अनुसूचित जनजाति का अर्थ, परिभाषा, इतिहास


आज भारत आर्थिक विकास के पथ पर तेज गति से आगे बढ़ता जा रहा है। भारत के हर हिस्से में और हर वर्ग चेहरे पर विकास की झलक देखी जा सकती है। इस सबके बावजूद आज भी समाज का एक वर्ग ऐसा है जो हजारों साल पुरानी अपनी परम्पराओं के साथ जी रहा है। भारत के आदिवासी आज भी जंगली परिस्थितियों में किसी तरह से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सन् 1950 में जनजातीय समुदायों की पहचान कर जनजातीय समुदायों की सूची तैयार करने के बाद अनुसूचित जनजातीय आदेश 1950 में लागू किया गया।

समाज विज्ञानों में जनजाति एवं बहुत प्रयुक्त शब्द है । वस्तुतः केवल समाज विज्ञानों में ही नहीं इस शब्द (Tribe) का प्रयोग प्राकृतिक विज्ञानों में भी देखने को मिलता है किन्तु यह शब्द इतने विविध अर्थों में प्रयोग किया जा रहा है कि इसकी एक सार्वभौमिक और सार्थक परिभाषा ढूँढ़ पाना बहुत दुष्कर है।

अँग्रेजी शब्द Tribe हिन्दी शब्द जनजाति का समान अर्थों में माना जाता है Tribe शब्द की उत्पत्ति रोमन शब्द Tribu या Tribus शब्द से हुई है। Tribu या Tribus शब्दों में दो शब्दों का योग है । Tri और Bus, TVI के अर्थ होते हैं 'तीन' और Bus शब्द का प्रयोग परिवार के लिये होता है । इस प्रकार Tribu या Tribus शब्द उस समूह का भी संकेत करता है जो तीन परिवारों से मिलकर बना है। 3 इसी आधार पर प्राचीन रोमन जनसंख्या के तीन प्रमुख वर्ग थे— 1.ROMNES 2. TITIES 3. LucceR's तीन आदिम जातियाँ (Three Primitive Tribes) कहा जाता है।

इसी वर्गीकरण का आधार परिवार या वस्तुतः प्राचीन रोमन समाज में राजनैतिक विभेदीकरण परिवार के आधार पर ही किया गया था। आगे चलकर जनजाति (Tribe) शब्द के साथ क्षेत्रियता, व्यवसायिकता, भाषा और संस्कृति के बोधक अर्थों की और जोड़ दिया गया।

जनजाति शब्द का प्रयोग प्राकृतिक विज्ञानों में भी किया जाता रहा है। जैसे वनस्पति–शास्त्र (Botany) में Tribe शब्द का प्रयोग मिलता है। 85 वहाँ उनसे एक निश्चित वर्ग या श्रेणी के पोधों को पहचानने के लिए किया जाता है। लगभग इसी प्रकार का प्रयोग पशु विज्ञान में भी मिलता है । किन्तु जनजाति (Tribe) शब्द का प्रयोग सबसे अधिक स्पष्ट अर्थों में मानव - शास्त्र और समाज शास्त्र में किया जाता है। यहाँ जनजाति एक ऐसा वर्ग या समूह है जिसके सभी सदस्यों का एक सामान्य पूर्वज होता है जो समूह अन्तर्विवाही होता है। जिसका एक मुखिया होता है जिसका अपना एक राजनैतिक संगठन अपनी संस्कृति अपनी भाषा और क्षैत्रियता होती है 186

जनजाति के लिये अनेक शब्दों का प्रयोग किया जाता रहा है। जैसे अधवासी, आदिवासी, वनवासी, वरण्यवासी, शैलवासी, भूमिवासी आदि 7 जनजाति के लिये चाहे किसी भी शब्द का प्रयोग किया जाये वह इस समुदाय की उपरोक्त विशेषताओं को ही इंगित करते हैं। वे यहाँ इस शब्द की व्यापकता और उसके अर्थों की जटिलता अवश्य दर्शाते हैं ।

“जनजाति” अँग्रेजी के "Tribe" शब्द का हिन्दी पर्याय है जो भारतीय संविधान के आने के बाद विशेष रूप से प्रचलित हो चुका है। “जनजाति” की परिभाषा विभिन्न, शास्त्रियों एवं समाज शास्त्रियों ने दी है।

