प्रजातंत्र का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, गुण, दोष

प्रजातंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता समान है। प्रजातंत्र केवल एक शासन प्रणाली तक सीमित नहीं है यह एक राज्य व समाज का एक रूप भी है। प्रजातंत्र राज्य, समाज व शासन का मिलन है। प्रजातंत्र जनता को शासन करने, उस पर नियंत्रण करने व उसे हटाने की शक्ति है। समाज में प्रजातंत्र एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमें समानता का विचार और व्यवहार समान हो। जनता अप्रत्यक्ष रूप से अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन की शक्ति का उपयोग करती है। वर्तमान में प्रजातंत्र कहलाता है। 

प्रजातंत्र की विशेषताएँ

प्रत्येक व्यक्ति का लक्ष्य उनके स्वयं के लिए विकास होता है। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को कुछ अवसरों की आवश्यकता होती है। प्रजातंत्र एकमात्र ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें सभी को अपने सर्वागीण विकास के लिए बिना किसी भेदभाव के समान अवसर प्राप्त होते है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था नागरिकों की गरिमा तथा समानता, स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धान्त पर आधारित हैं।

(1) उत्तरदायी शासन व्यवस्था : प्रजातंत्र में जनता प्रत्यक्ष एवं अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन करती है। इसमें जनता का शासक वर्ग पर निरंतर प्रभाव रहता है शासन से प्रश्न पूछने एवं उसकी आलोचना के माध्यम से जनता शासन से उत्तरदायित्व व्यवहार करा सकती है। जो नियम अवधि के लिए ही प्रतिनिधियों को सौंपी जाती है। शासन का जनता के प्रति उत्तरदायित्व अनिवार्य होता है अन्यथा अगले चुनाव में जनता के पास किसी अन्य को सत्ता सौंपने का विकल्प होता है।

(2) समानता पर आधारित शासन : प्रजातंत्र समानता के सिद्धान्त पर आधारित शासन प्रणाली हैं। इस शासन प्रणाली में सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान नागरिक व राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं । प्रजातंत्र में निश्चित समय अवधि में चुनाव आवश्यक होते हैं। इन चुनावों में निश्चित समय या प्रत्येक वयस्क नागरिकों को मत देने व चुनावों में प्रत्याशी बनकर भाग लेने का समान अधिकार प्राप्त होता है। सामाजिक एवं आर्थिक समानता पर भी वर्तमान प्रजातंत्र में बल दिया जाता है। धर्म, जाति, लिंग सामाजिक स्तर आदि के आधार पर भेदभाव न होना तथा आर्थिक दृष्टि से सभी की न्यूनतम आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन् समानरूप से उपलब्ध होना, इसलिए एक व्यक्ति एक मत प्रजातंत्र की धुरी है ।

(3) स्वतंत्रता की पोषक प्रणाली : प्रजातंत्र में नागरिकों के सर्वांगीण विकास के लिए अनेक प्रकार की स्वतंत्रताएँ प्राप्त होती है। राजनैतिक स्वतंत्रता के अतिरिक्त नागरिकों को अनेक प्रकार की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रताओं के अधिकार भी प्राप्त होते है। प्रजातंत्र में नागरिकों को मत देने, निर्वाचित होने, सार्वजनिक पद गृहण करने, भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता सूचना प्राप्त करने का अधिकार होता हैं।

(4) जनता के व्यक्तित्व का निर्माण करने वाली शासन प्रणाली : फील्ड के अनुसार - प्रजातंत्र का अंतिम औचित्य इस बात में है कि यह नागरिकों के मन में कुछ विशेष प्रवृत्तिया उत्पन्न करता है, व्यक्ति सार्वजनिक कार्यो के बारे में सोचता है, उनमें रूचि लेता है, और चर्चा करता है, उनमें दूसरों के प्रति सहिष्णुता उत्पन्न होती है तथा समाज के प्रति उत्तरदायित्व उत्पन्न होता है।

(5) नैतिक विकास में सहायक : अमेरिका के राष्ट्रपति लावेल ने कहा है कि शासन की उत्कृष्टता की कसौटी शासन व्यवस्था, आर्थिक समृद्धि या न्याय नहीं हैं। अपनी जनता में नैतिकता की भावना, ईमानदारी उद्योग, आत्मनिर्भरता और साहस के गुण पैदा करता है वोट देने का अधिकार नागरिकों में विशेष गरिमा उत्पन्न करता है | 

