चुनाव आयोग के कार्य क्या है?

निर्वाचन प्रकिया के संदर्भ में यह कहा गया है कि, निर्वाचन एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा आम जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है एवं साथ ही उन पर प्रभावी नियंत्रण रखती है । जनसंख्या वृद्धि के कारण वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अप्रत्यक्ष लोकतंत्रात्मक संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है। जिसमें नागरिक अपने प्रतिनिधियों में माध्यम से ही सत्ता संचालन में अपनी सहभागिता निर्धारित करते है ।

लोकतंत्र के आधार स्तंभ के रूप में मताधिकार एवं प्रतिनिधित्व का स्वीकार्य किया गया है इन आधार स्तम्भों के प्रयोग हेतु एवं कर्तव्य देने हेतु निर्वाचन की आवश्यकता होती है, लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में श्रेष्ठ सरकार का गठन जनता के समूचित रूप से अपने अधिकारों के प्रयोग से ही संभव है। अतएव वर्तमान लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में चुनाव प्रक्रिया का महत्वपूर्ण योगदान है।

लोकतंत्रात्मक प्रणाली में निष्पक्ष एंव स्वतंत्र निर्वाचन कराने की जिम्मेदारी संवैधानिक व्यवस्था द्वारा निर्वाचन आयोग को दी गयी है। संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक निर्वाचन से संम्बधित अनुच्छेद है । '

विभिन्न सम्प्रदायों, जातियों एवं धर्मो से युक्त भारत वर्ष में निर्वाचन कार्य स्वयं ही अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाता है। आयोग के कार्यों में जटिलता के तत्व के रूप में गरीबी, अशिक्षा, जागरूकता का अभाव, सामाजिक चेतना का अभाव व्यापक रूप से विराजमान है। तथापि अभी तक 14 बार लोकसभा के लिए आम चुनाव तथा अन्य विधान सभाओं के चुनाव में आयोग अपनी जिम्मेदारी का कुशलतापूर्वक संचालन कर रहा है।

संविधान के अनुच्छेद 324 ( 1 ) के अनुसार संसद, प्रत्येक विधान मण्डल, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के समस्त चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण आयोग द्वारा किया जाएगा। आयोग एक संवैधानिक संस्था है, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चुनाव आयोग की जिम्मेदारियां लगातार बढ़ती जा रही है। 

चुनाव आयोग के कार्य 

टी० एन० शेषन ( पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त) के कार्यकाल से आयोग के कार्य एवं शक्तियों के चुनाव आयोग के कार्य निम्नवत है-

  1. निर्वाचन क्षेत्र के परिसीमन करना
  2. मतदाता सूची की तैयारी एव पुर्नसंशोधन
  3. चुनाव हेतु चुनाव चिन्ह आवंटित करना
  4. निर्वाचन में राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना एवं समाप्त करना
  5. निर्वाचन हेतु चुनाव तिथि निश्चित करना एवं उसकी घोषणा करना
  6. आदेश आचार संहिता लागू करना
  7. नामांकन, नामांकन पत्रों की जांच, प्रत्याशीयों की योग्यता - अयोग्यता का निर्धारण करना
  8. प्रचार कार्य की अंतिम समय सीमा की घोषणा
  9. चुनाव प्रचार के दौरान भ्रष्ट आचरण की निगरानी करना
  10. चुनावी खर्च का संपूर्ण विवरण एकत्रित करना
  11. सुचारू मतदान संपन्न कराना एवं पुर्नमतदान की व्यवस्था करना
  12. सरकारी अभिकरण की चुनावी कार्य में तैनाती
  13. मतगणना कार्य का संपादन कराना
  14. निर्वाचन में विजयी प्रत्याशीयों की सूची राष्ट्रपति एवं राज्यपाल का सौंपना
1. निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन करना - चुनाव क्षेत्र दो प्रकार के होते है- लोक सभा चुनाव क्षेत्र तथा दूसरा विधान सभा चुनाव क्षेत्र ।

निर्वाचन आयोग संसदीय एवं विधान सभा क्षेत्रों के परिसीमन से सदैव युक्त रहा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 327 द्वारा संसद को चुनाव क्षेत्रों का निर्धारण करने का अधिकार प्राप्त है ।

