सूचना का अधिकार क्या है?

द राइट टू इनफारमेशन एक्ट 2005 अथवा सूचना प्राप्त करने संबंधी अधिनियम संचार जगत् में युगान्तकारी दस्तक है । भारतीय संसद के दोनों सदनों - लोकसभा और राज्यसभा ने मई 2005 में यह अधिनियम पारित किया, जिसमें देश के सामान्य नागरिकों को कुछ सरकारी विभागों को छोडकर अन्य सभी विभागों से अपने अथवा सार्वजनिक हित में किसी भी सूचना को प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया है। इस अधिनियम को भारत के राष्ट्रपति ने 15 जून 2005 को अपनी स्वीकृति दे दी और यह अधिनियम केवल जम्मू और कश्मीर राज्य को छोडकर देश के प्रत्येक राज्य में लागू कर दिया गया ।

इस अधिनियम के अनुसार देश का कोई भी सामान्य नागरिक सरकार तथा सरकारी विभागों से जनहित अथवा स्वहित में कोई भी सूचना एक निश्चित शुल्क जमा करके प्राप्त कर सकता है । अब किसी भी नागरिक को यह अधिकार होगा कि वह किसी सार्वजनिक निर्माण की जाँच परख मौके पर जाकर करें तथा उसकी गुणवत्ता आदि के संबंध में भी जानकारी प्राप्त करें । 

भारतीय संसद ने पूर्ववर्ती The Freedom of Information Act - 2002 को निरस्त करके उसके स्थान पर The Right to Information Act - 2005 को लागू किया है । इस अधिनियम में 6 अध्याय तथा 31 धाराएँ हैं ।

अध्याय एक में दो धाराएँ हैं । धारा एक के अंतर्गत अधिनियम के क्षेत्र और इसके लागू होने के समय का उल्लेख है। इसके प्रावधानों के अनुसार अधिनियम की लगभग नौ धाराएँ तुरंत प्रभावी हो गई, जबकि अन्य 21 धाराएँ अधिनियम के पारित होने के 120 दिनों के पश्चात अर्थात 12 अक्तूबर 2005 से लागू मानी जाएगी । धारा दो में लगभग तेरह महत्त्वपूर्ण शब्दों को परिभाषित किया गया है।

अध्याय दो में नौ धाराएँ हैं। धारा चार के अनुसार प्रत्येक लोक सेवक के लिए बाध्यता है कि वह अपने कार्यालय से संबंधित समस्त अभिलेखों को क्रमबद्ध रूप से दुरुस्त रखें और अधिनियम के लागू होने के 120 दिनों के भीतर अपने कार्य संबंधी समस्त सूचनाएँ तथा कार्य प्रणाली का विस्तृत ब्यौरा बृहद् स्तर पर प्रकाशित करें । 

धारा पाँच के अनुसार इसी अवधि में आवश्यकतानुसार Central Public Information Officer या State Public Information Officer की नियुक्ति करें । धारा छ: के अनुसार कोई भी व्यक्ति बिना विशिष्ट कारणों का उल्लेख किए किसी विभाग से जानकारी प्राप्त करने हेतु लिखित प्रार्थना पत्र हिंदी, अंग्रेजी अथवा राज्य की स्थानीय भाषा में निर्धारित शुल्क के साथ प्रस्तुत कर सकता है । अधिनियम की धारा सात निर्देशित करती है कि सूचना प्राप्त करने हेतु दिए गए समस्त प्रार्थना पत्रों को अधिकतम तीस दिनों की अवधि में निस्तारित कर दिया जाना चाहिए अथवा प्रार्थना पत्र में कोई कमी रह गई हो, तो उसकी सूचना भी दे दी जानी चाहिए। प्रार्थना पत्र की अस्वीकृति के कारणों का उल्लेख भी आवश्यक है । प्रार्थना पत्र कागज पर लिखकर अथवा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी दिया जा सकता है । यदि सूचना किसी व्यक्ति के जीवन या उसकी स्वतंत्रता से संबंधित है, तो वह अधिकतम् 48 घंटे में प्रेषित की जानी चाहिए ।

धारा आठ के अंतर्गत दस अपवादों का वर्णन है। कोई भी सरकारी अधिकारी या कार्यालय ऐसी सूचना प्रदान नहीं करेगा, जिसको देने से देश के सार्वभौमिक स्वरूप और उसकी अखंडता को खतरा पैदा हो, जो किसी न्यायालय अथवा किसी अधिकरण द्वारा निषिद्ध हो, जिसको देने से लोकसभा अथवा विधान मंडल के किसी सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन होता हो, जिसके देने से कोई जाँच बाधित हो सकती है । इस प्रकार के अन्य गौण कारणों का उल्लेख इस धारा में मिलता है, जिसके आधार पर सूचना न देना अपराध नहीं होगा ।

अध्याय तीन में Central Information Commission के गठन की संपूर्ण प्रक्रिया का वर्णन है । इस कमीशन में एक Chief Information Commissioner तथा अधिकतम दस Central Information Commissioners सदस्य होंगे । इन दोनों अधिकारियों का मनोनयन एक उच्चस्तरीय कमिटी करेगी । इस कमिटी का अध्यक्ष भारत का प्रधानमंत्री, लोकसभा में विरोधी दल का नेता तथा प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट स्तर का मंत्री होगा ।

अध्याय चार में 15 से 17 तक तीन धाराएँ हैं । इनके प्रावधानों के अनुरूप Information Commission का गठन हो सकेगा ।

अध्याय पाँच में 18 से लेकर 20 तक धाराएँ हैं, जिनमें Information Commission के अधिकार और शक्तियों, उसके द्वारा दिए प्रार्थना पत्रों के संबंध में निर्णयों के विरुद्ध अपील तथा दोषी व्यक्ति को दंडित किए जाने की प्रक्रियाओं का उल्लेख है।

अध्याय छ: में 21 से 31 तक धाराएँ निहित हैं । धारा 23 के अनुसार इस अधिनियम के अंतर्गत दिए गए निर्णयों के विरुद्ध न्यायालय जाने पर प्रतिबंध है । अन्य धाराएँ अधिनियम को लागू किए जाने संबंधी प्रक्रियाओं से संबंधित हैं ।

निश्चित रूप से ‘सूचनाधिकार' की अपनी कुछ सीमाएँ और उपलब्धियाँ भी हैं। जो भी हो, कम से कम यह बिल लाया तो गया है । समय के साथ इसमें परिवर्तन की संभावनाएँ होगीं । सूचनाधिकार के कारण विषय विशेष पर सार्वजनिक रूप से चर्चा की जा सकती है। यह चर्चा सार्वजनिक होने के कारण अर्थपूर्ण एवं स्तरीय होगी। सरकार सक्षमता के साथ कारोबार करेगी। जनकल्याण की योजनाएँ कार्यान्वित होगीं ।

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