(6) लोक शिक्षण का सर्वोत्तम साधन : चुनाव के समय मीडिया द्वारा समस्याओं के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला जाता हैं जिससे शासन की अनेक बातों का ज्ञान हो जाता हैं। 5 वर्ष के कार्यकाल में किए गए कामों की जानकारी देते हैं तथा प्रश्न भी करते है, लोगों के विचार और शिकायतें भी उन्हें सुनवाते है। इससे जन को भी जानकारी मिलती है तथा उसे यह ज्ञान हो जाता है कि जन प्रतिनिधियों को क्या-क्या करते थे, क्या किये और क्या नहीं किये। इस प्रकार लोगों को कम समय एवं शासन व्यवस्था की बातें समझ में आ जाती हैं।

(7) लोगों में देशभक्ति उत्पन्न करना : लोगों को यह, ज्ञात नहीं हो पाता है कि राजा का धन कहाँ से आया कहाँ खर्च हुआ। वे लोग राजा से पुछ ही नहीं सकते किन्तु प्रजातंत्र में उन्हें अनेक जानकारी भी समझ में आते है और मिलती रहती उन्हे अपने अधिकार भी समझ में आ जाती है।

(8) सत्ता का दुरूपयोग रोकना : मंत्रियों पर संसद का दबाव रहता तथा विपक्षी दल भी सरकार की गलत नीतियों का विरोध करते रहते हैं। मंत्रियों और जनप्रतिनिधियों को चुनाव के समय उन्हें जनता से वोट मांगने जाना होता है इससे सरकार के कार्य पर अंकुश रहता हैं। जो मंत्री मनमानी करते हैं तो जनता उन्हें अगले चुनाव में हरा देती है।

(9) जनता की इच्छा एवं विशेषज्ञता का सुन्दर समन्वय : हाकिंस ने कहाँ है कि प्रत्येक शासन में वास्तविक शासक विशेषज्ञ ही होते हैं बजट में धन कहाँ से आएगा और जाता है और उसे किस प्रकार व्यय किया जाए यह सामान्य व्यक्ति नहीं बता सकता वहीं बता सकता है जो अर्थशास्त्र जानने के साथ बजट बनाना भी जानता हो सड़के बननी हैं तो कितना खर्चा होगा और पहले कहाँ पर सड़क बनाना होगा यह कोई विशेषज्ञ ही बता सकता है किन्तु वे जनता की भावनाओं और दुःख को नहीं समझते

(10) विकास में तीव्रगति : प्रजातंत्र में शासन तन्त्र के अतिरिक्त अनेक लोग अलग-अलग क्षेत्रों में स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करते रहते है। नए-नए कार्य क्षेत्र में विकसित हो रहे हैं जिनसे लोग धनोपार्जन कर रहे है।

प्रजातंत्र का स्वरूप

प्रजातंत्र केवल सरकार का स्वरूप ही नहीं है। यह समाज की एक व्यवस्था भी है। प्रजातंत्र के शुभचिंतकों ने कभी - कभी उसकी व्याख्या केवल शासन के एक प्रकार के रूप में की है। जे. आर. लावेल कहते हैं कि प्रजातंत्र शासन के क्षेत्र में केवल 'एक प्रयोग' है। लिंकन इसकी परिभाषा जनता के लिए जनता द्वारा जनता का शासन कहकर करते है। 28 सीले कहते हैं कि प्रजातंत्र वह शासन है जिसमें हर व्यक्ति भाग लेता है। ‘डायसी’ प्रजातंत्र को सरकार का एक ऐसा स्वरूप बताते हैं जिसमें जनता का एक बड़ा भाग शासन करता है।

