मक रूप से आत्मकथा लिखने की बात भी कही है । " " 

डॉ. डी जी नाई और डॉ राय पास्कल ने यह विचार व्यक्त किया है - Autobiography is on the contrary Historical in its method and at the same time, the representation of the self in and through its relations with the outer world.” अनुभवपूर्ण वैयत्तिकता की स्पष्ट और सार्थक अभिव्यक्त का सर्वश्रेष्ठ साधन आत्मकथा को मानते हुए जहाँ आत्मकथा विधा की प्रशंसा की गई है, वहाँ वास्तविक मानव के बाह्य एवं आंतरिक जीवन में संप्राप्त अनुभवों को परिवेश के प्रभाव के नेपथ्य में व्यक्त करनेवाली विधा के रूप में इसकी विशिष्टता को स्वीकार किया गया है | ,,

डॉ. जानसन ने अपने विचार इस प्रकार प्रकट किये - "Honest is the greatest stumbling book of the autobiographer. The resolution to tell the truth about oneself takes a sparton rigor of character and ability to do so requires a more than common insight.” सत्य और ईमानदारी पर बल देते हुए आत्मकथा को लेखक की 66 योग्यता की कसौटी बतलाया है और असाधारण अन्तर्दृष्टि की अनिवार्य शर्त लगायी है । 

H.G.Wells If I did not take an immense interest in life through the medium of myself, I should not have embarked upon analysis." हेच. सी वेल्स ने अपना मत प्रकट करते हुए “अपने ही जीवन की विवेचना और गुत्थियों को सुलझाते हुए स्वान्तः सुखाय रचना करने को 'आत्मकथा' का नाम दिया है । 

हिस्ट्री ऑफ आटोबयोग्रफी इन एक्टिविटी के लेखक जार्ज मिर्च ने यह व्यक्त किया है आटोबायोग्रफी के महत्व और स्वरूप को पहचानकर उसे जीवन की उपशाखा मानने से इन्कार - किया है। वस्तुतः यह आत्मकथा को एक स्पष्टता पूर्ण और स्वतंत्र व्यक्तित्व प्रदान करने का प्रयास किया है । "" कैलियर्स ने अपने एनसइक्लेपीडिया में लिखा है कि - " आत्मकथा जीवनी का ही एक प्रकार है, जिसमें लेखन का विषय लेखक ही होता है । यह सामान्यतः प्रथम पुरूष में लिखी जाती है और लेखक के जीवन के अधिकांश अथवा महत्वपूर्ण तथ्यों को स्वयं में समाविष्ट करके चलती है। इस तरह भारतीय व पाश्चात्य विद्वानों एवं आत्मकथाकारों की आत्मकथा विषयक परिभाषाओं का अवलोकन किया जा सकता है ।

आत्मकथा में लेखक अपने ही जीवन तथा व्यक्तित्व का निरीक्षण करता है और एक व्यापक पृष्ठभूमि में स्वयं को प्रकट करता है। इसमें लेखक का उद्देश्य आत्म-निरीक्षण, आत्म-विश्लेषण, आत्म-समर्थन एवं आत्म-प्रचार का रहता है । वह अतीत की पुन: सृष्टि है, जिसे लेखक आत्मदान करके रचता है |