2. मतदाता सूची की तैयारी व पूर्नसंशोधन -  निर्वाचन आयोग के महत्वपूर्ण एवं प्रमुख दायित्व मतदाता सूची को व्यवस्थित रखना है, एक अच्छी मतदाता सूची चुनाव प्रणाली की आधारशिला है जो स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

भारत की संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार "ऐसे व्यक्ति जो 18 वर्ष की आयु या उससे अधिक की आयु पूरी कर चुके हो उनको आयोग द्वारा मतदाता सूची में मतदाता के रूप में सम्मिलित किया जाएगा।" 

मतदाता होने के लिए यह आवश्यक है कि वह भारत का नागरिक हो तथा दिमागी रूप से स्वस्थ भी हो । '

भारत में लोकप्रतिनिधित्व कानून 1850 की धारा 28 में यह प्रावधान किया गया है कि व्यक्ति मतदान का अधिकारी उसी अवस्था में ही हो सकता है जबकि मतदाता सूची में उसका नाम पंजीकृत हो ।

संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य डा० भीम राव अम्बेडकर ने मतदाता सूची के महत्व को स्वीकार करते हुए कहा था कि "हर मतदान क्षेत्र की पृथक मतदाता सूची होनी चाहिए जिसके आधार पर आम चुनाव संपन्न कराए जाए अतएव मतदाता सूची बनाना कानूनी आनिवार्यता तथा चुनाव की पूर्व शर्त भी है। 

3. निर्वाचन हेतु चुनाव चिन्ह का आवंटन - आयोग के अधिकार क्षेत्र में राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों को निर्वाचन हेतु चुनाव चिन्ह प्रदान करना है । चुनाव चिन्हों के माध्यम से मतदाताओं को विशेषतया निरक्षर मतदाताओं को अपना प्रतिनिधि चयन करने में सहायता मिलती है।

प्रत्येक चुनाव में मतपत्र में प्रत्याशी के नाम के समक्ष उसका चुनाव चिन्ह अंकित रहता है जिससे जनता अपनी पंसद के उम्मीदवार का चयन कर स्वतंत्रतापूर्ण एवं सरल ढंग से अपने मताधिकार का प्रयोग करती है। 

निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित चुनाव चिन्ह दो प्रकार से वर्गीकृत है— 1. राजनीतिक दल जो मान्यता प्राप्त है उनके लिए चुनाव चिन्ह 2. स्वतंत्र चुनाव चिन्ह

निर्वाचन आयोग मान्यता प्राप्त और गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह आवंटित करता है साथ ही आयोग द्वारा निर्दलीय प्रत्याशीयों के लिए चुनाव चिन्ह आवंटन का कार्य किया जाता है।

सामान्यतः एक बार किसी दल को कोई चुनाव चिन्ह आवंटन कर दिया जाता है तो वही निशान आगे के चुनाव में भी उसकी पहचान के रूप चलता रहता है। चुनाव चिन्हों को अपनी पसंद के अनुकूल प्राप्त करने के होड़ भी प्रत्याशीयों में लगी रहती है। आयोग इन आवंटित चिन्हों से उस प्रत्याशी या उस दल को वंचित करने का भी अधिकार रखता है।

4. राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना- निर्वाचन के समय उपलब्ध राजनीतिक दलों (राष्ट्रीय व क्षेत्रीय) को मान्यता देने की विशेष शक्ति निर्वाचन आयोग के पास विद्यमान है। 

निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों को पंजीकृत करने का अधिकार रखता है। आयोग इस संबंध में दो तरीके से अपना कार्य करता है- पहला आयोग राजनीतिक दल को राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता देता है एवं दूसरा मान्यता प्राप्त दल की मान्यता समाप्त करना व उनका पंजिकरण अवैध सिद्ध करने का अधिकार भी आयोग को प्राप्त है। चुनाव चिन्ह आदेश "1968" के अनुसार राजनीतिक दलों को दो श्रेणियों में विभाजन किया गया है- मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल, गैर मान्यता प्राप्त दल ।

मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल दो भागों में राष्ट्रीय राजनीतिक दल, क्षेत्रीय (राज्य स्तरीय ) दल के रूप में विद्यमान है। किसी भी दल को आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त करने हेतु कुछ दिशा निर्देशों का पालन करना होता हैं, जो चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित किये गये है।