प्रजातंत्र अनेक लोगों द्वारा शासन हैं। प्रजातंत्र का आरंभ यूनान में नगर राज्यों में हुआ था । इन सभी राज्यों को पूर्ण स्थानीय स्वशासन प्राप्त था। यूनान के इन नगर राज्यों ने राजतंत्र निरंकुश शासन, कुलीनतंत्र, अल्पतंत्र और प्रजातंत्र आदि सरकार के विभिन्न रूपों के प्रयोग किए थे। अरस्तू ने अपना फैसला नगर राज्य में प्रचलित प्रजातंत्र के स्वरूप के पक्ष में दिया था। यूनान राज्यों का प्रजातंत्र शुद्ध एवं प्रत्यक्ष प्रजातंत्र था। सभी स्वतंत्र व्यक्ति आम सभाओं में एकत्र होते कानून बनाते और उन्हें लागू करते, राजदूतों से मिलते और जूरियों की भांति काम करते थे। प्रजातंत्र का जन्म एक बार फिर मध्ययुग के इटली नगर राज्यों में हुआ था । स्विट्जरलैण्ड के कुछ कैंटनों में भी प्रत्यक्ष प्रजातंत्र था और अब तक बना हुआ है। 18 वीं सदी में रूसों शासन के जोरदार समर्थक थे। वह अप्रत्यक्ष तथा प्रतिनिधिमूलक प्रजातंत्र को बुरा मानते थे। प्रजातंत्र एक ऐसा लक्ष्य है जो पूरा नहीं किया जा सकता । अप्रत्यक्ष या प्रतिनिधि मूलक प्रजातंत्र ही आज हमारे लिए संभव है। इसमें वास्तविक शासन जनता के हाथों से लेकर उनके प्रतिनिधियों के हाथों में सौप दिया जाता हैं।27

प्रजातंत्र समाज की एक व्यवस्था भी है। प्रतातंत्रीय समाज वह समाज हैं जिसमे समानता और बंधुत्व की भावना प्रधान होती हैं। पर यह जरूरी नहीं कि ऐसे समाज में प्रजातंत्रात्मक सरकार ही हो मुस्लिम समाज आमतोर पर प्रजातंत्रात्मक यद्यपि साधारणतया उसमें न प्रजातंत्रात्मक राज्य होता हैं और न प्रजातंत्रात्मक सरकार । बहुत से लोगों की राय में धर्मतंत्र और गणतंत्र या प्रजातंत्र एक दूसरे के विरोधी हैं । प्रजातंत्र सरकार की एक पद्धति, राज्य का एक प्रकार तथा समाज की एक व्यवस्था होने के अलावा और भी बहुत कुछ है। उसका संबंध उद्योग के क्षेत्र से भी रहता है । आज अनेक लोग ऐसे हैं जिनका कहना हैकि प्रजातंत्र की विजय तब तक पूरी नहीं होगी जब तक कि उद्योगों का भी पूरा-पूरा प्रजातंत्रीकरण नहीं हो जाता। उनका कहना है कि सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में तो प्रजातंत्र ने बड़ी प्रगति की है पर आर्थिक या औद्योगिक क्षेत्र में उसकी प्रगति बहुत कम हैं। इनमें से कुछ लोग समाजवाद को प्रजातंत्र की असली अवस्था बताते हैं। उनका यह कहना चाहे ठीक हो या गलत इतना तो हमें मानना ही होगा कि कोई भी समाज अपने को तब तक पूर्ण रूप से प्रजातंत्रीय नहीं कह सकता जब तक जीवन के कुछ क्षेत्रों में वह प्रजातंत्रीय पद्धति का उपयोग करता है, और दुसरे क्षेत्रों में स्वेच्छाचारी पद्धति का। प्रजातंत्र एक राजनीतिक सिद्धांत, एक शासन पद्धति या एक सामाजिक व्यवस्था मात्र नहीं है यह एक ऐसी जीवन पद्धति की खोज है जिसमें न्यूनतम बल या दबाव से व्यक्ति की स्वतः प्रेरित स्वतंत्र बुद्धि और उसके कार्यकलाप का मेल बैठाया जा सके और यह विश्वास है कि ऐसी पद्धति समूची मानव जाति के लिए आदर्श पद्धति होगी जो मनुष्य की प्रकृति और विश्व की प्रकृति के साथ अधिकतम सामजस्य कायम करेगी।

