भारत के संविधान के अनुच्छेद 17के अनुशरण में, अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 अधिनियमित किया गया था और इसे 8-5-1955 को अधिनियमित किया गया तथा वर्ष 1976 में इसमें संशोधन करते हुए इसका नाम बदल कर "सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955” रखा गया। यह अधिनियम समस्त भारत में लागू है और इसमें अश्पृश्यता की पृथा के संबंध में दण्ड का प्रावधान है। इसे संबंधित राज्य सरकारों एवं संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
इस अधिनियम के तहत अनुसूचित जातियों के अधिकारों का जो हनन किया जाता था उसमें इसे रोकने के प्रावधान हैं। यह अधिनियम सार्वजनिक पूजा स्थलों में प्रवेश, जल श्रोतों के उपयोग से रोकना । किसी दुकान रेस्टोरेंट, होटल, सार्वजनिक मनोरंजन, श्मशान घाट आदि में प्रवेश से रोकना, अस्पताल या शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश से रोकना, वस्तुऐं बेचने एवं सेवा प्रदान करने से मना करना, उत्पीडन, चोट पहुँचाना, अपमान करना तथा अस्पृश्यता के आधार पर किसी व्यक्ति को कोई सफाई या झाडू लगाने या मृत जानवर उठाने के लिए बाध्य करना आदि के लिए दण्ड का प्रावधान है ।
अनुसूचित जातियों को विधिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए राज्यों एवं संघ शासित क्षेत्रों में पीसीआर अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए इस अधिनियम में विधिक सहायता, विशेष अदालतें, अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए सरकारों को सहायता करने के लिए समितियां और विशेष पुलिस थानों संबंधी प्रावधान हैं।