व्रत या उपवास कितने प्रकार के होते हैं ?

सांस्कृतिक भारतीयता में व्रतों की संख्या बहुत अधिक है, इसलिए उनके प्रकारों में विभिन्नता होना स्वाभाविक है। व्रत और उपवास का परस्पर अन्योन्याश्रित सम्बद्ध होता है। उनमें मूलभूत अंतर यह है कि जहां व्रत में भोजन (अन्न) का सेवन किया जा सकता है, वहीं उपवास में पूर्ण रूप से निराहार रहना पड़ता है। उचित विधि-विधान से अन्न ग्रहण करना भी व्रत कहलाता है।

व्रत के प्रकार

कुछ प्रमुखता से किए जाने वाले व्रतों का विवरण इस प्रकार है- 

1. आयाचित व्रत : बिना किसी प्रकार की कामना रखे, दिन या रात में एक बार भोजन करने को - आयाचित व्रत' कहते हैं।

2. नक्त व्रत : विशेष रूप से रात में किए जाने वाले व्रत को 'नक्त व्रत' कहते हैं।

3. एकभुक्त व्रत : आधे दिन, मध्यान्ह, संध्या, इच्छानुसार व्रत रखने को 'एकभुक्त' व्रत कहते हैं ।

4. प्राजापत्य व्रत : यह व्रत बारह दिनों में संपन्न होता है, जो तीन-तीन दिनों तक भोजन की मात्रा बढ़ाते हुए और अंतिम तीन दिनों में निराहार रहकर किया जाता है।

5. चांद्रायण व्रत : यह व्रत चंद्रकला के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है । इसमें भोजन की मात्रा कृष्ण पक्ष में घटानी और शुक्ल पक्ष में बढ़ानी होती है । अमावस्या को निराहार रहकर पूर्ण होने वाले इस व्रत को 'चांद्रायण' के नाम से जाना जाता है, जो किसी भी माह की शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ किया जा सकता है। 

6. तिथि व्रत : एकादशी, अमावस्या, चतुर्थी आदि ' तिथि व्रत' कहलाते हैं।

7. मास व्रत : माघ, कार्तिक, वैशाख आदि के व्रत 'मास व्रत' कहलाते हैं।

8. पाक्षिक व्रत : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के व्रत 'पाक्षिक व्रत' कहलाते हैं।

9. नक्षत्र व्रत : रोहिण, श्रवण और अनुराधा आदि के व्रत 'नक्षत्र व्रत' कहलाते हैं।

10. देव व्रत : गणेश, शिव, विष्णु आदि के लिए रखे जाने व्रत 'देव व्रत' कहलाते हैं।

11. वारों की व्रत : सोम, मंगल, बुध आदि वारों के दिन रखे जाने वाले व्रत 'वार व्रत' कहलाते हैं ।

12. प्रदोष व्रत : प्रत्येक मास की त्रयोदशी / तेरस के दिन किए जाने वाले व्रत 'प्रदोष व्रत' कहलाते हैं।

व्रत की पूजन सामग्री

आमतौर पर प्रयोग में लाई जाने वाली पूजन सामग्री में चंदन, जनेऊ, जल, पान और सुपारी, रोली, बेलपत्र, तुलसीदल, घी, हल्दी, चावल, गेहूं, जौ, सभी प्रकार की दालें, मौसमी फल, मेवा, गंगाजल, चूड़ी, कुमकुम, कंघी, शीशा, मेहंदी, बिंदी, सिंदूर की डिब्बी, काले मोती की माला, चुनरी, लाल, सफेद, हरा, पीला कपड़ा, केसर, कलावा, सिक्का (दक्षिणा), कपूर, काजल, दूध, दही, घी, बताशे, गुड़, चीनी, दूब, कुशा, शहद, अगरबत्ती, मिष्ठान, लौंग, तिल, गोमूत्र, आम तथा केले के पत्ते, ईख, लवण, सफेद सरसों, मोरपंख, सप्त धातुएं, कलश, दीया, नारियल, शंख आदि प्रमुख हैं।

पुष्पों के बिना पूजन सामग्री अधूरी ही समझी जाएगी। देवताओं को पुष्प अर्पित करना हमारी प्राचीन परंपरा रही है ।  

प्रत्येक व्रत या अनुष्ठान की फल प्राप्ति के निमित्त अलग-अलग देवों के लिए अलग-अलग पूजन सामग्री का प्रयोग किया जाता है। इनका ध्यानपूर्वक व विधि-विधान से पूजन करने पर व्रत, गृह पूजन या शांतिप्रदायक यज्ञ-अनुष्ठानादि अत्यंत फलदायी होते हैं ।

त्यौहार एवं व्रत प्रारंभ करने से पूर्व आवश्यक जानकारी

विधि-विधानानुसार व्रत के देवता के पूजन की तैयारी के लिए आवश्यक सामग्री पहले से ही खरीदकर आवश्यक इंतजाम करना चाहिए । देवता की मूर्ति, दीपक, सुपारी, घंटी, शंख, घी, चंदन, रोली, तांबूल, पुष्प, अगरबत्ती, धूप, अक्षत, कुमकुम, कलश, नारियल, हल्दी, गुड़, चीनी, शहद, दही, कपूर, कुशा, तिल, जौ (यव), कलावा, दूध, ताम्रपात्र, आसन, फल (ऋतु अनुसार), प्रसाद, तुलसीआदि की आवश्यकता पड़ती है।

1. व्रत की तैयारी में सबसे पहले शारीरिक सफाई करें और साफसुथरे वस्त्र धारण करें। बिना स्नान किए, पहले से पहने हुए गंदे वस्त्र धारण कर व्रत, पूजा के लिए तैयार न हों ।

2. सोम, बुध, बृहस्पति या शुक्रवार से शुरू किए गए व्रत सफलतादायक सिद्ध होने के कारण इन दिनों में ही व्रत शुरू करें। इसके अलावा पुष्य, हस्त, अश्विनी, मृगशिरा, तीनों उत्तरा, रेवती और अनुराधा नक्षत्र एवं शुभ, शोभन, प्रीति, सिद्धि, आयुष्मान और साध्य योग में शुरू किए गए व्रत सुखदायी और शुभफलदायक होते हैं। 

3. निराहार रहकर, स्नानादि से निवृत्त होकर, एकाग्रचित मन से भगवान् को नमस्कार कर, प्रातः काल व्रत का संकल्प करके उसे ग्रहण करना चाहिए । 

4. मार्कण्डेय पुराण में कहा गया है कि जिन कामनाओं को लेकर व्रत करना चाहते हो, उसका संकल्प कहकर ही स्नान, दान और व्रत करना चाहिए ।

5. गौड़ निबंध ग्रंथ में लिखा है कि विद्वान् को प्रातः काल की संध्या करके ही व्रत का संकल्प करना चाहिए ।

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