मोहनदास नैमिशराय का जीवन परिचय एवं रचनाएँ

मोहनदास नैमिशराय का जन्म 5 सितम्बर 1949 में उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर मेरठ में हुआ है । उन्होंने अपने जन्म के बारे में लिखा है कि “मेरठ जैसे ऐतिहासिक शहर की उपज था मैं, जिसमें हर जाति और हर वर्ग के लोग रहते हैं । मोहनदास नैमिशराय के पिताजी का नाम सूर्यकांत था । वे हायस्कूल पास होने के कारण मिलिटरी विभाग में स्टोअरकीपर की नौकरी करते थे । 

मोहनदास अपने पिताजी को 'भाई' कहकर पुकारते थे । माँ की मृत्यु के बाद कुछ ही दिनों में पिताजी ने दूसरी शादी की थी, यह बात मोहनदास को बिलकुल पसंद नहीं थी । 

जब नैमिशराय शिशु अवस्था में थे तभी दुर्भाग्यवश उनकी माँ की मृत्यु हुई । परिणामस्वरूप उन्हें माँ का प्यार नहीं मिला ।

मोहनदास के पिताजी ने बुलंद शहर के अमरगढ़ गाँव की एक अनपढ़ स्त्री से दूसरी शादी की थी । सब लोक उसे ‘पुरबनी’ कहते थे । मोहनदास उसे 'चाची' कहकर पुकारते थे । 'पुरबनी' मोहनदास की सौतेली माँ होते हुए भी, नैमिशराय के साथ अच्छा व्यवहार करती थी । वह मोहनदास को 'मौनदास' या 'बेटा' कहा करती थीं । अपने 'ज्ञानेश' नाम के बेटे की तरह ही मोहनदास के साथ ममतामई माँ जैसा व्यवहार करती थी । वह सीधी-सादी और भोली थी । कुरता-धोती पहनती थी, अनपढ़ होते हुए भी परंपराओं का पालन नियमित रूप से करती थी । हर समय सिर पर पल्लू ओढे हुए रहती थी । वह न गोरी थी, न ही सुंदर थी लेकिन घर की जिम्मेदारियाँ निभाने में सक्षम थीं ।

नैमिशराय के जीवन में जो स्थान माँ और सौतेली माँ का था, उससे बढकर चाची का स्थान रहा है । क्योंकि मृत्यु के पश्चात शिशु अवस्था से युवावस्था तक लेखक की परवरिश करने की सबसे कठिन लेकिन अत्यंत माँ की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी उनकी चाची ने निभाई है । उन्होंने मोहनदास को अपनी संतान की तरह पाला-पोसा । 

मोहनदास नैमिशराय के पिताजी के बडे भाई का नाम 'रामप्रसाद' था । वे लेखक के ताऊ होते हुए भी लेखक उन्हें ‘बा’ कहकर पुकारते थे । जिस प्रकार 'ताई माँ' ने लेखक की माँ का कर्तव्य निभाया ठीक उसी प्रकार ताऊ जी ने लेखक के पिताजी का कर्तव्य पूरा किया है । ताऊ जी सीधा-साधा व्यक्ति था । खास पढ़े-लिखे न होते हुए भी वे हस्ताक्षर कर सकते थे । वे अपने कच्चे घर में चप्पल बनाने का काम किया करते थे । नौसिखिया कारीगर उन्हें 'उस्तादजी' कहते थे ।

‘ताऊ’ की सबसे बडी विशेषता यह है कि वे स्वभाव से नास्तिक थे । किसी देवी-देवता को वे बिलकुल महत्त्व नहीं देते थे । बस्ती में उनकी अच्छी-खासी उठ बैठ होने के कारण और मितव्ययी, संयत एवं अजातशत्रू स्वभाव के कारण वे नगरपालिका के चुनाव में अच्छे वोटों से जित कर नगरपालिका के सदस्य भी बन चुके थे । सदस्य बनने के बाद, उनका स्वभाव वैसा ही रहा और चप्पल बनाने का काम, वैसा ही निरंतर चलता रहा था ।

