इंटरनेट प्रोटोकॉल क्या है प्रकार और कैसे काम करता है | Internet Protocol In Hindi

सामान्य जीवन में जब हम किसी को कोई डाक भेजते हैं तो उसके लिए हमें उस व्यक्ति के पोस्टल पते की आवश्यकता पड़ती है, जिससे भेजा गया सामान सही पते पर पहुंच सके। ठीक इसी प्रकार इंटरनेट की दुनिया में भी एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर तक जानकारी (डाटा) भेजने के लिए पते की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए कुछ नियमों का पालन करना होता है, जिसे इंटरनेट प्रोटोकॉल कहते हैं । अर्थात् इंटरनेट तथा अन्य नेटवर्क पर एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर में डाटा का आदान–प्रदान करने हेतु नियमों का समूह इंटरनेट प्रोटोकॉल कहलाता है। इन नियमों (प्रोटोकॉल्स) को इन्स्टिट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर (IEEE) द्वारा प्रकाशित किया गया, जो RFC 791 में उल्लेखित है । ये नियम ही डाटा का संचरण निर्धारित और शासित करने का काम करते हैं।

इंटरनेट या इंटरनेट से जुड़े हर एक कम्प्यूटर का अपना एक आईपी एड्रेस होता है, जो उसे दूसरे कम्प्यूटर से बिल्कुल अलग पहचान दिखाता है। इंटरनेट प्रोटोकॉल का कार्य इंटरनेट पर जुड़े एक कम्प्यूटर से दूसरे तक डाटा को भेजना होता है, जिसके लिए आईपी एड्रेस का प्रयोग किया जाता है। आईपी एड्रेस में एड्रेस शब्द से आशय किसी पते से है, लेकिन असल में जब हम अपने फोन या कम्प्यूटर को इंटरनेट से जोड़ते हैं तो आपके डिवाइस को इंटरनेट पर पहचान के लिए एक खास कोड दिया जाता है, जिससे उसकी लोकेशन और नेटवर्क का पता चलता है। इस कोड को आईपी एड्रेस या इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस कहते हैं।

आईपी एड्रेस चार भागों में बंटा रहता है। प्रत्येक को डॉट अर्थात् दशमलव के चिह्न द्वारा अलग किया जाता है। आईपी एड्रेस के प्रत्येक भाग में 0 से 255 अंक होते हैं। जैसा एक आईपी एड्रेस 184.106.117.64 है। यह आईपी एड्रेस का चौथा वर्जन है, इसलिए इसे आईपी वर्जन 4 या इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 4 कहते हैं। इंटरनेट के नेटवर्क या इंटरनेट से जुड़ी प्रत्येक डिवाइस का अपना अलग आईपी एड्रेस होता है। अगर दुनियाभर की सभी डिवाइस को अलग-अलग आईपी एड्रेस दिया जाए तो आईपी वर्जन 4 से 270 लाख अलग-अलग आईपी एड्रेस बनाए जा सकते हैं।

इंटरनेट प्रोटोकॉल सिस्टम भारतीय डाक सेवा ( इंडियन पोस्टल सर्विस) के समान ही कार्य करता है । जब एक कम्प्यूटर ( सोर्स) से दूसरे कम्प्यूटर (डेस्टेनेशन) में कोई डाटा भेजा जाता है तो इसे छोटे-छोटे टुकड़ों (पैकेट्स) में बांटकर भेजा जाता है। इन टुकड़ों को आईपी पैकेट्स अथवा डाटाग्राम कहा जाता है। प्रत्येक डाटाग्राम में प्रेषक और प्राप्तकर्ता की जानकारी होती है। इसे आईपी इन्फर्मेशन कहते हैं। इंटरनेट पर प्रत्येक डाटाग्राम स्वतंत्र यात्रा करता है और इसका कोई मार्ग भी निर्धारित नहीं रहता है। इंटरनेट प्रोटोकॉल केवल डिलिवर करने का काम करता है। इसका प्रेषक कम्प्यूटर (होस्ट) और प्राप्तकर्ता (सोर्स) कम्प्यूटर से प्रत्यक्ष जुड़ाव (डायरेक्ट कनेक्शन) नहीं रहता है। डाटाग्राम का क्रम निर्धारण एक अन्य प्रोटोकॉल ट्रांसमिशन कन्ट्रोल प्रोटोकॉल टीसीपी अर्थात् ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल द्वारा किया जाता है। इन दोनों को सामूहिक रूप में टीसीपी / आईपी कहा जाता है। ट्रांसमिशन कन्ट्रोल प्रोटोकॉल के अलावा यूजर डाटाग्राम प्रोटोकॉल (यूडीपी) का भी उपयोग होता है ।