जनजाति की परिभाषा

डी. एन. मजूमदार ने " जनजाति" को "परिवारों का संकलन कहा है जिसका अपना एक सामान्य नाम होता है, जिसके सदस्य एक निश्चित भूभाग पर रहते हैं, सामान्य भाषा बोलते हैं, विवाह, व्यवसाय या उद्योग के विषय में कुछ निषेधों का पालन करते हैं तथा एक सुनियोजित आदान-प्रदान का विकास करते हैं ।

उपरोक्त परिभाषा में किसी भी जनजाति की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं :-

1) स्थानियकता :- जनजाति एक सामाजिक समूह होता है। एक जनजाति एक से अधिक स्थानों पर भी निवास करती है।

एक सामान्य नाम :- प्रत्येक जनजाति का एक विशिष्ट नाम होता है । वैसे एक जनजाति में अनेक नाम के गौत्र हो सकते हैं । किन्तु उस जनजाति का नाम एक ही होता है ।

सामान्य भाषा :- प्रत्येक जनजाति की अपनी एक भाषा होती है। यद्यपि कि उस जनजाति की जनसंख्या का बिखराव अनेक प्रदेशों में हो सकता है किन्तु उन सबकी भाषा एक ही होती है

सामान्य संस्कृति :- प्रत्येक जनजाति के अपने सांस्कृतिक प्रतिमान और सांस्कृतिक परम्पराऐं होती है। जिनके आधार पर अन्य जनजाति से प्रथम पहचान की जाती है ।

क्षेत्रियता या प्रादेशिकता :- प्रत्येक जनजाति एक निश्चित भू-भाग पर निवास करती है। जो उस जनजाति का क्षेत्र या प्रदेश जाना जाता है ।

केन्द्रीय राजनैतिक संगठन :- प्रत्येक जनजाति के अपने नियम अपनी विशेषताएँ और अपनी कानूनी एवं राजनैतिक व्यवस्था होती है जिसका पालन उस जनजाति का प्रत्येक सदस्य सम्मान एवं अनिवार्यता से करता है।

प्राथमिक समूहों की प्राथमिकता :- जनजातीय समाज व्यवस्था मूलतः प्राथमिक समूहों पर आश्रित है। जनजाति में परिवार पहली और सर्वव्यापी सामाजिक इकाई है। उसमें द्वितीयक समूह देखने नहीं मिलते हैं।

सामान्य नाम :- प्रत्येक जनजाति का विशिष्ट नाम होता है जो उसके गणचिन्ह (Totem) द्वारा अभिव्यक्त होता है ।

अटुट सामुदायिक भावना :- प्रत्येक जनजाति के सदस्य एक दूसरे से और सब सदस्य पूरे समुदाय से गुथे होते हैं । इस सामाजिक एकता व स्थायित्व को नहीं तोड़ा जा सकता ।

इन विशेषताओं से यह स्पष्ट होता है कि जनजातीय समुदाय एक विशिष्ट प्रकार की सामाजिक व्यवस्था |

जनजातियों का इतिहास

जनता की जातीय संरचना का प्रश्न मध्यप्रदेश के प्राचीनतम आदिवासी निवासियों में तथाकथित प्राग, द्रविड़, प्रोटो-आस्ट्रोलायड या वेद्दित थे जो उत्तर–पश्चिम से यहाँ दो या दो से अधिक धाराओं में आये । ऐसा प्रतीत होता है कि प्रथम कबीला ऐसे अन्न- संग्रहण और शिकारियों का था जिनमें गोत्र, ठोठेमवाद का विकास नहीं हुआ था। दूसरा कबीला अपेक्षाकृत स्थानीय गौत्रधारियों का था। जनसंख्या की वृद्धि, परिव्रजन तथा गोत्रों के बिखरने के कारण सबसे पहले सरगुजा जिले में वर्गगत ठोठेमवाद का विकास हुआ जहाँ बिरहोड़ जनजाति में आज भी पितृशीय ठोठेमवाद सुदृढ़ रूप में मिलता है।