'ताऊ' ईमानदार और दरिया दिल स्वभाव के थे । चुंगी विभाग मिलने पर भी उन्होंने कभी लाभ नहीं उठाया था । परिणामस्वरूप बस्ती में लोग उनकी इज्जत करते थे । पंचायत में उन्हें हमेशा बुलाया जाता था । नैमिशराय ने उनके बारे में कृतज्ञता की भावना व्यक्त करते हुए लिखा है कि “उन्होंने मुझे हँसी दी । खिलखिलाहट दी ।” ‘ताऊ’ बहुत ही मेहनती और अष्टौप्रहर कष्ट करनेवाले व्यक्ति थे । मुर्दा और चमडे से उनका अजीब सा रिश्ता हो गया था । वास्तव में ‘ताऊ’ मोहनदास के सिर्फ प्रेरणास्थान नहीं थे, बल्कि उनके जीवन का एक टुकडा, एक अविभाज्य अंग थे ।

मोहनदास नैमिशराय के ताऊ रामप्रसाद जी ने नैमिशराय को गोद लिया था । परिणामस्वरूप उनका बचपन ताऊजी के घर में ही बीत गया है । जब वे शैशवावस्था में थे, तब माँ की मृत्यु हो जाने के कारण, उनकी परवरिश ताई माँ ने की । एक ओर ताऊ का पितृप्रेम और दूसरी ओर ताई माँ की ममता की छाँव में मोहनदास ने अपना बचपन बिताया है । 

मोहनदास नैमिशराय की रचनाएँ

 उनकी रचनाओं का मोटे तौर पर परिचय इस प्रकार है -

1. क्या मुझे खरीदोगे :- सन 1990 में प्रकाशित यह नैमिशराय का प्रथम उपन्यास है । वैसे तो इस उपन्यास की नाटक के रूप में लिखी गई थीं । प्रस्तुत उपन्यास नारी जीवन की समस्या और उसके शोषण-उत्पीडन को व्यक्त करता है । नारी के यौन शोषण, बलात्कार और वेश्या जीवन का चित्रण करना, यही इस उपन्यास का मुख्य उद्देश्य है ।

2. मुक्तिपर्व :- सन 2002 में प्रकाशित यह नैमिशराय का दूसरा सामाजिक और समस्याप्रधान उपन्यास है । 

3 वीरांगना झलकारी बाई :- नैमिशराय का यह तीसरा उपन्यास है । झाँसी के भोजला गाँव की 'झलकारी' उपन्यास की नायिका है । कोरी परिवार में जन्मी झलकारी, साहस, शौर्य और पराक्रम में माहिर होते हुए भी वह उपेक्षित रही। लेखक ने झलकारी बाई के परिवार वालों और रिश्तेदारों की प्रत्यक्ष भेंट कर, उनसे विस्तार से बातचीत करने के बाद प्रस्तुत उपन्यास लिखा है ।

4. आज बाजार बंद हैं :- नैमिशराय का यह चतुर्थ उपन्यास है, जो सन 2004 में प्रकाशित किया गया है । 

5. आवाजें :- सन 1978 में उनकी पहली कहानी 'सबसे बड़ा सुख' कथालोक पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है । उनकी महत्त्वपूर्ण कहानियाँ 'आवाजें ' कहानी संग्रह में संकलित की गई है । सन 1998 में प्रकाशित इस संग्रह में तेरह कहानियों का समावेश किया गया है । 

6. हमारा जवाब :- सन 2005 में प्रकाशित किया गया है । इसमें 19 कहानियों का समावेश किया गया है । 

7. आग और आंदोलन :- सन 2001 में प्रकाशित इस काव्य संग्रह में कुल 43 कविताएँ संग्रहित हैं । सन 1966 से 1998 तक के बत्तीस वर्षो में आए हुए अनुभवों, उतार-चढावों को कवि ने इसमें सशक्तता से व्यक्त किया है । 

8. अपने - अपने पिंजरे :- ‘अपने-अपने पिंजरे’ मोहनदास नैमिशराय की दो भागों में लिखी बहुचर्चित आत्मकथा है । इसका प्रथम खंड सन 1995 में और दूसरा खंड 2001 में प्रकाशित किया गया है । 

