जनजाति का अर्थ एवं परिभाषा

‘आदिवासी‘वनवासी', 'आदिम जाति' जैसे - शब्द जनजाति के पर्यायवाची शब्द है। इन्हें “देशज” समाज भी कहा गया है। जनजाति अंग्रेजी के “TRIBE”शब्द का हिंदी पर्याय है, जो भारत के संविधान के बाद विशेष रूप से प्रचलित हो चुका है।

जनजातियाँ आदिम समाज का सटीक उदाहरण मानी जाती है। विश्व के अनेक भागों में रहने वाले उन आदिवासी समुदायों को जनजाति कहा जाने लगा, जो सांस्कृतिक दृष्टिकोण से तत्कालीन यूरोपीय समाजों की तुलना में अत्यंत पिछड़े हुए थे।'

जनजाति का अर्थ सामान्यतः ऐसे लोगों से है जो किसी निश्चित भू–भाग पर निवास करते है तथा विकास की दृष्टि से काफी पिछड़े हुए होते है। इनके (जनजातियों) में अपने रीति-रिवाज ऐसे होते हैं जो ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से काफी सीमा तक अलग होते हैं। इनके निवास स्थान सामान्यता पहाड़ियाँ पठारी क्षेत्र में होते हैं । जनजाति में ऐसे लोगों का समूह हे जो किसी निश्चित भू-भाग (सामान्यतः जंगल या पहाड़) पर निवास करते है, जिनकी एक संस्कृति होती है तथा जो आज भी आर्थिक दृष्टि से काफी पिछड़े हुए है । '

जनजाति की परिभाषा

डॉ मजूमदार के अनुसार - " एक जनजाति अनेक परिवारों के एक समूह का एक संकलन होता है, जिसका एक सामान्य नाम होता है, जिसके सदस्य एक निश्चित भू-भाग पर रहते हैं, सामान्य भाषा बोलते हैं और विवाह या उद्योग के विषय में कुछ निषेधों का पालन करते हैं ओर एक निश्चित एवं उपयोगी आदान प्रदान का परस्पर विकास करते है ।"

जार्ज पीटर मर्डाक के शब्दों में- "यह एक सामाजिक समूह होता है, जिसकी एक अलग भाषा होती है तथा भिन्न संस्कृति व एक स्वतंत्र राजनैतिक संगठन होता है।

रेमन्ड फर्थ के शब्दों में- " जनजाति एक ही सांस्कृतिक श्रृंखला का मानव समूह है जो साधारणतः एक ही भू-खण्ड पर रहता हैं, एक ही भाषा-भाषी है तथा एक ही प्रकार की परंपराओं एवं संस्थाओं का पालन करता है और एक ही सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है।'

इन परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में जनजाति के अर्थ एवं परिभाषाओं में बताई गई कई विशेषताओं में काफी हद तक बदलाव आया है। जनजाति एक निश्चित भू-भाग में रहने वाला एक आदिम मानव समूह हैं जो एक सामान्य भाषा, धर्म, परंपरा, व्यवसाय, प्रथा और अन्य सामाजिक नियमों द्वारा एक सूत्र में बंधकर एक सामाजिक संगठनों संगठन को जन्म देता है।

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर जनजाति को सामान्यतः निम्नलिखित रुप से भी उल्लेखित किया जा सकता है :—

  1. जनजाति परिवारों का समूह होता है ।
  2. जनजाति की अपनी एक परिभाषा होती है ।
  3. जनजाति की अपनी एक संस्कृति होती है ।
  4. जनजाति का निवास एक सुनिश्चित भू-भाग पर होता है । 
  5. गोत्र और अर्न्त विवाही समूहों की विशिष्टता होती है।
  6. स्वतंत्र राजनीतिक संगठन होता है। जिसमें मुखिया सर्वोच्च होता है। 
  7. जनजाति में प्राचीन परंपराएं विद्यमान होती है 
  8. जनजातियों का अपना विशिष्ट नाम होता है । 

भारत की प्रमुख जनजातियाँ एवं क्षेत्र विवरण

विश्व में जनजातिय बाहुल्य की दृष्टि से अफ्रीका महादीप के बाद भारत में जनजातियों को दूसरा स्थान है।

भारतीय संविधान में 550 विभिन्नं जनजातियों को "अनुसूचित जनजाति” घोषित किया गया था। सन् 1941 में की गई जनगणना के अनुसार भारतीय जनजातियों की कुल जनसंख्या 2,47,12,000 थी | विभाजन के बाद सन् 1951 में यह संख्या घटकर 1,91,16,498 रह गई थी। जो उस समय देश की कुल जनसंख्या का 5.36% थी।'

जबकि 1956 ईस्वी में राज्यों के भाषाई आधार पर पुनर्गठन के समय यहां जनसंख्या 2 करोड़ 25 लाख थी । जबकि 1961 की जनगणना के अनुसार यहां दो करोड़ 99 लाख हो गई थी। 1971 ईस्वी में की जनगणना में तीन करोड अस्सी लाख पन्द्रह हजार बासठ, 1981 ईस्वी में जनसंख्या सोलह लाख उन्नतीस हजार(असम को छोड़कर), 1991 ईस्वी में यह जनसंख्या छह करोड सत्तर लाख अटठावन हजार तीन सौ अस्सी (जम्मू व कश्मीर छोड़कर) थी ।

भारत की जनजातिय आबादी का 87 प्रतिशत भाग महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों में निवास करती है।

भारतीय जनजातियों मुख्य रूप से वनो एवं पहाड़ी भागों में निवास करती हैं, जहां भूमि बंजर तथा बहुत कम उपजाऊ व उबड़-खाबड़ है । ये क्षेत्र भारत के संपूर्ण पूर्वी-भाग सतपुड़ा पर्वत में फैले हुए हैं। गुजरात राज्य की पूर्वी सीमा राजस्थान, दक्षिणी भाग व मध्य भारत के पठार व दक्षिण से होते हुए विंध्यांचल पर्वत के पूर्वी भागों में जहां बड़ी संख्या में जनजातियां पाई जाती है। असम के बाहर की ओर फैली पहाड़ियां व पहाड़ी प्रदेश हैं, जो असम को म्यांमार से अलग करती है । देश की कुल जनसंख्या में जनजातियों का 8.5% है। भारत में सर्वाधिक जनजातियों की जनसंख्या वाला राज्य मध्यप्रदेश है ।

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