आत्मकथा की विशेषताएँ

आत्मकथा की विशेषताएँ इस प्रकार हैं -

  1. आत्मकथा साहित्य लेखक के जीवन का इतिहास होता है ।
  2. लेखक आत्मकथा के द्वारा आत्मप्रकाश करता है ।
  3. आत्मकथा चरित्र प्रधान विधा मानी जाती है।
  4. आत्मकथाकार आत्मकथा के द्वारा अपने मन-मस्तिष्क का प्रकाशन करता है
  5. लेखक व्यक्तिगत अनुभवों का चित्रण अर्थात आत्मानुभवों की प्रस्तुति आत्मकथा के द्वारा करता है | वह आत्मकथा के द्वारा अपने जीवन दर्शन की अभिव्यक्ति करता है ।
  6. लेखक अपने जीवन को परखकर व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास करता है | आत्मकथाकार अपने भोगे हुए जीवन का पुनरास्वादन या पुनराख्यान प्रस्तुत करता है ।
  7. आत्मकथाकार जीवन की ओर तटस्थ दृष्टि से देखने का प्रयास करता है | 
  8. आत्मकथा मानसिक प्रौढावस्था की रचना मानी जाती है। अतः अधिकांश संदर्भों में लेखक अपनी आयु की अन्तिमावस्था में मानसिक रूप में परिपक्व होने पर लिखता है |
  9. लेखक व्यक्तिगत अनुभवों की अभिव्यक्ति यथार्थ, अनासक्त, स्पष्ट, निर्भीक, निष्पक्ष, निश्चल, सहज, स्वाभाविक भाव से करता है । आत्मकथाकार स्वयं भोक्ता होने के कारण जीवन की घटनाओं को सत्य एवं ईमानदारी से प्रस्तुत करता है । वह भूतकाल के साथ-साथ वर्तमान काल के अनुभवों का सत्यांकन कर आत्मकथा लेखक की, बाह्य जगत् के प्रति मानसिक प्रतिक्रिया का कलात्मक रूप है |
  10. यह विधा व्यक्तिगत अनुभवों, अनुभूतियों और संवेदनाओं की त्रिवेणी है |
  11. आत्मकथा का सत्य ऐतिहासिक सत्य न होकर अनुभवगत सत्य होता है।
  12. आत्मकथा लेखक को कल्पना और अनुमान का परित्याग करते हुए व्यक्तिगत जीवन के तथ्यपरक इतिहास को सार्थक, सरस और साहित्यिक प्रतिष्ठा देनी होती है ।
  13. आत्मकथा अन्तर्जगत से संबंधित होने के कारण आत्मपरक विधा मानी जाती है। आत्मकथा व्यष्टि के द्वारा समष्टि का चित्रण करनेवाली विधा है | इसमें लेखक बाह्य परिवेश तथा स्वयं से संबंधित व्यक्ति और घटना-प्रसंगों का चित्रण सन्तुलन से करता है |
  14. आत्मकथा स्वयं संबंद्ध व्यक्ति द्वारा अपने जीवन को लेकर लिखी जाती है।
  15. आत्मकथा में महाकाव्य और उपन्यास की-सी कल्पना - छूट व अतिरंजना आदि के लिए कोई स्थान नहीं होता ।
  16. लेखक व्यक्तिगत अनुभवों आनंद दायक, दुःखदायक, संवेदनशील, कोमल, कठोर, मार्मिक गंभीर, आदि की अभिव्यक्ति संकोचरहित भाव से करता है ।
  17. आत्मकथा दर्पण के समान होती है। उसमें लेखक के जीवन का स्पष्ट, सत्य, सहज, स्वाभाविक, यथार्थ प्रतिबिंब उपलब्ध होता है |
  18. आत्मकथा के लिए यह अपेक्षा रहती है कि वह इतिहास की तरह सपाट-बयानी न लगें, बल्कि अपनी प्रस्तुति में पूरी तरह साहित्यिक दिखाई पड़े ।

आत्मकथा-लेखन का उद्देश्य

बुद्धिजीवी आदमी समाज को, ईश्वर को आत्मकथा लिखकर यह अवगत करता है कि जिंदगी में मैं ने कितना पुरुषार्थ पाया और कितना खोया । आत्मकथा का उद्देश्य लेखक का, मनुष्य जीवन का गुण-दोषों के साथ हिसाब किताब का दस्तावेज है। केवल मनोरंजन ही जिनका लक्ष्य हो ऐसी आत्मकथाएँ लिखी तो बहुत जाती हैं | या केवल अपनी अगली पीढी केलिए मैं क्या और क्या कहा, शून्य से कितना पाया इसका कथन करने के लिए बहुत आत्मकथा लिखी जाती है, किन्तु वे उत्कृष्ट कोटि की आत्मकथा के अंतर्गत ग्रहीत नहीं किये जाते । सर्वोकृष्ट आत्मकथा तो वही है, जो किसी-न-किसी विशिष्ट, उच्च उद्देश्य का प्रतिपादन करते हैं और जीवन की अपने दृष्टिकोण के अनुसार व्याख्या करते हैं ।

यह उद्देश्य किसी एक उपदेश और व्याख्यान के रूप में अभिव्यक्त करता है| अपने इन्हीं विचारों या सिद्धान्तों के प्रतिपादन के लिए वह विपुल घटनाओं से पाठकों को अवगत को कराता है और परस्पर विरोधी या सहयोगी विचारों में संघर्ष या मोहब्बत दिखा कर अपने सिद्धान्तों की उत्कृष्टता को सिद्ध करता है । आत्मकथाकार को सदा ध्यान रखना चाहिए कि मुख्य उद्देश्य अपनी जीवन कथा है, किसी सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं, जहाँ वह प्रत्यक्ष रूप से अपने सिद्धान्तों का प्रचार करने लगेगा और लेखक के धर्म को गौण बना देगा, वहाँ आत्मकथाकार न होकर केवल उपदेशक या प्रचारक बन जाएगा ।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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