जौहर प्रथा क्या है? जौहर प्रथा का इतिहास

राजपूत जाति की नारियाँ सतीत्व का बहुत अधिक ध्यान रखतीं थीं । इसी कारण उनमें जौहर प्रथा का प्रचलन हुआ । जौहर की प्रथा प्रायः राजपूतों तक ही सीमित थी । यद्यपि अन्य उदाहरण की भी कमी नहीं है ।' जब युद्ध में राजपूत सरदार और उनके योद्धा पराजय के निकट आ जाते तो वे बहुधा अपने स्त्री बच्चों की हत्या कर डालते या उन्हें तहखाना में बन्द करके भवन में आग लगा देते । फिर हाथ में तलवार लेकर अवश्यम्भावी किन्तु वीरतापूर्ण मृत्यु का आलिंगन करने को टूट पड़ते थे ।

जौहर के अनेक उदाहरण इतिहास में मिलेंगे । रणथम्भौर के चौहान योद्धा हमीर देव का उदाहरण सर्वविदित है । जब सुल्तान खिलजी का बहुसंख्यक सेना से सामना करना पड़ा तब उसने दीर्घ काल तक दृढ़ता पूर्वक प्रतिरोध करने के पश्चात् जौहर कर लिया । हमारे पास कम्पिला या कपिला के राजा द्वारा किये गये जौहर -उद्दीन गुशस्य का अधिक सुस्पष्ट वर्णन है । कम्पिला या कपिला के राजा ने बहा- उ नामक विद्रोही को शरण दी थी । इसलिए मुहम्मद तुगलक ने कम्पिला पर आक्रमण कर दिया । कम्पिला के राजा ने लड़ना स्वीकार कर लिया था परन्तु शरणार्थी को शरण देना न स्वीकार किया । उसने युद्ध में मर मिटने की घोषणा पहले से ही कर दी थी । अनेक महिलाओं नें स्नान कर शरीर पर चन्दन का लेप लगाकर अग्नि में प्रविष्ट होकर अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया । शाही घराने की महिलाओं के पीछे उनसे सम्बन्धित अन्य नारियों ने भी अग्नि में अपने प्राण की आहुति दे दी । राजा और इसके योद्धाओं ने भी स्नान करके अपनी देह में चन्दन का लेप किया और वे अपने शस्त्रों से सुशोभित हो गये, किन्तु उन्होंने रक्षा कवच नहीं लगाया । वीरों का समूह घेरा डालने वालों से युद्ध करने के लिए चला और वे तब तक युद्ध करते रहे जब तक कि उनमें से प्रत्येक मृत्यु को प्राप्त नहीं हो गये ।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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