बलवंत सिंह की जीवनी, बलवंत सिंह के उपन्यास और अन्य रचनाएँ

बलवंत सिंह का जन्म पंजाब के गुजरांवाला में, सन् 1926 में हुआ था । देश- विभाजन के बाद यह स्थान पाकिस्तान में चला गया । देश-विभाजन के बाद यद्यपि बलवंत सिंह को बाकी पंजाबियों के साथ अपना वतन पश्चिमी पंजाब छोड़कर अपने देश पूर्वी पंजाब में आना पड़ा, लेकिन अपना जन्म-स्थान और अपनी मिट्टी की खुशबू को वे कभी भुला नहीं पाए । यही कारण है कि उनकी रचनाओं में वर्णित अधिकांश स्थान पश्चिमी पंजाब के रहे हैं । 

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक तक की शिक्षा अर्जित की । 12-13 वर्ष की `आयु में उन्होंने प्रथम गद्य-रचना की । इसके बाद करीब बीस वर्ष की आयु से आरंभ हुआ उनका लेखन उनके जीवन के अंत तक चला । उन्होंने साढ़े तीन सौ से अधिक कहानियाँ, लगभग बीस उपन्यास, अमृता प्रीतम पर मोनोग्राफ एवं कुछ अन्य रचनाएँ लिखीं । पंजाबी । चेतना-प्रधान उनकी रचनाओं ने ही उन्हें पहचान दिलाई । उनके उपन्यासों के संबंध में यह कहना शत-प्रतिशत सही मालूम होता है कि उनकी औपन्यासिक कृतियाँ अपने कलेवर में महाकाव्यात्मक गरिमा से परिपूर्ण हैं । बलवंत सिंह अपनी रचनाओं में शोषण और संघर्ष को प्रधानता देते रहे । इस संबंध में कृष्णा सोबती लिखती हैं – “वे शोषण और संघर्ष का नाम नहीं लेते, इसे केंद्र में लेते हैं ।

 बलवंत सिंह के विचार एक सामाजिक और साहित्यकार के रूप में अलग महत्व रखते हैं, क्योंकि “वे न सामाजिक कथ्य से आक्रांत हैं, न शैलीगत दबाव से आतंकित हैं - फिर अपनी सजग, चौकन्नी निगाह में अकसर वे चूकते नहीं । उनकी शिल्पगत क्षमता और संवेदन-सामर्थ्य द्वंद्वात्मक रफ्तार में अभिव्यक्त होती है ।

27 मई 1986 को बलवंत सिंह का निधन हो गया । कलात्मक और मानवीय, दोनों स्तरों पर श्रेष्ठ कथा-लेखन करने वाले बलवंत सिंह के साहित्य पर गंभीरता से पुनर्विचार कर एवं वस्तु की दृष्टि से हिंदी कथा-साहित्य में उनके योगदान को रेखांकित कर, उन्हें वह सम्मान दिया जाना चाहिए, जिसके वे हकदार हैं । 

बलवंत सिंह के उपन्यास और अन्य रचनाएँ

बलवंत सिंह के प्रसिद्ध उपन्यास हैं ‘रात, चोर और चाँद’, ‘काले कोस’, ‘चक - पीराँ का जस्सा’, ‘एक मामूली लड़की' आदि । ‘ग्रंथी’, ‘पहला पत्थर’, ‘सज़ा’, , ‘सूरमासिंह’ आदि इनकी उल्लेखनीय कहानियाँ हैं । 

बलवंत सिंह के पंजाबी चेतना प्रधान उपन्यास हैं - “काले कोस” और “चक पीरों का जस्सा” ।

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