प्रजातंत्र के गुण

प्रजातंत्र शासन में जनता के उन प्रतिनिधियों द्वारा शासन किया जाता है। जिनका चुनाव जनता एक निश्चित समय के लिए करती है। जनता के प्रतिनिधि, जनता की इच्छाओं, भावनाओं और आवश्यकताओं से परिचित होते हैं, गार्नर के शब्दों "लोकप्रिय निर्वाचन, लोकप्रिय नियंत्रण और लोकप्रिय उत्तरदायित्व की व्यवस्था के कारण दूसरी किसी भी शासन-व्यवस्था की अपेक्षा यह शासन अधिक कार्यकुशल होता हैं। प्रजातंत्र शासन का एक 29 प्रकार नहीं हैं अपितु वह राज्य, समाज और अर्थिक व्यवस्था का भी है। जनता को राजनीतिक तथा सामाजिक और प्रशासनिक का शिक्षण प्राप्त होता हैं । प्रजातंत्र के इसी गुण को दृष्टि में रखते हुए बर्न्स ने लिखा है कि सभी " शासन शिक्षा के साधन होते है, किन्तु सबसे अच्छी शिक्षा स्वशिक्षा है, इसलिए सबसे अच्छा शासन स्वशासन है, गैटन ने प्रजातंत्र को नागरिकता की शिक्षा प्रदान करने वाला स्कूल कहा हैं । प्रजातंत्र में लोगों को मताधिकार प्राप्त होता है, उससे उन्हें यह मानसिक संतुष्टि मिलती हैं कि उनके पास सरकार पर नियंत्रण रखने का प्रभावशाली साधन हैं। डॉ. आशीर्वादम लिखते है कि प्रजातंत्र से सरकार और जनता के बीज का सहानुभूतिपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो जाता हैं। व्यक्ति चुपचाप स्वीकृति देने के बजाय एक सक्रिय सहयोगी बन जाता हैं। इसे दृष्टि में रखते हुए हॉकिंग ने लिखा है कि "प्रजातंत्र चेतन और उपचेतन मन की एकता है । "30

प्रजातंत्र का सबसे बड़ा गुण यह है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व और नैतिक चरित्र को उच्चता प्रदान करता हैं जनता को राजनीतिक शक्ति प्राप्त कर प्रजातंत्र आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता की भावना उत्पन्न करता हैं ब्राइस ने कहां है कि “राजनीतिक अधिकारों की प्राप्ति द्वारा मनुष्य के व्यक्तित्व की शान बढ़ जाती हैं और वह स्वभावत: उस कर्तव्य भावना के उच्चतर स्तर तक उठ जाता हैं जिसका पालन उसे राजनीतिक अधिकारों की प्राप्ति के कारण करना पड़ता हैं।” प्रजातंत्र व्यक्तियों की समानता के आदर्श पर आधारित है जितनी स्वतन्त्रता जनता को प्रजातंत्र में प्राप्त होती है उतनी स्वतन्त्रता सरकार के अन्य किसी में नहीं मिलती । प्रजातंत्र, कुलीनतन्त्र की इस बात को स्वीकार नहीं करता कुछ व्यक्ति शासन करने के लिए पैदा हुए है, यह तो जाति, धर्म,वर्ग, रंग, लिंग और सम्पत्ति के भेद को महत्व न देते हुए मानव की आधारभूत समानता में विश्वास करता है । जान स्टुअर्ट मिल ने कहा “यह किसी भी अन्य शासन की अपेक्षा उच्च और श्रेष्ठ राष्ट्रीय चरित्र का विकास करता है। " लावेल ने कहा है। अंत में, वही सरकार सर्वश्रेष्ठ है जो मनुष्य की नैतिकता, उद्योग,साहस, आत्मबोध व पवित्रता को दृढ़ बनाये । क्योकिं इन बातों को पूरा करता है, इसलिए वह सबसे अच्छा शासन है" प्रजातंत्र में जनता को राजनीतिक शक्ति प्राप्त होने के कारण जनता, शासन और राज्य के प्रति लगाव अनुभव करती है और निजी लगाव से देशभक्ति की भावना का उद्य होता है। मिल ही विचार करते हुए कहता है कि "प्रजातंत्र लोगों की देशभक्ति को बढ़ाता हैं, क्योंकि नागरिक यह अनुभव करते है कि सरकार उन्हीं की उत्पन्न की हुई वस्तु है और अधिकारी उनके स्वामी न होकर सेवक है।” वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है और इसे विश्वबन्धुत्व पर आधारित प्रजातंत्र के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है।