9. अदालतनामा :- सन 1989 में प्रकाशित इस नाटक में आजादी के बाद की पूँजीवादी व्यवस्था पर व्यंग्य शैली में करारी चोट की है । रामसिंह इस नाटक के नायक हैं । जो स्वतंत्रता सेनानी हैं । वह अपना जीवन ईमानदारी से बीताना चाहता है । जब वह करोड़पती लोगों को देखता है, तब अस्वस्थ हो जाता है । इन्हीं लोगों के कारण नैतिक मूल्यों का स हो रहा है, इस बात पर वह चिंतित हो जाता है । क्या ऐशो आराम से जीवन जीना यही मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य हो सकता है ? यही सवाल लेखक ने पाठकों के सामने रखा है । प्रस्तुत नाटक मानसिक स्तर पर बीमार समाज का इलाज है । हमारे समाज को गरीबी से नहीं बल्कि बढती हुई महाजनी सभ्यता से बड़ा खतरा है, यही संदेश यह नाटक देता है ।

10. हैलो कामरेड :- प्रस्तुत नाटक का प्रथम मंचन, 16 जुलाई 1984 में, राही कला संगम, नई दिल्ली द्वारा किया गया था । पुस्तक के रूप में यह नाटक सन 2001 में प्रकाशित किया गया है । 

11. हिंदी रेडियो नाटक :- सन 1980 के दशक में नैमिशराय की नियुक्ति दृश्य एवं श्रव्य निदेशालय में 'डेमोंस्ट्रेटर' के पद पर हुई थी । परिणामस्वरूप वे फिल्म, वृत्तचित्र, टी. वी. सिरियल तथा रेडियो नाटक लेखन से जुड़े थे । इस सिलसिले में उन्होंने सौ से अधिक रेडियो नाटकों की स्क्रिप्ट लिखी थी । इनमें से महत्त्वपूर्ण सत्ताईस रेडियो नाटकों का 'हिंदी रेडियो नाटक' इस पुस्तक में समावेश किया है । इस पुस्तक में संकलित सभी नाटक सामाजिक समस्याओं को उजागर करते हैं । परिणामस्वरूप इन नाटकों की प्रासंगिकता आज भी है और भविष्य में भी रहेगी ।

12. निबंध साहित्य :-

(i) विरोधियों के चक्रव्यूह में डॉ. अम्बेडकर - सन 1997 में प्रकाशित इस ग्रंथ में जिन लोगों ने डॉ. बाबासाहब अंबेडकर के व्यक्तित्त्व पर कीचड उछाला हैं, असंगत और तर्कहीन सवाल किए हैं, उनके उत्तर दिए हैं । 

(ii) बहुजन समाज - सन 2003 में प्रकाशित इस ग्रंथ में 'बहुजन समाज पार्टी' के इतिहास को समेटा है । इसके साथ इसमें दलित नेता काशीराम, मायावती और बहुजन समाज पार्टी के बारे में राजनैतिक तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं के मन में उभरे गए सभी सवालों के जवाब भी विस्तार से दिए गए हैं। 

(iii) स्वतंत्रता संग्राम के दलित क्रांतिकारी -  सन 2004 में प्रकाशित यह ग्रंथ, स्वतंत्रता संग्राम में उल्लेखनीय कार्य करने के बाद भी उपेक्षित रहे दलित क्रांतिकारियों के जीवन और कार्य का इतिवृत्तांत है । सन 1857 के आंदोलन में जिन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, उनका जीवन चरित्र भी इस ग्रंथ में संक्षेप में समेटा गया है ।

मोहनदास नैमिशराय को प्राप्त पुरस्कार

मोहनदास नैमिशराय को समय-समय पर विविध संस्थाओं की ओर से पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया है । उन्हें प्राप्त पुरस्कारों में से उल्लेखनीय पुरस्कार इस प्रकार है -

  1. डॉ. आंबेडकर स्मृति पुरस्कार - अनुसूचित जाति, विकास परिषद, नई दिल्ली, सन - 1993 
  2. पत्रकारिता अवॉर्ड - पीपुल्स विक्टरी, नार्थ एवेन्यु, नई दिल्ली, सन 1993
  3. वाणिज्य हिंदी ग्रंथ पुरस्कार - वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, सन - 1995-96
  4. डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार - भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, सन - 1998
  5. बिरसा मुंडा पुरस्कार - रमणिका फाऊंडेशन, नई दिल्ली, सन – 2003
  6. डॉ. आंबेडकर इंटरनेशनल मिशन - डॉ. आंबेडकर इंटरनेशनल मिशन, ए. बी. कनाडा, सन 2004

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