चित्रकूट का सामान्य परिचय

प्राकृतिक सौन्दर्य एवं खनिज सम्पदाओं से भरपूर जनपद - चित्रकूट भारत की धार्मिक-सांस्कृतिक आस्था का प्राचीन केन्द्र रहा है। चित्रकूट का वर्णन सृष्टि के आदिकाल से मिलता है। त्रेता युग में इच्छवाकु की 65वीं पीढी में उत्पन्न बनवासी श्री राम की लगभग साढ़े ग्यारह वर्ष तक यह पावन स्थली कर्मस्थली रही है। चित्रकूट अपनी प्रभु विस्मयता से मानव के हृदय को शुद्ध करने में सक्षम है। इसके साथ ही नेत्रों को लुभावनें वाले प्राकृतिक सौंदर्य द्वारा चिंता दूर करने का गुण भी चित्रकूट में है। चित्रकूट ऐसा आरण्यक है जो अपने प्राकृतिक महत्व के साथ अध्यात्मिक महिमा व नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध है। चित्रकूट के वन पर्वतों के बीच झरते झरनों कुलाचे भरते मृग छौनों, नृत्य करते मयूरों को देखकर पर्यटक जितने आनंदित होते हैं उतने ही श्रद्धालु भक्त पयश्वनी में गोता लगाकर कामदगिरि की धूल से धूलसरित होकर, भक्ति भावना में लीन होकर परिक्रमा करके भाव विभोर हो उठते हैं।

इस क्षेत्र में पग-पग पर मंदिरों, शिलाखण्डों, गुफाओं तथा आश्रमों में साधु-संतों के अनवरत् अनुष्ठानों एवं प्रवचनों से दिव्य वातावरण का अहसास कर व्यक्ति स्वयं की आकाँक्षाओं को भूल जाता है। उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में फैली विंध्य पर्वत श्रृंखला से घिरे चित्रकूट को चौरासी कोष वाले परिक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। चित्रकूट क्षेत्र जनपद की अप्रतिम पौराणिक एवं अनूठी सांस्कृतिक धरोहर है।

चित्रकूट से संबंधित अनेक किंवदंतियां हैं। कहा जाता है कि चित्रकूट की यज्ञ वेदी में ब्रह्मा जी ने चिरकाल तक यज्ञ किया। एक किंवदंती के अनुसार प्राचीनकाल में दक्ष प्रजापति का विवाह अकिंनकी से हुआ था, उनका पुत्र हरियाशु था, नारद जी की शिक्षा से यह मोह माया रहित हो गया। तब ब्रह्मा जी ने नारद को श्राप दिया कि तुम तीनों लोगों में हमेशा घूमते रहोगे । श्राप को दूर भगाने के लिए उपाय पूछे जाने के लिए नारद जी ब्रह्मा जी के पास गये, ब्रह्मा जी ने कहा कि पयश्वनी में स्नान कर कामदगिरि में परिक्रमा कर तुम श्राप मुक्त हो जाओगे । इस तरह कामदगिरि की परिक्रमा का शुभारंभ नारद जी ने किया। इसकी परम्परा आज भी है। मंदाकिनी नदी को सब पापों का नाश करने वाली कहा जाता है। मंदाकिनी नदी में स्नान करके पितरों एवं देवताओं का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहीं इस बात को विस्मृत नहीं किया जा सकता है कि श्री रामचरित मानस के रचयिता महाकवि तुलसीदास की जन्मस्थली जनपद मुख्यालय से 33 किमी. दूर राजापुर में स्थित है। जहाँ हस्तलिखित श्रीरामचरित मानस की पाण्डुलिपि मौजूद है, साथ ही भव्य तुलसी स्मारक भी बना हुआ है। रामायण के रचयिता आदि कवि महर्षि बाल्मीकि जी की जन्म स्थली ग्राम बगरेही, लालापुर जनपद-चित्रकूट का ही एक अंश है। यह जनपद पर्यटन स्थलों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि कट्टर मुगल शासक औरंगजेब यहाँ अपनी हठधर्मिता छोड़कर चित्रकूट के प्रति न केवल नतमस्तक हुआ था बल्कि बालाजी मंदिर के रूप में एक मंदिर का निर्माण कराकर उक्त मंदिर को सैकड़ों बीघे भूमि दान में दी थी। उक्त भूमि को दान में देने का आदेश एवं ताम्रपत्र आज भी ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मंदिर में सुरक्षित है। चित्रकूट की इस धार्मिक महत्ता के कारण यहाँ वर्ष में 12 आमवस्या, दीपावली मेला, राष्ट्रीय रामायण मेला, वाल्मीकि रामयण मेला तथा चित्रकूट महोत्सव आदि पर्व होते हैं। जहाँ असंख्य तीर्थ यात्री तथा पर्यटक देश के विभिन्न अंचलों से आते हैं। 

प्रमुख नदियां

1. यमुना : उत्तर व उत्तरपूर्व यमुना नदी जनपद की सीमा बनाती है। राजापुर एवं मऊ यमुना नदी के किनारे स्थिति है।

2. पयश्वनी (मंदाकिनी नदी) यह पवित्र नदी सती अनुसुइया : आश्रम के अनुसुइया पहाड़ से निकली है जो लगभग 35 किमी. की दूरी तय करने के बाद उत्तर दिशा की ओर यमुना नदी में मिलती है।

3. ओहन नदी : यह नदी मारकुण्डी के समीप से निकलकर वाल्मीकि आश्रम लालापुर से होते हुए पयश्वनी नदी में मिलती है। इस नदी पर ओहन डैम निर्मित है जो नहर द्वारा सिंचाई सुविधा प्रदान करता है।

4. गुन्ता नदी : यह नदी रैपुरा ग्राम के दक्षिण से निकलती है इस पर गुन्ता बांध निर्मित है जो अक्टूबर 2001 से सिंचाई हेतु चालू किया गया, इसके अलावा छोटी-छोटी नदियां है। बरदहा, पिपरायल, गेहुंआ, बागे, बाण गंगा आदि

चित्रकूट जनपद का आकार व स्थिति

चित्रकूट जनपद उत्तर में 80°-20 देशांतर एवं पूर्व में 25° 20' अक्षांश के मध्य स्थिति है। 659 ग्रामों 2 तहसील 1 उपतहसील, 5 विकासखण्ड 43 पुलिस स्टेशन (3 आंशिक ) 1 नगर पालिका एवं 2 नगर पंचायत वाले इस जनपद का भौगोलिक क्षेत्रफल 3567.53 वर्ग किलोमीटर है।

जनपद की उत्तरी सीमा में जनपद फतेहपुर, उत्तर पूर्व मे जनपद कौशाम्बी, पूर्व में इलाहाबाद, दक्षिण पूर्व मध्यप्रदेश तथा पश्चिम में पैतृक जनपद बांदा स्थिति है। इस जनपद की जलवायु राज्य के अन्य जनपदों से भिन्न है, गर्मियों में अत्यधिक गर्म सर्दियों में अधिक ठंड रहती है।

Post a Comment

Previous Post Next Post