हठयोग के प्रमुख ग्रन्थों का सामान्य परिचय
हठयोग के ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्व यह आवश्यक है कि हठयोग की परम्परा कहॉं से शुरू हुई इस प्रश्न के उत्तर आपको कहानी को पढ़कर स्वत: ही आ जायेगा। एक बार भगवान शिव, मॉं पार्वती को लेकर भ्रमण पर निकले थे। भ्रमण के दौरान दोनों एक सरोवर के किनारे बैठ जाते है मॉं पार्वती की इच्छा पर भगवान शिव उन्हें हठयोग की शिक्षा देते है। भगवान शिव द्वारा दी गई यह शिक्षा सरोवर में एक मछली सुन लेती है जब भगवान शिव को इस बात का आभास होता है तो वह उस मछली को मत्स्येन्द्र नाथ बना देते है।स्वयं हठप्रदीपिका के प्रणेता स्वात्मा राम जी हठप्रदीपिका की शुरूवात करते कहते हैअर्थात् उन सर्वशक्तिमान आदिनाथ को नमस्कार है जिन्होंने हठयोगविद्या की शिक्षा दी थी। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि भगवान शिव ही हठयोग के आदि प्रणेता है। पुन: स्वात्माराम कहते है-अर्थात मत्येन्द्रनाथ, गोरक्ष आदि योगी हठविद्या के मर्मज्ञ थे और उन्हीें की कृपा से योगी स्वात्माराम ने इसे जाना अब हम आपके अवलोकनार्थ हठयोग के प्रमुख ग्रन्थों का सामान्य परिचय देते है।
‘श्रीआदिनाथाय नमोSस्तुतस्मैयेनोपदिष्टार हठयोगविद्या’’ हठ0प्रदी0 1/1
हठविद्या हि मत्ये्वान्द्रागोरक्षाद्या विजानते
स्वादत्मावरामोSथवा योगी जानीते तत्प्रसादतरू हठ0प्रदी0 1/4
1. हठ प्रदीपिका
हठप्रदीपिका स्वामी स्वात्माराम द्वारा प्रतिपादित हठयोग का एक ग्रन्थ है। अगर आपने इतिहास का अध्ययन किया है तो 10वीं तथा 15वीं शताब्दी में अपने मुट्ठी भर स्वार्थ के लिए कई लोग हठयोग व राजयोग के समबन्ध में भ्रान्तियॉ फैलाते रहे। कई लोगों का मत था कि हठयोग व राजयोग दो अलग-अलग मार्ग है इन दोनों रास्तों का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। इन भ्रामक तत्वों ने वेश-भूषा, इत्यादि आडम्बरों पर जोर देकर भ्रान्तियॉं फैलाई थी परन्तु इस शस्य श्यामला धरती पर जब भी विकृतियॉं पैदा हुई और अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँची तब कोई न कोई महापुरूष का अवतरण हुआ है।स्वात्माराम नाम के इस महापुरूष ने ऐसे समय में हठप्रदीपिका नामक प्रमाणिक वैज्ञानिक पुस्तक लिखकर हठयोग के वास्तविक स्वरूप को हमारे सामने रखा। स्वात्माराम जी ने कहा केवलं राजयोगाथहठविद्योपदिश्यसते ह0प्र0 1/2 अर्थात केवल राजयोग की प्राप्ति के लिए हठयोग का उपदेश दिया जा रहा है।
अर्थात हे योगेश्वर, तत्व ज्ञान का कारण जो धटस्थ योग है, उसे मैं जानने का इच्छुक हूँ हे प्रभु कृपा करके उसे मेरे प्रति कहिए। महर्षि घेरण्डक कहते है - अर्थात हे महाबाहों, तुम्हारे प्रश्न के लिए मैं तुम्हारी प्रशंसा करता हूँ। हे वत्स, तुमने जिस विषय की जिज्ञासा की है उसे मैं तुम्हारे प्रति कहता हूँ। इस प्रकार राजा चिण्कापालि प्रश्न पूछते है और महर्षि घेरण्ड उत्तर देते है। इस प्रश्न उत्तर की शैली में पूरी घेरण्ड संहिता लिखी गई है। महर्षि घेरण्ड कौन थे इस बात का किसी को पता नहीं है सर्वप्रथम प्रति 1804 की है। मालूम पड़ता है कि महर्षि घेरण्ड एक वैष्णव संत रहे होंगे उन्होंने कई श्लोकों में विष्णु की चर्चा की है।
2. घेरण्ड संहिता -
घेरण्ड संहिता की रचना स्वात्माराम जी ने की थी, कहा जाता है कि एक राजा चण्डिकापालि महर्षि घेरण्ड की कुटी में गये और प्रणाम कर एक प्रश्न कियाघटस्थ योगं योगेश तत्वाज्ञानस्य कारणम।
इदानीं श्रोतुमिच्छाोमि योगेÜवर वद प्रभो घे0सं0 1/2
साधु-साधु महाबाहो यन्मां त्वं परिपृच्छसि
कथयामि च ते वत्स सावधानोवधारय घे0सं01/3
शायद ऐसा हो कि वैष्णव सन्त होने के साथ-साथ इन्होंने हठयोग को अपनाया हो। घेरण्ड संहिता को लोग सप्तांग योग के नाम से भी जानते है।
3. शिव संहिता
शिव संहिता योग की एक मुख्य ग्रन्थ है, कहा जाता है कि स्वयं आदिनाथ शिव ने इसकी रचना की थी। शिव संहिता पर अनेकानेक विद्वानों ने भाषानुवाद किया है। शिव संहिता को ‘पंच प्रकरण’ भी कहा जाता है।शिव संहिता में योग की विविध विषयवस्तु का वर्णन मिलता है इनमें साधक की दिनचर्या तथा साधना पद्धति का ज्ञान व विज्ञान निहित है। नाडी ज्ञान, चक्र तथा कुण्डलिनी का इसमें वृहद वर्णन मिलता है।
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