भारतीय संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार
भारतीय संविधान के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक को जो छ: मौलिक अधिकार प्राप्त हैं, वे इस प्रकार -
1. समानता का अधिकार - भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक नागरिकों को पाँच प्रकार की समानताओं का अधिकार प्राप्त है । यह अधिकार विधि के समक्ष समानता, सामाजिक समानता, सरकारी नौकरी के अवसर में समानता, अस्पृश्यता का निर्मूलन तथा उपाधियों का अंत आदि हैं । इस अधिकार के तहत हर व्यक्ति को कानून के सामने एक जैसा माना जाएगा। भारत का कानून सब लोगों की रक्षा करेगा और यह रक्षा भी एक जैसी ही होगी।
2. स्वतंत्रता का अधिकार - अनुच्छेद 19 से लेकर 22 तक प्रत्येक नागरिक को निम्नलिखित बातों का अधिकार दिया गया है
- भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ।
- निशस्त्र और शांतिपूर्ण सभा करने की स्वतंत्रता ।
- समुदाय बनाने की स्वतंत्रता ।
- जीवन और शरीर रक्षा की स्वतंत्रता ।
- गिरफ्तारी और बन्दीकरण के विरुद्ध सुरक्षा ।
- अपराध सिद्ध के विषय में स्वतंत्रता ।
कोई विशेष परिस्थिति में ही इन अधिकारों पर पाबन्दियाँ लगाई जा सकती हैं । जैसे -
- राष्ट्र की एकता, सार्वभौमत्व तथा एकात्मता खतरे में आती है, तब ।
- सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा निर्माण होता है, तब ।
- नैतिकता को धक्का लगता है, तब ।
- अदालत की अवहेलना होती है, तब ।
- मानहानि एवं अपराधिता को प्रोत्साहन मिलता है, तब ।
- अन्य राष्ट्रों के साथ संबंधों में बाधा आती है, तब ।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार - अनुच्छेद 23 और 24 के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति का - शोषण नहीं कर सकेगा । इस संबंध में बेगार कराने, बालश्रम को बढ़ावा देने तथा मनुष्यों का क्रय-विक्रय करने आदि पर रोक लगाई गई है ।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार - अनुच्छेद 25 से 28 द्वारा सभी व्यक्तियों को धार्मिक आचरण एवं प्रचार की स्वतंत्रता, धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता, धर्म विशेष की उन्नति हेतु कर देने न देने की स्वतंत्रता तथा व्यक्तिगत शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा देने की स्वतंत्रता दी गई है ।
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार - संविधान के अनुच्छेद 29 व 30 के अनुसार अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति को सुरक्षित रखने का पूर्ण अधिकार है तथा अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करने और उनका प्रशासन करने का भी अधिकार है ।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार - अनुच्छेद 32 के द्वारा संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों का शासन द्वारा उल्लंघन किए जाने पर प्रत्येक नागरिक को संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा का अधिकार मिला मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय द्वारा पाँच प्रकार के लेख जारी किए जा सकते हैं -
- बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख (Right of Habeas Corpus )
- पराम देश लेख (Rigth of Modamus)
- प्रतिबद्ध लेख (Right of Prohibition)
- उत्प्रेक्षण लेख (Right of Ceertorari)
- अधिकार प्रज्ञा लेख (Right of Quo Warranto)
मूल अधिकारों का महत्व
- मूल अधिकार उन परिस्थितियों का निर्माण करते हैं, जिनके आधार पर बहुमत की इच्छा निर्मित और क्रियान्वित होती है ।
- मूल अधिकार देश के राजनैतिक जीवन दल विशेष की तानाशाही स्थापित होने से रोकने के लिए आवश्यक होते हैं ।
- मूल अधिकार व्यक्ति स्वातंत्र्य और सामाजिक नियंत्रण के बीच उचित सामंजस्य स्थापित करते हैं ।
- श्री. जी. एन. जोशी के अनुसार एक स्वतंत्र प्रजातंत्रात्मक देश में मूल अधिकार राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन के प्रभावदायक उपयोग के एकमात्र साधन हैं । प्रजातंत्रात्मक सिद्धांत लागू होने हेतु इन अधिकारों की आवश्यकता होती है ।
- नागरिकों के मूल अधिकार मानवीय स्वतंत्रता के मापदंड और संरक्षक हैं । इस कारण उनका अपना मनोवैज्ञानिक महत्त्व है ।