मध्यप्रदेश में प्रवेश करने वाला दूसरा कबीला संभवतः प्राचीन मंगोलाइड आस्ट्रो-एशियाटिक का था, जो उत्तर पूर्व में असम, बिहार तथा उड़ीसा होते हुए यहाॅ पहुँचे। ये आज के मुण्डाभाषी आदिवासी - वर्ग हैं, जो सरगुजा, रायगढ़, तथा सतपुड़ा, अंचल में व्याप्त है। रामायण में आर्यों तथा तात्कालीन मध्यप्रदेश के आदिवासियों के बीच संघर्ष के स्पष्ट उल्लेख के साथ आदिवासियों के आर्थिकरण की भी चर्चा है। महाभारत प्रथम साहित्य रचना है जिसमें आदिवासियों के प्रति सम्मानजनक भाव का विकास हुआ था विविध आदिवासियों के विश्वासों और शिक्षाओं को उसमें संजोया गया।

मध्यप्रदेश की जनजातियाँ मूल आदिम संस्कृति की अपरिवर्तित अवशेष है। शायद मध्यप्रदेश के ऊबड़-खाबड़ भूभाग में भौतिक रूप से एकाकी जीवन बिताने के कारण से बची रही । भारतेतर राजपूतवंश तथा आदिम जनजातियाँ कालांतर में राजपूतों के अन्तर्गत हो गयी। आदिवासियों के साथ हिन्दुओं का यह वैवाहिक सम्बन्ध समीकरण के एक भिन्न इतिहास का ही वाचक है। यह भी स्पष्ट है कि आदिवासियों की शूरवीरता तथा सैन्यदक्षता के ही कारण उन्हें हिन्दु समाज के क्षत्रिय वर्ग के भीतर स्थान मिला।

आदिवासियों का गणतंत्रवाद कालांतर में 600 ईसापूर्व राजनीतिक संगठन का एक व्यापक वांछित प्रशासन बन गया। भारतीय आर्यों के निर्माणकाल में जठा समाज संस्थागत सरजता व हँगामें से गुजर रहा था, उस समय सामाजिक और राजनीतिक विचारों के जन्म में आदिवासी गणत्रवाद की विशेष भूमिका थी । वास्तव में इसकी जीवंतता का मूल कारण मध्यप्रदेश में आदिवासी समाज की लघुता के कारण था। जहाँ आदिवासी अपने क्षेत्र की खुद ही रक्षा करने में समर्थ थे। उनके लिए मैदानी क्षेत्र के समान उन्हें विशाल सेना जुटाने की आवश्यकता नहीं थी। इस आर्य प्रकृति के गणतंत्रवाद की प्रमुख विशेषता आदिम आदिवासी समाजों के समान व्यक्तिवाद पर आग्रह ही था।

भारत के उत्तरी हिस्से आदिवासी जनजातियों की संख्या सबसे कम है। इसके विपरीत भारत के पूर्वी और उत्तर- -पूर्वी राज्यों में जनजातियों की संख्या सबसे अधिक है। कुछ आदिवासी जातियाँ उत्तराखण्ड और हिमालय प्रदेश की पहाड़ियों पर भी पायी जाती हैं। भारत की प्रमुख जनजातियाँ भील, गोंड, संथाल, मीणा, उरांव, मुंडा, खोंड, शोम्पेन, निकोबारी, नीरो, कोली, हो, सावरा, ग्रेट अण्डमानी, ओगे, सेटीनेती, जारण, कालेयक खासी, गारों आदि प्रमुख जनजातियाँ पाई जाती हैं

मध्यप्रदेश में कुल 46 जनजातियाँ पायी जाती हैं। राज्य में सर्वाधिक जनजाति जनसंख्या अलीराजपुर जिले में तथा सबसे कम जनसंख्या भिण्ड जिले में पाई जाती हैं। देश में सर्वाधिक अनुसूचित जनजातियाँ मध्यप्रदेश में पाई जाती हैं। वर्ष–1961 की जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में इसकी कुल जनसंख्या 38.9 लाख थी जो वर्ष-2011 में बढ़कर 15316784 हो गई। राज्य की अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या देश की कुल अनुसूचित जनजातियों की संख्या का 14. 5 प्रतिशत है तथा राज्य की कुल जनसंख्या का 21.1 प्रतिशत है।