सरकारें सह–अस्तित्व की नीति में विश्वास करती हैं । साम्यवादी सरकारें भी विस्तारवादी नीति में विश्वास करती हैं। बीसवीं सदी का यूरोपीय इतिहास और पाकिस्तान तथा चीन के साथ भारत के सम्बन्ध विचार करते हैं। वर्क के शब्दों में “प्रजातंत्रीय आन्दोंलन शांति का आन्दोलन रहा हैं ।" देश की शासन–व्यवस्था नागरिकों के व्यवहार पर बहुत अधिक प्रभाव डालती हैं।

प्रजातंत्र के दोष :

प्रजातंत्र अयोग्यता का शासन हैं। यदि एक ओर प्रजातंत्र के गुणों का विशद विवेचन किया गया हैं । तो दूसरी ओर अत्यंत कटु शब्दों में इसकी भर्त्सना भी की जाती हैं। किसी विधवान ने कहा है कि "प्रजातंत्र मृत्यु की और ले जाता हैं। प्रजातंत्र वैचारिक दृष्टि से सर्वोत्तम शासन हैं पर व्यावहारिक धरातल पर वह अपने वास्तविक रूप में नहीं रह पाता उसमें अनेक कमियाँ उभरती हैं। प्रजातंत्र प्रणाली को कार्यरूप देने में व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण इसकी कड़ी आलोचना की जाती हैं कुछ विद्वान तो यहाँ तक कहने लगे हैं कि प्रजातंत्र का अब कोई उपयोग नहीं रहा हैं, क्योंकि अब कहीं भी सच्चे रूप में प्रजातात्रिक प्रणाली नहीं पाई जाती । प्रजातंत्र शासन प्रणाली में निम्नलिखित दोष हैं। 

(1) काल्पनिक व आदर्शवादी : प्रजातंत्र का सिद्धांत काल्पनिक और आदर्शवादी हैं । प्रजातंत्र समानता पर विश्वास करता हैं पर व्यक्तियों में समानता स्वप्रलोकीय विचार हैं व्यक्ति बुद्धि, शक्ति, संस्कार, प्रकृति और प्रवृत्ति से समान नहीं है । जातीय श्रेष्ठता का भी कई विचारक उल्लेख करते हैं । राष्ट्रीय श्रेष्ठता और कई देश दावा करते हैं अतः कई विचारक मानते हैं कि प्रजातंत्र जीव विज्ञान के आधारभूत नियमों के विपरित हैं ।

(2) आयोग्य व्यक्तियों का शासन : शिक्षा, संस्कृति, राजनीति तथा सामाजिक योगदान की दृष्टि से भी समाज के सभी व्यक्ति या वर्ग समान नहीं हो सकते। प्रजातंत्र गरीब और अमीर, मूर्ख या बुद्धिमान, शिक्षित और अशिक्षित सभी को समान मानता हैं ऐसे कई विचारक हैं जो प्रजातंत्र को अयोग्य का शासन मानते हैं इनमें कुछ विधवान प्रमुख हैं । शासन एक कला हैं जो सभी को नहीं आती । आलोचकों का कहना हैं कि प्रजातंत्र में गुण का महत्व न होकर संख्या का महत्व अधिक होता हैं ऐसी स्थिति में योग्य व्यक्ति की तुलना में अयोग्य व्यक्तियों का महत्व बढ़ जाता हैं। इसी कारण प्रजातंत्र को अयोग्य और अशिक्षित लोगों का शासन कहा जाता हैं ।

(3) दल प्रणाली का अहितकर प्रभाव : दल प्रणाली को प्रजातंत्र की अनिवार्यता के रूप में मान्य किया गया हैं बिना राजनीतिक दलों के प्रजातंत्र कार्य नहीं करता । राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेते हैं, अपने उम्मीदवार खड़ा करते हैं, प्रचार करते हैं, जनता को प्रशिक्षित करते हैं, जनमत जागृत करते हैं, सार्वजनिक नीतियों का निर्धारण करते हैं तथा जनता को नेतृत्व देते हैं। पर ये ही राजनीतिक दल जब सत्ता प्राप्ति की प्रतिस्पर्धा में कूदते हैं तब सभी प्रजातांत्रिक मूल्यों, व्यवहारों ओर आदर्शो की सीमाओं को लाँध जाते हैं। समाज में कटुता और मनमुटाव की खाई गहरी हो जाती हैं । ये राजनीतिक दल झूठा प्रचार करते हैं, राष्ट्रीय स्तर पर विवादों को जन्म देते हैं। जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, प्रांत ओर सम्प्रदाय की संकीर्ण मांगों को उछाल कर राष्ट्रीय मुददों को अप्रासंगिकता बना देते हैं। इससे राष्ट्रीय एकता को गंभीर खतरा पैदा होता हैं ।

