गुरु हर राय देव जी का जन्म सन् 1630 ई. में कीरतपुर रोपड़ में हुआ था । वे एक महान आध्यात्मिक एवं राष्ट्रवादी पुरुष थे । उनके पिता का नाम बाबा गुरदित्ता जी एवं माता का नाम निहाल कौर था । उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के निवासी श्री दया राम जी की पुत्री किशन कौर के साथ उनका विवाह हुआ था । उनके दो पुत्र थे- रामराय और हरकिशन । गुरु हर राय जी ने गुरुवाणी की मर्यादा तथा पंगत और संगत की संस्थाओं को बनाए रखने में अपनी अदम्य संकल्प शक्ति का परिचय दिया । उन्होंने अपने दादा गुरु हरगोविंद जी के सिख योद्धाओं के दल को पुनर्गठित कर, उनमें नवीन प्राण संचारित किए। शाहजहाँ की मृत्यु के बाद गद्दी की लड़ाई में, इन्होंने औरंगजेब के भाई दाराशिकोह का साथ दिया था, इसलिए वे औरंगजेब की आँखों का काँटा बन गये थे । उसने गुरु हर राय जी पर बेबुनियाद आरोप लगाकर उन्हें दिल्ली में पेश होने का हुक्म दिया । उनके स्थान पर उनके पुत्र रामराय जी दिल्ली गये, जहाँ उन्होंने सिख धर्म एवं गुरु-घर के प्रति स्पष्टीकरण देने के क्रम में गुरवाणी की त्रुटिपूर्ण व्याख्या की । उनके इस निंदनीय कर्म को देखते हुए गुरु हर राय जी ने रामराय जी को सिख पंथ से निष्कासित कर दिया । इस प्रकार गुरु हर राय जी ने सिख धर्म के वास्तविक नियमों के साथ छेड़छाड़ करने वालों के लिए एक कड़ा कानून बना दिया । अपने अंतिम समय को नजदीक देखते हुए उन्होंने अपने छोटे पुत्र हरकिशन को गुरु- गद्दी सौंप दी । सन् 1661 में उनकी मृत्यु हो गई ।
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