अनुसूचित जनजाति को सामाजिक व्यवस्था

सामाजिक व्यवस्था का अर्थ होता है समुदाय के सदस्यों के बीच परस्पर संबंध, उनकी पारिवारिक, परिवार का मुखिया, उत्तराधिकार के नियम और समाज में उस समुदाय के लोगों का स्थान । इस दृष्टि से देखें तो आदिवासियों की सामाजिक व्यवस्था बिलकुल विशिष्ट प्रकार की होती है। कुछ समय पूर्व तक तो आदिवासी अपनी आदिम सभ्यता में ही जीते थे लेकिन आजकल वे बाहरी दुनिया के सम्पर्क में भी आने लगे हैं जिस कारण उनकी सामाजिक संस्था में रेखांकित करने योग्य बदलाव आ रहे हैं। कहा जा सकता है कि आदिवासी समाज आजकल संक्रमण के काल से गुजर रहा है। बाहरी दुनिया के सम्पर्क में आने के कारण अब आदिवासियों की सामाजिक संरचना में काफी बदलाव आने लगे हैं। जो जनजातीय समूह सुदूर बीहड़ और दूरदराज के इलाकों में रहते हैं । इसलिए उनकी सामाजिक संरचना अपने मूल स्वरूप में ही है। वैसे आजकल शायद ही कोई आदिवासी जाति हो जो बाहरी दुनिया के सम्पर्क में न आयी हो। जब कोई आदिवासी जाति, बाहरी दुनिया के सम्पर्क में आती है और संचार के आधुनिक साधनों का प्रभाव उन पर पड़ता है तो उनकी कुछ पुरातन परम्पराएँ दम तोड़ने लगती है।

सामाजिक संरचना व प्रथाओं के बदलने या उनके त्याग करने का सिलसिला जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी चल रहा है । आदिवासियों के परिवारों का स्वरूप बदल रहा है और उन्होंने कई मानवीय प्रथाओं का त्याग कर दिया है। इन सबके कारण आदिवासी समाज आज अपने मूल स्वरूप में नहीं रहे गये हैं। सरकारी प्रयासों के कारण आदिवासियों ने अपनी पर्यावरण विरोध गतिविधियों का भी त्याग कर दिया |

धार जिले का अतीत इस दृष्टि से परिपूर्ण है । धार मालवा के प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगरों में से एक है। धार जिले की संस्कृति अत्यंत प्राचीन है। इस जिले का नाम मुख्यालय नगर धार के नाम पर रखा गया है। यह माना जाता है कि धार नाम की उत्पत्ति धारा नगरी से हुई है । सम्भवतः इसका संबंध परमारों द्वारा इसे तलवार के बल पर अधिकृत किये जाने से है । धार जिले का वास्तविक क्रमबद्ध इतिहास परमार नरेशों से ही प्रारंभ होता है।

धार जिले का धरातल भौतिक संरचना की दृष्टि से बहुत ही असमानता लिए हुए हैं। यहाँ पर कहीं तो ऊँचे पर्वत है तो कहीं पठार और कहीं समतल उपजाऊ मैदान है। जिले का मध्यभाग पहाड़ी है। जिले के उत्तर में मालवा का पठार है तथा दक्षिण में नर्मदा घाटी (नर्मदा का मैदान है) यह भाग प्रायः समतल है।

धार जिले की विशेष प्राकृतिक बनावट जलवायु की विभिन्नता उपस्थित करती है। किन्तु मानसूनी प्रभाव से जलवायु को विभिन्नता में भी एकरूपता देखने को मिलती है।

धार जिला एक आदिवासी बाहुल्य जिला है जो पिछड़े जिलों में गिना जाता है। यद्यपि केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा जनजातियों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएँ क्रियान्वित की जा रही है किन्तु अनुसूचित जनजाति का अभी भी आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक विकास नहीं हो पाया । जनसंख्या का आकार एवं प्रकार किसी देश, प्रदेश अथवा क्षेत्र की समृद्धि का प्रमुख निर्धारण होता है। वास्तव में किसी भी क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग, औद्योगिक, व्यावसायिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनैतिक विकास वहाँ की जनसंख्या पर निर्भर करता है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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