5. निर्वाचन कार्यक्रम का निर्धारण करना - निर्वाचन आयोग चुनाव संबन्धी गतिविधियो का संचालन करता है। चुनाव की तिथि घोषित करने के अपने अधिकार पर आयोग एवं सरकार के मध्य कुछ मामलों पर गतिरोध उत्पन्न हुआ है। चुनाव अधिसूचना राज्यपाल आयोग की सहमति पर संसद के लिए राष्ट्रपति तथा विधान मण्डल के लिए घोषित करता है। आयोग अधिसूचना जारी होने से पूर्व चुनाव तिथि की घोषणा करता है। 1991 तक एक या दो दिन में सम्पूर्ण मतदान संपन्न हो जाता था परन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चुनाव में बढ़ रहे हिंसक हस्तक्षेप से अब चुनाव चार या पांच चरणों में सम्पन्न कराये जाते है। कई चरणों में मतदान से सुरक्षा बलों तथा कर्मचारियों द्वारा आयोग सूचारू ढंग से अपने कार्य को करते हुये चुनावों मे व्याप्त दुष्प्रवृत्ति को रोकने में सक्षम होता है।

अगले क्रम में आयोग द्वारा चुनाव तिथि घोषणा के उपरान्त प्रत्याशीयों के द्वारा नामांकन का कार्य किया जाता हैं। नामांकन के उपरान्त पर्ची की जांच तथा पर्ची की वापसी की तिथि निर्धारित की जाती है। इन सभी प्रक्रियाओं के उपरान्त चुनाव प्रचार आरम्भ होता है एवं मतदान तिथि पर मतदाताओं द्वारा मत का प्रयोग किया जाता है। ये सभी चरण तीस दिन के होते है ।

चुनाव तिथि की घोषणा से मतगणना तक के कार्यक्रम का निर्धारण आयोग द्वारा किया जाता है। आयोग संसदीय क्षेत्र में निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्याशीयों के नामांकन को प्राप्त करने हेतु एक चुनाव अधिकारी नियुक्त करता है। प्रत्याशीयों के रूप में अपने को प्रस्तुत करने के लिए उसे एक प्रारूप भरना होता है। जिसमे आयु, डाक का पता, मतदाता सूची का क्रमांक संलग्न होता है। प्रत्याशी के रूप में भाग लेने के लिए आवश्यक है कि उस क्षेत्र के पंजीकृत मतदाता द्वारा उसके नाम का प्रस्ताव किया गया हो।

6. निर्वाचनों का संचालन - चुनाव की निष्पक्षता को बनाये रखने के लिए आयोग ने आदर्श आचार संहिता बनायी है। इस प्रकार वर्तमान समय में चुनाव प्रचार की देखरेख हेतु आयोग पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करता है । यह पर्यवेक्षक प्रत्याशीयों के चुनाव प्रचार की देखरेख करते हुये प्रत्याशीयों पर नियंत्रण रखते है जिससे वह आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन न कर सके ।

आयोग द्वारा मतदान की तिथि एवं प्रत्याशी द्वारा नामांकन के मध्य चौदह दिन का अंतराल होता है। इस मध्यावधि में प्रत्याशी अपने कार्यक्रमों एवं नितियों को जनता के मध्य राजनैतिक दलों के सहयोग के माध्यम से पहुंचाता है। इन चुनाव प्रचारों में संवैधानिकता स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के अन्तर्गत सभी प्रत्याशीयों को अभिव्यक्ति एवं भाषण की स्वतंत्रता प्राप्त है का समुचित उपयोग चुनाव प्रचार के मध्य अत्यधिक रूप में किया जाता है । परन्तु निर्वाचन आयोग किसी प्रत्याशी या उसके समर्थक द्वारा सम्प्रदायिक भाषण देने की स्थिति में इस संवैधानिक अधिकार पर रोक लगाने में सक्षम है।

