अयोध्या सिंह उपाध्याय "हरिऔध" का जीवन परिचय | Ayodhya Singh Upadhyay ka jeevan parichay

द्विवेदीयुग के कविताकारों में से प्रमुख कवि श्री हरिऔध की कविताएँ प्राचीन तथा नवीन के मध्य सटीक व सुन्दर समन्वय प्रस्तुत करती है। इन कविताओं में प्रयुक्त भाषा ने खड़ी बोली हिन्दी को नवीन विकसित एवं समृद्ध स्वरुप प्रदान किया है

“अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' जन्म उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ में स्थित निजामाबाद नामक स्थान पर 15 अप्रैल 1865 ई. को हुआ था । " हरिऔध जी के चाचा ब्रह्मा सिंह जी श्रेष्ठ विद्वान तथा ज्योतिष थे। संतानहीन चाचा ने इनका वात्सल्य भाव से लालन पालन किया तथा आपके व्यक्तित्व विकास में पूर्ण सहयोग किया। प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही माता एवं चाचा जी के साथ रहकर प्राप्त करने के बाद 7 वर्ष की आयु में निजामाबाद के एक स्कूल में आपका प्रवेश कराया गया।

भोलासिंह उपाध्याय तथा रुक्मिणी देवी के प्रतिभावान इस पुत्र ने सन् 1879 में प्रथम श्रेणी में मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण करके अंग्रेजी पढ़ने के लिए काशी के क्वींस कॉलेज में दाखिला लिया । स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के चलते अपना अध्ययन बनारस से छोड़कर घर पर ही आपकी शिक्षा संस्कृत तथा फारसी में जारी रही।

"सन् 1882 ई. में सत्रह वर्ष की अवस्था में अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' का विवाह सिकन्दरपुर के निवासी पंडित विष्णुदत्त जी की सुपुत्री अन्नत कुमारी के साथ हुआ। " अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की पत्नी अल्पशिक्षित किंतु गृहकार्य में दक्ष तथा व्यावहारिक महिला थी।

चौतीस वर्ष के लगभग सरकारी नौकरी करने के बाद सेवानिवृत्त होने पर पंडित मदनमोहन मालवीय के आग्रह पर काशी विश्वविद्यालय में अवैतनिक रुप से सेवा कार्य किया। लगभग बीस वर्षों तक यहाँ आपने पूर्ण मनोयोग से सफल अध्यापन कार्य किया। पचहत्तर वर्ष की उम्र में विश्वविद्यालय के अधिकारियों के आग्रह पर सेवा से मुक्त हुए। सन् 1905 ई. में पत्नी का देवलोक गमन हो गया। तब पुनः विवाह न करके आपने जीवन के शेष 42 वर्ष विधुर जीवन व्यतीत किया। सेवानिवृत्ति के पश्चात् अपने घर में रहकर ही साहित्य साधना में रत् रहे। "अंततः 6 मार्च 1947 को आपका देहावसान हो गया ।" 

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