ग्वालियर घराने का परिचय, ग्वालियर घराने की विशेषता

ख्याल गायकों के संदर्भ में ग्वालियर घराना सर्व प्रसिद्ध घराना माना जाता है। इस घराने की शुरूआत नत्थन पीरबख्श (लगभग 18वीं शती) से मानी गई है। डॉ० परांजपेजी के अनुसार, "ग्वालियर घराना लखनऊ घराने से निकला। लखनऊ के प्रसिद्ध कव्वाली गायक गुलाम रसूल के प्रपौत्र शक्कर खाँ और मक्खन खाँ लखनऊ के प्रसिद्ध गायक थे । इनके पुत्र मुहम्मद खाँ और नत्थन पीरबख्श अपने समय के उत्कृष्ठ कलाकार थे। लखनऊ का वातावरण इनके लिए उचित नहीं रहा अतएव मुहम्मद खाँ और नत्थन पीर बख्श ग्वालियर दरबार में जा पहुँचे। एक घराने के इन दोनों कलाकारों की शैलियों में अन्तर था फिर भी दोनों के गंगा-यमुनी संयोग से ग्वालियर घराना बना। ग्वालियर घराने के प्रसिद्ध ख्याल गायक हस्सू- हद्दू खाँ इन्हीं के पौत्र थे । हस्सू हद्दू खाँ की शिष्य परम्परा को इन्हीं के शिष्यों ने ग्वालियर घराने का विस्तार किया । इन्हीं के प्रभाव जयपुर और आगरा घराने के संस्थापक कलाकारों पर भी पड़ा। ग्वालियर घराने का जितना प्रसार व प्रचार देष में हुआ, उतना किसी भी घराने का नहीं हुआ । हस्सू हद्दू खाँ से लेकर आजतक इस घराने का नाम है। और अनेक कलाकारों ने अपनी गायकी से इस घराने का विस्तार किया। ग्वालियर घराने की शिष्य परम्परा में निसार हुसैन खाँ, नजीर खाँ, रामकृष्ण बुवा बझे, शंकर पंडित वासुदेवराय जोषी देवजी परांजपे, बालकृष्ण बुवा, इचलकरंजीकर, पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर पंडित ओंकारनाथ ठाकुर और अन्य षिष्यों की लम्बी कतार रही है ।"

इस घराने के जन्मदाता प्रसिद्ध संगीतज्ञ हद्दू खाँ । हस्सू खाँ के दादा स्व. नत्थन पीरबख्श माने जाते हैं। 

ग्वालियर घराने की विशेषता

इस घराने की खास विशेषता, आवाज को दबाना या छिपाना मना है, इसीलिए इस घराने के गायकों की आवाज खुली जोरदार और बुलन्द होती है। आवाज को तीनों सप्तकों के लिए तैयार करने में विशेष प्रकार की साधना या रियाज किया जाता है । बन्दिष गाने से पहले राग के स्वरूप को दिखाने के लिए आलाप गायन आवश्यक होता है । स्थायी तथा अन्तरा गाने के पश्चात ही गायकी आरम्भ करना ग्वालियर घराने की विशेषता है। स्वरों की बढ़त धीरे-धीरे करने के वाद ही टीप सं, यानी तार सप्तक के स्वरों को स्पर्श किया जाता है । आलापचारी के पश्चात बोलतान, तान सरगम आदि का प्रयोग किया जाता है। ग्वालियर घराना तानों की स्पष्टता और बुलन्दी के लिए प्रसिद्ध है। तानें लय के अनुसार ली जाती हैं गमक तथा जबड़े की तानें भी ली जाती हैं सीधी पल्लेदार एवं दानेदार 'तान' इस घराने की विशिष्टता है। कहा जाता है कि " ग्वालियर की गायकी की गति 'दरबारी सवारी की तरह धीर - गम्भीर, डौलदार और भव्य होती है ।" अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण ग्वालियर घराना आज भी अपनी गुणवत्ता बनाए हुए है।

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