(4) धन और समय की बर्बादी : प्रजातंत्र खर्चीली ओर समय की बर्बादी करने वाली राजनीतिक प्रणाली मानी गई हैं। आज निर्वाचन में प्रत्याशीगण, उनके समर्थकजन और राजनीतिक दल मिलकर करोड़ो रूपया खर्च करते हैं । अमेरिका के राष्ट्रपति का निर्वाचन विलियम डालर महँगा निर्वाचन माना जाता हैं । साधारण निर्वाचन में ही काफी धन खर्च होता है। निर्वाचन में समय की भी काफी बर्बादी होती हैं। आम सभाएँ, जुलूस, रैली आदि के माध्यम से हजारों लोगो के कई हजार घंटे बर्बाद होते हैं।

(5) कार्य की गति एवं क्षमता असंतोषजनक : प्रजातंत्र को संख्यावल का शासन कहते हैं, इस प्रकार के शासन में गुणों को कम महत्व दिया जाता हैं । प्रजातंत्र में निर्णय जल्दी नहीं हो पाते । किसी विद्धवान का कहना है कि प्रजातंत्र शासन में क्योंकि निर्णय होने में अनेक लोगों की राय लेनी होती हैं, अतः प्रजातंत्र शासन अधिनायकवादी शासन से सदैव दो कदम पीछे रहता हैं। आपातकाल अथवा युद्ध के समय जब निर्णय जल्दी लेने होते हैं।

(6) नैतिक पतन, अनैतिक साधनों का प्रयोग : प्रजातंत्र शासन अनैतिक साधनों के प्रयोग को प्रयुक्त करने को अवसर देता हैं निर्वाचन में सभी प्रकार के साधनों का जिनमें अनैतिक साधन भी हैं राजनीतिक दल और उनके समर्थक प्रयोग करते हैं। प्रजातंत्र में झूठ धन देकर वोट खरीदने के अनेक उदाहरण हैं। धन लेकर संसद में प्रश्न पूछे जाते हैं।

प्रजातंत्र का विरोध करने वालों का कहना है कि लोग भेड़ों, बंदरों और भेडियों की मनोवृत्तिवालें होते हैं । दूसरे शब्दों में वे सहज ही विश्वास कर लेने वाले, भावावेश में बह जानेवाले, डरपोक, असहनशील, निर्दयी, अन्यायी, मूर्ख आदि। लार्ड ब्राइस का कहना बिलकुल ठीक है कि जिस प्रजातंत्र में केवल पढ़ना ही सिखाया जाता हैं और सोचना तथा निर्णय करना नहीं सिखाया जाता, उसमें पढ़ने की सामर्थ्य से कोई लाभ नहीं हो सकता । सी.डी. बर्न्स कहते हैं कि कुछ लोग शिक्षा का उपयोग जुए संबंधी समाचारों और स्वासथ्य संबंधी सूचनापत्रों के पढ़ने में करते हैं ताकि वे और अधिक मादक पेय पी सके। 

प्रजातंत्र एक बहुत ही खर्चीली शासन प्रणाली है। प्रजातंत्र का यह अभिप्राय है कि लोकमत का निर्माण, प्रचार और बार- बार चुनाव इन सब में बहुत खर्च होता हैं । प्रजातंत्र की बुराइयां हैं। घूसखोरी और भ्रष्टाचार उदाहरण अमेरिका में हर चौथे साल राष्ट्रपति के चुनाव में खर्च करोड़ों डालर हो जाते हैं। एक आधुनिक लेखक ने प्रजातंत्र को एक “लम्बी-चौड़ी सम्पत्ति' बतलाया है और समिति की परिभाषा हास्यजनक ढंग से यह दी है कि जो काम एक व्यक्ति एक दिन में कर सकता है वही काम सात आदमियों द्वारा सात दिन में किए जाने का नाम समिति हैं। 

