जलियांवाला बाग हत्याकांड का वर्णन

भारत के इतिहास में जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड एक ऐसी घटना थी जिसे कोई पत्थर दिल इंसान भी याद करके सहम जाता है । 13 अप्रैल 1919 का वह दिन किसी भी भारतीय के लिए एक अविस्मरणीय दिन है । अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास स्थित यह बाग उन दिनों मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान हुआ करता था । वहाँ तक जाने या बाहर आने के लिए केवल एक सँकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे । वह रविवार का दिन था, जब आस-पास के गाँवों से भारी संख्या में हिंदू तथा सिख किसान बैसाखी का उत्सव मनाने अमृतसर आए हुए थे । उसी दिन इस बाग में एकजुट होकर भारतीय प्रदर्शनकारी रोलट एक्ट का विरोध कर रहे थे । शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था । बैसाखी के मौके पर मेला देखने तथा शहर घूमने आए लोग भी उस बाग में जा पहुँचे । करीब पांच हजार लोग उस समय बाग में उपस्थित थे । ब्रिटिश सरकार के कई अधिकारियों ने इसे अपने शासन के खिलाफ सन् 1857 के गदर की पुनरावृत्ति जैसी परिस्थिति समझी और इसे दबाने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे । शाम करीब साढे चार बजे ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर अपने ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहाँ पहुँच गया । उसने सिपाहियों को बाग के एकमात्र तंग प्रवेश द्वार पर तैनात कर दिया । बाग को चारों तरफ से घेर लिया गया । डायर ने बिना किसी चेतावनी के सैनिकों को गोली चलाने का हुक्म दे दिया । चारों ओर चीख-पुकार मच गई । डरे-सहमे हुए निहत्थे बच्चे, महिलाएँ, बुजुर्ग आदि हजारों की संख्या में उनकी गोलियों के शिकार बनने लगे । कुछ ही मिनटों के अंदर 1650 राउंड गोलियाँ दागी गई। कई लोग गोलियों के शिकार बने तो कई लोग जान बचाने की कोशिश करने के क्रम में लोगों की भगदड़ में कुचल कर मारे गए । कुछ लोग जान बचाने के लिए बाग में बने कुएँ में कूद गए और देखते-देखते वह कुआँ भी लाशों से भर गया । इस घटना में हजारों निर्दोष लोग मारे गए ।

जनरल डायर द्वारा कराए गए पाशविक अत्याचारों का वर्णन करते हुए सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखा है,

“कोमल बालक मरे यहाँ गोली खाकर, कलियाँ उनके लिए गिना थोड़ी लाकर, आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं । 

अनेक पंजाबियों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिनमें बाबा रामसिंह, जो कूका आंदोलन के लिए प्रसिद्ध रहे, लाला लाजपत राय, मदन लाला ढींगरा, भगत सिंह, भाई परमानंद आदि शामिल हैं ।

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