स्वास्थ्य के विभिन्न आयाम क्या है?

स्वास्थ्य के आयाम

स्वास्थ्य के विभिन्न आयाम बतलाए गए हैं जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, बौद्धिक एवं व्यावसायिक । किंतु मुख्य रूप से स्वास्थ्य के तीन प्रमुख आयाम हैं-

  1. शारीरिक आयाम
  2. मानसिक आयाम
  3. आध्यात्मिक आयाम

1. शारीरिक आयाम— शारीरिक रूप से स्वस्थ होने से तात्पर्य है कि मनुष्य की प्रत्येक कोशिका, अंग, कार्यप्रणाली, चयापचय अधिकतम क्षमता से कार्य कर रहे हों, अर्थात शरीर के सभी अंग सुचारू रूप से उचित प्रकार से कार्य कर रहे हो समावेश एवं शरीर निरोग तथा बलशाली हो ।

मनुष्य के शारीरिक स्वास्थ्य को जानने के लिए उसमें निम्नलिखित बातों का समावेश होना चाहिए

  1. शारीरिक कार्य सुचारू, सहज व समन्वित हो ।
  2. शरीर के समस्त अवयव सामान्य हों एवं समग्र रूप से क्रियाशील हों ।
  3. संतुलित भोजन एवं उचित भूख ।
  4. गहरी नींद ।
  5. शरीर लंबाई, आयु एवं लिंग के अनुसार उपयुक्त वजन हो ।
  6. निर्मल, कोमल, स्वच्छ त्वचा हो ।
  7. बाल चमकदार हों ।
  8. आंख, कान, नाक, जिव्हा, हाथ, पैर आदि ज्ञानेंद्रियाँ एवं कर्मेंद्रियाँ स्वस्थ हों ।
  9. चमकदार साफ दांत हों ।
  10. नियमित मूत्र व मल का त्याग । 
  11. देह गठीली एवं लचीली हो ।

उल्लेखनीय है कि व्यक्ति शारीरिक आयाम का सबसे अधिक ध्यान रखते हैं ।

2- मानसिक आयाम -  मानसिक स्वास्थ्य से अभिप्राय मानसिक संतुलन से है। भावनात्मक एवं आध्यात्मिक लचीलेपन से है । ये मनुष्य को दर्द, निराशा, चिंता, तनाव, कुंठा से निपटने में सक्षम बनाती है । मानसिक रूप से स्वस्थ मनुष्य वह है जिसमें निम्न विशेषताएँ हों

  1. जिसमें मानसिक तनाव व अवसाद न हो एवं निर्णय लेने में सक्षम हो ।
  2. जो आत्म संतुष्ट, प्रसन्न, शांत एवं व्यवहार कुशल हो ।
  3. किसी भी समस्या अथवा स्थिति का सामना चिंता व तनाव रहित होकर कर सके ।
  4. जो भय, क्रोध, ईर्ष्या, रहित हो और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख सके तथा मानसिक रूप से संतुलित हो ।
  5. स्वार्थी ना हो व दूसरों के साथ विचार पूर्वक व्यवहार करता हो।
  6. जिसे स्वयं पर पूर्ण विश्वास हो तथा निर्णय लेने में सक्षम हो। वाणी में संयम एवं मधुरता हो ।
  7. जिसमें उच्च स्तर का आत्मसम्मान हो ।
  8. स्वयं का विकास कर सके तथा समाज की उन्नति में अपना योगदान दे सके ।

शारीरिक स्वास्थ्य की तरह मानसिक स्वास्थ्य का अभिप्राय केवल मानसिक रोग के ना होने से ही नहीं है । अतः मानसिक रूप से स्वस्थ कहलाने के लिए यह पर्याप्त नहीं है कि मनुष्य में नकारात्मक भावना ना हो बल्कि जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण भी सकारात्मक होना चाहिए । मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य एक दूसरे पर आधारित हैं, (संबंधित है)। “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है" इस पुरानी कहावत से स्पष्ट है कि मानसिक अस्वस्थता, शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है एवं शारीरिक अस्वस्थता मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है ।

3. आध्यात्मिक आयाम - मनुष्य का अच्छा स्वास्थ्य आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ हुए बिना अधूरा है । आध्यात्मिक स्वास्थ्य से अभिप्राय है जीवन के अर्थ व उद्देश्य को समझना । यहां उस अर्थ की बात की जा रही है जो शरीर, क्रियात्मक विज्ञान और मनोविज्ञान आयामों से परे है । आध्यात्मिक स्वास्थ्य की कोई सटीक परिभाषा देना संभव नहीं है परंतु इसके अंतर्गत वह सिद्धांत और नैतिक नियम आते हैं जिनका कोई वैज्ञानिक स्पष्टीकरण नहीं परंतु फिर भी यह नैतिक नियम व्यक्ति को किसी महान शक्ति व इस संपूर्ण ब्रह्मांड से जोड़ते हैं तथा जीवन को अर्थ व उद्देश्य प्रदान करते ।

अच्छे अध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्राप्त करने का कोई निर्धारित तरीका नहीं है। यह हमारे अस्तित्व की समझ के बारे में अपने अंदर गहराई से देखने का एक तरीका है

अष्टादशषु पुराणेषु व्यासस्य वचन द्वयं ।
परोपकारः पुण्याय पापाय पर पीड़नम ।।

अर्थात् अठारह पुराणों में महर्षि व्यास ने दो बातें कही है - परोपकार से पुण्य मिलता है और दूसरों को पीड़ा देने से पाप । अतः समग्र रूप से स्वस्थ व्यक्ति उसी को कहा जा सकता है, जिसमें निम्न विशेषताएँ हो :-

अतः समग्र रूप से स्वस्थ व्यक्ति उसी को कहा जा सकता जिसमें निम्न विशेषताएँ हों ।

  1. प्राणी मात्र के कल्याण की भावना हो ।
  2. सर्वे भवंतू सुखिनाः (सभी सुखी हो) का आचरण हो ।
  3. तन मन एवं धन की शुद्धता वाला हो । परोपकार एवं कल्याण की भावना वाला हो ।
  4. प्रतिबद्धता से कर्तव्य पालन करने वाला हो ।
  5. योग एवं प्राणायाम का अभ्यासी हो ।
  6. श्रेष्ठ चरित्रवान हो तथा इंद्रियों को संयम में रखने वाला हो ।
  7. सकारात्मक जीवनशैली से जीने वाला हो ।
  8. पुण्य कार्य द्वारा आत्मिक उत्थान वाला हो ।
  9. अपने शरीर सहित इस भौतिक जगत की किसी भी वस्तु से मोह न रखने वाला हो ।
  10. समुचित ज्ञान की प्राप्ति की सतत इच्छा रखने वाला हो ।

आध्यात्मिक स्वास्थ्य की नवीन कल्पना होने के कारण इसकी सर्वथा व उचित सर्वमान्य परिभाषा नहीं है । किन्तु निश्चित ही स्वास्थ्य के इस महत्वपूर्ण पक्ष पर ध्यान देना चाहिए । क्योंकि आधुनिक जीवन में मनुष्य के नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है । वह इतना अधिक तनाव ग्रस्त और चिंताओं से घिरा रहता है, जिसकी निवृत्ति के लिये आत्मिक शांति व आध्यात्मिक स्वास्थ अनिवार्य हो गया है । तभी वह अपने परिवार, समाज, राष्ट्र तथा विश्व से उचित संबंध स्थापित कर सकता है।

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