इंटरनेट प्रोटोकॉल सूएट में उपलब्ध चार कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल लेयर्स (लिंक) लेयर, इंटरनेट लेयर, ट्रांसपोर्ट लेयर और एप्लीकेशन लेयर) में से इंटरनेट लेयर प्राथमिक प्रोटोकॉल है ।

इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस के वर्जन

इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस के दो वर्जन हैं -

  1. इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 4 (IPV 4 )
  2. इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 6 (IPV 6 )

1. इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 4 (IPV 4 )

इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 4 इंटरनेट प्रोटोकॉल का सबसे पहला वर्जन है, जिसकी शुरुआत पहली बार 1983 में अरपानेट में की गई थी। तब से आज तक इसका लगातार और सबसे ज्यादा उपयोग किया गया है। इसी कारण यह आज तक सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन बन गया है, लेकिन कुछ साल से तकनीकी क्षेत्र में नए आविष्कार हुए हैं।

इसमें इंटरनेट का बोलबाला हो गया है, जिसमें हर एक डिवाइस को इंटरनेट से जुड़ी होने के कारण इंटरनेट की आवश्यकता होती है। इसी के फलस्वरूप नए आईपी एड्रेस की मांग बढ़ गई थी, जो इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 4 द्वारा पूरी नहीं की जा सकती थी। अब नए आईपी एड्रेस की कमी होने लगी थी। इसी कमी को पूरा करने के लिए इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 6 को लाया गया था।

इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 4 (IPV 4 ) की विशेषताएं

  1. यह 32 बिट्स इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस है।
  2. यह एक नंबरिक एड्रेस होता है, जिसमें बायनरी बिट्स को डॉट () द्वारा अलग किया जाता है। उदाहरण - (192.159.252.94)
  3. इसमें 12 हिडेट फील्ड होते हैं।
  4. यह ब्रॉडकास्ट को सहायता (सपोर्ट) करता है।
  5. यह वर्चुअल लैंथ सबनेट मास्क (VLSM) को सहायता (सपोर्ट) करता है।
  6. इसमें 576 बिट्स पैकेट साइज की आवश्यकता होती है।
  7. dhcp पता मैनुअल कॉन्फिगरेशन को सहायता (सपोर्ट) करता है। 

2. इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 6 (IPV 6 )

इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 6 अब इंटरनेट प्रोटोकॉल का नया वर्जन है। इसे इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 4 के विकल्प के रूप में तैयार किया गया है। हालांकि अभी भी इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 4 का काफी उपयोग हो रहा है, लेकिन धीरे-धीरे लोग इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 6 को पूरी तरह से अपना लेंगे।

इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 6 की शुरुआत इंटरनेट इंजीनियरिंग टॉस्क फोर्स द्वारा 1994 में कर दी गई थी। इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 6 में इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 4 की तुलना में नए इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस की बहुत बड़ी संख्या उपलब्ध है, क्योंकि यह इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 4 के 32 बिट्स की तुलना में 128 बिट्स अर्थात् हेक्साडेसिमल इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस वितरित कर सकता है। अर्थात् इसमें नंबर और अल्फाबेट दोनों का ही उपयोग किया जा सकता है, जिससे आईपी एड्रेस की बहुत बड़ी संख्या तैयार की जा सकती है।

इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 6 ( IPV 6 ) की विशेषताएं

  1. यह 128 बिट्स इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस है।
  2. यह एक अल्फान्यूमरिक एड्रेस होता है, जिसमें बायनरी बिट्स को कॉलन ( : ) द्वारा अलग किया जाता है उदाहरण (2FFE : C200 : 9432 : DF88 : 0023 : 5648 : AADF : 00FD)
  3. इसमें 8 हिडेट फील्ड होते हैं।
  4. यह ब्रॉडकास्ट सहायता ( सपोर्ट) नहीं करता, बल्कि मल्टीटॉस्क रूटिंग को सपोर्ट करता है।
  5. यह वर्चुअल लैंथ सबनेट मास्क (VLSM) को सहायता (सपोर्ट) नहीं करता है।
  6. इसमें 128 बिट्स पैकेट साइज आवश्यकता होती है।
  7. dhcp पता ऑटो कॉन्फिगरेशन को सहायता (सपोर्ट) करता है।

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