जयपुर घराने का इतिहास, जयपुर घराने की विशेषताएँ

जयपुर घराना का आरम्भ जयपुर के करामत अली और मुबारक अली (लखनऊ वालों) से माना जा सकता है। ये दोनों महाराज रामसिंह के दरबारी गायक थे। कोल्हापुर के सुप्रसिद्ध गायक स्व. अल्लादिया खाँ जयपुर के माने हुए कलाकार थे। ये ध्रुवपद की डागुरवाणी के कलाकारों के वंषज थे। इस घराने में जयपुर, ग्वालियर और लखनऊ घरानों का प्रभाव रहा। इस घराने के शिष्य परम्परा के प्रसिद्ध गायकों में भूर्जी खाँ, केसरबाई केरकर, लक्ष्मीबाई जाधव, मल्लिकार्जुन मंसूर, मोधूबाई कुर्डिकर इनकी सुपुत्री किशोरी अमोणकर देवास के स्व. रजव अली खाँ, जयपुर घराने के ही थे उनमें लखनऊ, किराना तथा जयपुर घरानों की विशेषताएँ हैं ।

जयपुर घराने की विशेषताएँ

विलम्वित एवं गमक से युक्त आलाप, वक्र स्वरों का प्रयोग तथा बलपेच युक्त तानें, मुखबन्दी को तानें इस घराने की विशेषता है एक ही साँस में एक से अधिक आवर्तनों तक आलापचारी जयपुर घराने का खास लक्षण है।

ख्याल गायकी के साथ तीनताल, धीमें आलापों में टप्पे जैसी छोटी-छोटी परन्तु द्रुतलय की मुरकिया एवं तानें ली जाती है। सपाट व लम्बी तानें इस घराने में कम ली जाती हैं। इस घराने में मुख्यतया काफी कन्हड़ा, नायकी कान्हड़ा रायसा कान्हड़ा, बिगाहड़ा, खोखर, त्रिवेणी, पटविहाग, पटमंजरी जैतश्री राग गाये - बजाए जाते हैं।

इस घराने के जन्मदाता 'मनरंग' बताये जाते हैं। उनके वंषज मुहम्मद अली खाँ हुए और मुहम्मद अली खाँ के पुत्र आषिक अली खाँ हुए। आगे चलकर इस घराने के दो उप-घराने हो गये - 1. पटियाला - घराना और 2. अल्लादिया खाँ घराना। जयपुर–घराने की विशेषताओं के साथ-साथ इन उप - घरानों ने कुछ और विशेषताएँ पैदा करके अपनी-अपनी गायक शैली को आकर्षक बनाया।

जयपुर घराने की विशेषताएँ इस प्रकार हैं :-

1. आवाज बनाने की अपनी स्वतंत्र शैली ।

2. खुली आवाज में गायन । तनैती बाज, बोल, उपज तथा अनाघात लय ।

3. गीत की संक्षिप्त बंदिश ।

4. वक्र तानें तथा आलाप की छोटी-छोटी तानों से बढ़त ।

5. ख़याल–गायन की विशेष बंदिश |

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