चुनाव प्रचार में आकाशवाणी एवं दूरदर्शन ने भी अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान दिया है। निर्वाचन आयोग ने चुनाव प्रसारण हेतु कुछ नियमों का निर्धारण किया है। जिसमें किसी धर्म या सम्प्रदाय पर कोई प्रहार, मित्र देशों की आलोचना, राष्ट्रपति व न्यायालय की सत्यनिष्ठा को कलंकित करने वाले एवं राष्ट्रीय अखण्डता को तोड़ने संबन्धी किसी भी प्रकार के प्रसारण पर आयोग द्वारा मनाही चुनावी कार्यक्रम में मतदान सबसे महत्वपूर्ण चरण है। जो प्रत्याशी व मतदाता वर्ग के लिए अत्यन्त संवेदनशील होता है । प्रत्याशी अपने समर्थकों के साथ मतदान स्थल के पास केन्द्र स्थापित करते है जिसमें मतदाता सूची का स्पष्टतः उल्लेख होता है। इस सूची को मतदान अभिकर्ता वितरित कर मतदाताओं द्वारा शीघ्र मतदान कार्य संपन्न कराने में सहयोग प्रदान करते है । यद्यपि आयोग इस कृत्य पर रोक लगाने का प्रयास कर रहा है क्योंकि सहयोगियों का यह कृत्य मतदाताओं को उनके पक्ष में मतदान करने के उद्देश्य से किया जाता है। आयोग द्वारा प्रत्येक चुनाव अधिकारी के अधीन प्रत्येक मतदान केन्द्र पर पीठासीन अधिकारी एवं प्रशासनिक अधिकारी की नियुक्ति की जाती है। यह अधिकारी व कर्मचारी मतदाता की जांच के उपरान्त उसे मतपत्र देकर उसकी तर्जनी पर अमिट स्याही लगाते है ।

"मतपत्र पर मतदाता के हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान भी लगाया जाता है। 

इस प्रकार मतदान केन्द्र में जाकर मतदाता अपनी पसन्द के प्रत्याशी के समक्ष आयोग द्वारा उपलब्ध मुहर लगाता है एवं मतपत्र को विशेष सावधानी से मोड़कर मतपेटी में डाल देता है ।

"किसी भी मतदाता को दुबारा मतदान करने का अधिकार प्राप्त नहीं है । " 

" मतदान का स्थान चारों तरफ से घिरा हुआ होना चाहिए जिससे कोई यह न जान सके कि मतदान किसके पक्ष में किया गया है। 

" चुनाव आयोग द्वारा मतदाता के बांये हाथ पर स्याही का निशान चुनाव कानून की महत्वपूर्ण विशेषता है । "

"मतदान का समय आयोग द्वारा निर्धारित रहता है। सामान्यतः यह सुबह 7 बजे से सायं 5 बजे के मध्य रहता है । " 

 समाप्त कराने के उपरान्त बचे हुये मतपत्रों की संख्या के आधार पर कुल पड़े मतों का हिसाब लगा लिया जाता है । एवं अभिकर्ताओं की उपस्थिति में मतपेटिका को अच्छी तरह से सील बन्द कर दिया जाता है।

निर्धारित तिथि के अनुसार प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के मतो की गिनती निर्वाचन पदाधिकारी द्वारा कि जाती है। मतों की गिनती में उसके सहयोगी के रूप में सुपरवाइजर तथा सहायक होते है। आयोग के अधीन रहते हुये निर्वाचन अधिकारी मतगणना की तिथि तथा स्थान की सूचना प्रत्याशी व उसके अभिकर्ता को देते है ।

मतगणना स्थल पर उम्मीदवार, उसके अभिकर्ता, सुपरवाइजर एवं सहायक कर्मचारियों को छोड़कर अन्य कोई भी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता है। सर्वप्रथम सभी मतपेटियों की सील मोहर की भली भाति जांच की जाती है साथ ही डाक द्वारा भेजे गये मतपत्रों का निरीक्षण निर्वाचन अधिकारी कर लेते हैं । मतपत्रों की गिनती में संसदीय निवार्चन क्षेत्र के मत विधान सभा क्षेत्र में बाट कर किये जाते है । मतपत्रों की वैधता अवैधता का अन्तिम निर्णय मतगणना अधिकारी देते है।

मतों की गिनती समाप्ती के उपरान्त प्रत्याशी के मतों की संख्या को सूचीबद्ध एवं लिपिबद्ध किया जाता है। परिणाम घोषित होने से पूर्व यदि प्रत्याशी परिणाम से असंतुष्ट है तो वह निर्वाचन पदाधिकारी को प्रार्थना पत्र दे सकता है।

चुनाव प्रक्रिया के समापन के पश्चात आयोग उसे भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशित करवाता है। इस अधिसूचना मे विजयी उम्मीदवार का नाम अंकित रहता है। इस अधिसूचना के जारी होने पर मतगणना कार्य संपन्न माना जाता है।

संदर्भ -

' डी0 डी0 बसु, 'भारत का संविधान प्रेटिस हाल आफ इण्डिया, नई दिल्ली, 1998, पृ0 375

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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