प्रजातंत्र का महत्व

प्रजातंत्र न केवल शासन का एक विशेष प्रकार भी है बल्कि यह जीवन के प्रति एक विशिष्ट दृष्टिकोण हैं । प्रजातंत्र स्वतन्त्रता, समानता, सहभागिता और बंधुत्व की भावना पर आधारित एक शासन व्यवस्था हैं। इसके अन्तर्गत मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन इस प्रजातांत्रिक मान्यता पर आधारित होता हैं। क्योंकि मतदान करना हर नागरीक का परम कर्तव्य है, हमारे देश संसार के सबसे बड़े प्रजातंत्र की श्रेणी में आता हैं ।

देश में मिली –जुली संस्कृति, भाषा विभिन्नता होने के बाद भी समस्त नागरिकों को मतदान करने का अधिकार है। क्योंकि 5 वर्ष में एक बार सुअवसर प्रदान करने की व्यवस्था बनाई गई है। अपनी समझ व परख के अनुरूप बिना किसी भय संकोच व दबाव के जाति, धर्म, लिंग, नस्ल को आधार मानकर वोट देने में स्वविवेक से ऐसी सरकार चुने जो सर्वगुण सम्पन्न व्यक्तियों से संचालित हो देश के वर्तमान समय में नौजवान जागरूक हैं । शिक्षा,स्वास्थ, सुरक्षा, रोजगार के विकास को देखते हुए उचित दल के चयन करने की अति आवश्यक हैं। स्वविवेक व बिना दबाव के वोट डाला जाए। अपने अधिकार का प्रयोग अवश्य किया जाए। शहर, कस्बा अपना है, इसकों ठीक-ढंग से संचालित करने वाले भी हम है और देश को एक नई दिशा व्यवहार में ब्रिटेन में राजनीतिक शक्ति का वास्तविक स्रोत जनता को ही माना जाता है, जो प्रजातांत्रिक राज्य की अवधारणा के अनुरूप है।

सामाजिक प्रजातंत्र सामाजिक समता की भावना । समाज में नस्ल, रंग,जाति,धर्म, धन, जन्म-स्थान भाषा आदि के आधार पर व्यक्तियों के बीच समान समझा जाना चाहिए। हर्नशा के अनुसार "प्रजातांत्रिक समाज वह है जिसमें समानता के विचार की प्रबलता हो तथा जिसमें समानता का सिद्धान्त प्रचलित हो।” विश्व के अनेक ऐसे देश हैं जहाँ राजनीतिक प्रजातंत्र तो लम्बे समय से प्रचलित है, परन्तु सामाजिक प्रजातंत्र की पूर्ण स्थापना अभी भी नहीं हुई है। नार्वे में जैसुइट पंथ के व्यक्तियों को सामाजिक समानता प्राप्त नहीं हुई। इसके विरोध में अनेक नीग्रों व्यक्तियों ने संयुक्त राज्य अमरीका के सामाजिक जीवन में नीग्रो मूल के नागरिकों को दैनिक जीवन का सामना करना पड़ता है। नीगों व्यक्तियों ने ईसाई धर्म को त्याग कर इस्लाम धर्म को अपना कर उचित समझा ।

आर्थिक प्रजातंत्र का विचार मार्क्सवादियों एवं समाजवादियों ने प्रस्तुत किया है। 18वीं और 19वीं सदी में समाजवादियों व मार्क्सवादियों ने सर्वथा भिन्न एवं विपरित है। पूंजीपति वर्ग ने समाज की आर्थिक शक्ति पर अधिकार जमा लिया और इसके साथ राजनीतिक सत्ता पर भी उसकी स्थापना हो गयी । मार्क्स का मत था कि समाजवादी व्यवस्था के अन्तर्गत स्थापित आर्थिक प्रजातंत्र में ही व्यक्ति को सही मायने में सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्र में समानता व स्वतन्त्रता की प्राप्ति हो सकती है। 20वीं सदी में जब मार्क्स के विचारों के आधार पर सोवियत संघ, चीन तथा पूर्वी यूरोप के अनेक देशों में समाजनवादी समाज व्यवस्था की स्थापना की गई तो यह अनुभव किया गया। कि इन क्षेत्र में व्यक्ति की स्वतन्त्रता का पूरा अन्त हो गया | 

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

Post a Comment

Previous Post Next Post