सूर्यबाला का जीवन परिचय

सूर्यबाला का जन्म 25 अक्टूबर 1944 को वाराणसी में हुआ । सूर्यबाला की माँ का नाम स्व. श्रीमती केशर कुमारी और पिता का नाम श्री. स्व. वीरप्रताप सिंह था । उनके माता - पिता दोनों शिक्षित तथा अंग्रेजी हिंदी तथा उर्दू के ज्ञाता थे। स्वयं पढ़े लिखे होने के कारण उन्होंने अपने चारों बेटियों को एम. ए., पीएच. डी. तक पढ़ाया । पिता जिला इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल के इंस्पेक्टर थे । तथा माता एक आदर्श गृहिणी थी। 

सूर्यबाला जी के माता - पिता दोनों उच्च संस्कारशील मध्यवर्गीय गृहस्थ थे। घर में निर्माण होने वाली आर्थिक अड़चनों के बारे में उन्होंने कभी भी अपनी बेटियों को महसूस नहीं होने दिया, इसके साथ ही सूर्यबाला के पिताजी शेर - शायरी भी किया करते थे । सूर्यबाला के तीन बहनें वीरबाला, केसरबाला तथा चंद्रबाला भी उच्च शिक्षित तथा संस्कारशील हैं। सूर्यबाला की तरह उन्होंने भी एम. ए. पी. एच. डी. किया है। उनका भाई विष्णु प्रताप भी उच्च शिक्षित है। सभी शिक्षण कार्य से संबंधित हैं। 

सूर्यबाला का विवाह श्री आर. के. लाल के साथ हुआ है । उनके पति सुसंस्कृत तथा उच्चशिक्षित हैं। उनकी शिक्षा मरीन इंजीनियरिंग कॉलेज, कोलकाता में संपन्न हुई । वह पहले मार्चेंट नेवी में चीफ इंजीनियर पद पर कार्य करते थे, लेकिन बाद में उन्होंने वह नौकरी छोड़ी। उसके बाद उन्होंने अनेक उच्च पदों पर कार्य किया । 

सूर्यबाला का परिवार बड़ा समृद्ध हैं। आपके दो बेटे - अभिलाष, अनुराग बेटी दिव्या हैं । उनका बड़ा बेटा अभिलाष मेकेनिकल इंजीनियर तथा अनुराग कंप्यूटर इंजीनियर है। सूर्यबाला जी के दोनों ही बेटे बड़े परिश्रमी मेधावी तथा विनयशील हैं । अपने कार्य के प्रति अत्यंत सजग हैं। उनका बड़ा बेटा दिल्ली (गुड़गाँव) में तथा छोटा बेटा बोस्टन अमेरिका में कंप्यूटर इंजीनियर है । उनकी बेटी डॉ. दिव्या सक्सेना एम. ए., पीएच. डी. हैं। वह प्रिंसिपल साइंटिस्ट है। वह आजकल मुंबई की कंपनी में स्थित है। सूर्यबाला का अपनी बेटी के प्रति विशेष लगाव है । उनकी बेटी भी सुसंस्कृत तथा अत्यंत विनयशील नम्र हैं । उनका सारा समय अनुसंधान में ही व्यतीत होता है । 

सुर्यबाला को साहित्य सृजन के साथ - साथ नौकरी करने में बड़ी रुचि थी । उन्होंने अपने जीवन के आरंभ में एक वर्ष बनारस विश्वविद्यालय डिग्री कॉलेज में नौकरी की थी पुनः लंबे अंतराल के दो वर्षों तक व्याख्याता पद पर उन्होंने अध्यापन का कार्य वाराणसी में किया हैं। जैसे ही उनके पति को नौकरी मिली वैसे ही उन्होंने पारिवारिक जिम्मेदारियों को संभालने के लिए नौकरी छोड़ दी। 

सूर्यबाला का कृतित्व

सूर्यबाला के अब तक ग्यारह कहानी - संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।

  1. सांझवाती (1995)
  2. दिशाहीन (1981)
  3. एक इंद्रधनुष जुबेदा के नाम (2005)
  4. कात्यायनी संवाद (1996)
  5. इक्कीस कहानियाँ (2004)
  6. गृह प्रवेश (1992)
  7. मुंडेर पर (1990)
  8. पाँच लंबी कहानियाँ (2003)
  9. मानुष गंध (2003)
  10. सिस्टर प्लीज आप जाना नहीं (2003)
  11. रेणु का नया घर (2005)

पुरस्कार एवं सम्मान

सूर्यबाला के कृतियों को हिंदी साहित्य जगत में समय समय पर नया आयाम देने का प्रयास किया है साहित्य कृतियों के लिए उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई बार पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है। साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए सूर्यबाला 'प्रियदर्शनी' पुरस्कार 1996, ‘रामनारायण शराब’ पुरस्कार, दक्षिण भारतीय हिंदी प्रचार सभा, त्रिवेणी कथा संगम, सतपुड़ा परिषद आदि संस्थाओं द्वारा सम्मानित हुई हैं। 

सूर्यबाला की कृति कात्यायनी संवाद के लिए उन्हें ‘घनश्याम दास सर्राफ’ पुरस्कार मिला है उनके साथ ही नागरी प्रचारिणी सभा, मुंबई विश्वविद्यालय, आरोही संस्था के द्वारा, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा सातपुडा संस्कृति परिषद, अभियान, राजस्थान लेखिका मंच वागमणि सम्मान, आजीवन उपलब्धि सम्मान, सवजन आदि संस्थाओं से वह सम्मानित हुई है अपनी कहानियाँ लोकमत समाचार वागर्थ धर्मयुग सारिका हिंदुस्तान वर्तमान साहित्य ज्ञानोदय आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती है। 

वरिष्ठ पत्रकार एवं नवीन नवनीत के संपादक श्री विश्वनाथ सचदेव की अध्यक्षता में आयोजित सन 2008 का गोयनका पुरस्कार से सूर्य बालाजी को सम्मानित किया है पुरस्कार स्वरूप श्रीमती सूर्यबाला को 31000 नकद के साथ शॉल, स्मृति चिन्ह, श्रीफल पुष्पगुच्छ आदि प्रदान किया गया है । साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए अनेक संस्थानों द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत प्रसार भारती की इंडियन क्लासिक श्रृंखला दूरदर्शन में सजायाफ्ता कहानी चयनित एवं वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के रुप में पुरस्कृत हुई। 

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