महाराजा रणजीत सिंह का जीवन परिचय

अठारहवीं शती के अंतिम चरण में महाराजा रणजीत सिंह का जन्म सन् 1780 में गुजरांवाला में हुआ था । भारत-विभाजन के बाद यह क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया । पंजाब पर उन दिनों सिखों और अफगानों की हुकूमत चलती थी । उस समय पूरा इलाका कई मिसलों में बँटा हुआ था । उन्हीं मिसलों में एक सुकरचकिया मिसल के कमांडर महान सिंह थे, जो रणजीत सिंह के पिता थे । कम आयु में ही चेचक के कारण रणजीत सिंह की एक आँख की रोशनी जाती रही । 12 वर्ष की छोटी आयु में, उनके पिता का साया उनके सिर से उठ गया । जब-जब हिंदू और सिख धर्म पर हमला हुआ, वे उसकी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहे और कई लड़ाइयाँ भी लड़ीं । अफगानों को उन्होंने अपने इलाके से खदेड़ कर पश्चिमी पंजाब की ओर भेज दिया । अब पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर भी उनका अधिकार हो गया । पश्तूनों पर किसी गैर-मुस्लिम शासन का यह प्रथम अवसर था । बाद में उन्होंने जम्मू-कश्मीर और आनंदपुर पर भी अपना आधिपत्य जमाया । वे स्वयं अनपढ़ थे मगर उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया । पंजाब में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के प्रति वे अत्यंत सजग रहे । कभी किसी को सजा-ए-मौत नहीं दी गई । कभी किसी को सिख धर्म अपनाने के लिए विवश नहीं किया । अमृतसर के हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे में संगमरमर लगवाया और सोना मढ़वाया, तभी से उसे स्वर्णमंदिर कहा जाने लगा । पहली आधुनिक भारतीय सेना ‘सिख खालसा सेना’ के गठन का श्रेय उन्हीं को जाता है । महाराजा रणजीत सिंह का सन् 1839 में महाराजा रणजीत सिंह का निधन हो गया । 

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