सामाजिक प्रगति किसे कहते हैं | सामाजिक प्रगति के मापदण्ड

किसी सुनिश्चित लक्ष्य व आदर्श की दिशा में होने वाले परिवर्तनों को सामाजिक प्रगति कहते हैं । जब समाज का विकास उस दिशा में होता है, जिसे हम उचित समझते हैं और हमारे आदर्शों व मूल्यों के अनुरूप है तभी हम कह सकते हैं कि समाज प्रगति कर रहा है, अन्यथा हम उसे प्रगति नहीं मानते । इस प्रकार प्रगति की धारणा सामाजिक मूल्यों पर आधारित है । यह सम्भव है कि जो मूल्य एक समाज के लिए प्रगतिशीलता का सूचक है वह किसी अन्य समाज के लिए अप्रगतिशीलता का संकेतक हो सकता है । अतः प्रगति की धारणा सभी समाजों के लिए एक समान नहीं है । मूल्य, अच्छे-बुरे और वांछित - अवांछित का निर्णय करते हैं । इस प्रकार प्रगति का स्थान व समय सापेक्ष है । 

उदाहरणस्वरूप, पाश्चात्य देशों में वर्तमान भौतिक उन्नति को प्रगति का मापदण्ड मानते हैं किन्तु भारत के अधिकांश लोग आध्यात्मिक उन्नति को वास्तविक प्रगति मानते हैं । उनका प्रगति समय सापेक्ष भी है । इस प्रकार प्रगति की धारणा भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए, विभिन्न कालों के लिए और विभिन्न सामाजिक समूहों के लिए भिन्न-भिन्न रूप से महत्वपूर्ण है । इसी प्रकार जब हम अपने पर्यावरण से समायोजित होते हैं तो कहते हैं कि हमारा समाज अथवा संस्कृति प्रगतिशील है, किन्तु जब हम उससे असमायोजित अनुभव करते है तो उसी समाज अथवा संस्कृति को प्रगतिहीन कह देते हैं । 

अतः स्पष्ट है कि सामाजिक प्रगति का विचार करते हुए हम केवल अपने भाव के अनुसार मूल्यों पर सहमत होते हैं । यह नहीं कहा जा सकता कि हमारे मूल्य अच्छे हैं अथवा बुरे, अथवा जिसे हम प्रगति कहते हैं वह वास्तव में प्रगति है अथवा नहीं। 

सामाजिक प्रगति के मापदण्ड

कुछ विद्वानों ने सामाजिक प्रगति का प्रमुख मापदण्ड समाज का अधिकतम कल्याण माना है। जबकि कुछ अन्य विद्वानों ने अधिकतम लोगों की अधिकतम भलाई, अधिकतम आनन्द, उच्चतम जीवन स्तर, अधिकतम आध्यात्मिक उन्नति आदि को प्रगति का मापदण्ड माना है । इन्हीं आधारों पर आर्थिक कल्याण में वृद्धि, अधिकतम लोगों की भलाई में वृद्धि, सुख-समृद्धि में वृद्धि तथा नैतिक उन्नति, आध्यात्मिकता को प्राप्त करने की अधिक तत्परता व जीवन स्तर की उन्नति आदि को अनेकों विद्वानों ने समाविष्ट किया है। इनमें से किसको वास्तविक मापदण्ड स्वीकार किया जाय । पुनः यदि इनमें से अधिक अथवा सभी उपलब्ध हों तो क्या प्रगति का निर्णायक मापदण्ड स्वीकार कर लिया जाय ? ये ऐसे प्रश्न है जिनका सन्तोषजनक उत्तर देना कठिन है। यदि किसी एक ऐसे आदर्श मापदण्ड की परिकल्पना की जा सके जो सार्वभौमिक रूप से सामाजिक प्रगति का निर्धारण कर सके तो इसके प्रमापीकरण के चौदह मापदण्डों की परिकल्पना की है जो निम्नलिखित हैं-

१. प्राकृतिक साधनों की सुरक्षा और इसका सार्वजनिक हित के लिए उपयोग कुछ चतुर लोगों के हित के लिए नहीं ।
२. शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्तियों की वृद्धि
३. स्वास्थ्यप्रद एवं क्रियात्मक मनोरंजन में वृद्धि
४. रचनात्मक एवं क्रियात्मक मनोरंजन में वृद्धि
५. अच्छे परिवारों के प्रतिशत में वृद्धि
६. अधिक लोगों के लिए रचनात्मक एवं उनकी अभिरूचि के अनुसार कार्य
७. उद्योग एवं व्यापार में अधिक प्रजातंत्र
८. दुर्घटनाओं, बीमारी, बुढ़ापा, मृत्यु, बेकारी के विरूद्ध सामाजिक बीमे का अधिक उत्तरदायित्व
६. अधिकतम लोगों के जीवन स्तर में सुधार
१०. इस प्रवृति का कम होना कि मैं सरकार से क्या प्राप्त कर सकता हूं ।
११. संगीत, चित्रकला, कविता, मूर्तिकला, नृत्यकला तथा अन्य उच्च कलाओं को समझने की क्षमता में वृद्धि 
१२. व्यावसायिक एवं अन्य सार्वजनिक कल्याण की शिक्षा में वृद्धि
१३. अधिक धार्मिक व आध्यात्मिक प्रवृति की वृद्धि
१४. जीवन के सहकारी एवं सहयोगी ढंग में वृद्धि

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