साप्ताहिक बाजार का अर्थ, विशेषताएँ

साप्ताहिक बाजार का अर्थ

साप्ताहिक बाजार से तात्पर्य हैं ग्रामीण क्षेत्रों में सप्ताह के किसी निश्चित दिन, निश्चित समय व निश्चित स्थान पर लगने वाले बाजार से हैं, जिसमें ग्रामीण क्रेता-विक्रेताओं द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय किया जाता हैं।साप्ताहिक बाजार पाँच–सात गाँवों के मुख्य गाँव में लगते हैं, और खुले स्थान पर अस्थाई समय के लिए लगते हैं।

साप्ताहिक हाट बाजार की विशेषताएँ :

साप्ताहिक हाट बाजारों का अस्तित्व केवल वस्तुओं के आदान-प्रदान और उनकी उपलब्धता तथा समाज की आवश्यकताओं के चिरपरिचित सम्बन्ध में नही होता हैं और उनकी अवधि का क्रम कुछ अंशों में सामाजिक संस्थाओं के द्वारा निश्चित होता हैं

1) निश्चित दिन : साप्ताहिक हाट बाजार हर दिन व्यापार के लिए खुले नही होते हैं। साप्ताहिक हाट बाजार जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हैं, सप्ताह के किसी निश्चित दिन लगने वाले बाजार से हैं।

2) विक्रेता की सीमित संख्या : छोटी सी संख्या में चलित व्यापारी इन हाट बाजारों में शामिल होतें हैं और इनकी हाट बाजारों में शामिल होने की एक श्रंखला होती हैं

3) सम्पर्क : साप्ताहिक हाट बाजार विक्रेताओं के एक झुण्ड को प्रदर्शित करतें हैं। जिनमें उन व्यक्तियों को री शामिल किया जाता हैं, जो प्रायः अपने उत्पादन को लेकर हाट बाजारों में इकट्ठे होते हैं। इससे री आगे साप्ताहिक हाट बाजार बाहरी विश्व के लिए खिडकी होतें हैं । जों हाट बाजारों में होने वालें परिवर्तनों संसाधनों, आकार, स्थान और सामाजिक व्यवहार की संरचना का बोध कराते हैं ।

प्रत्येक हाट-बाजारों में यह स्पष्ट रूप से देखा गया हैं कि सामान्यतः एक व्यक्ति एक परिवार का प्रतिनिधित्व हाट-बाजार में वस्तुओं एवं संवाओं के क्रय करने के लिए करता हैं ।

4) सामाजिक : कुछ निश्चित बाधाओं के कारण सभी क्रेता अपने निकटतम हाट बाजारों में शामिल नही हो सकते। हाट बाजारों का एक निश्चित समूह क्रेताओं को अवसर प्रदान करता है, कि वे अपनी सुविधा और इच्छा के अनुसार पास के किसी इच्छित बाजार में जाकर अपनी पसन्द की उच्च श्रेणी की वस्तुओं को भी खरीद सकता हैं । सामान्यतः त्यौहारों व शादियों के समय क्रेता बडे हाट बाजारों में जाकर अपनी आवश्यकताओं की वस्तुएं खरीदतें हैं। विक्रेता भी इसी प्रकार के हाट बाजारों के समूह से परिचित होते हैं और उनके अधिकतम लाभ की स्थितियों वाले बाजारों कों पहचानतें हैं।

5) सामाजिक संबंधों के विस्तार हेतु : कुछ क्षेत्रों में साप्ताहिक हाट बाजार सामाजिक संबंधों के विस्तार हेतु एक प्रभावकारी मंच के रूप में कार्य करतें हैं ।

6) सूचना, विचार, भाव, तकनीक : अधिकतर अशिक्षित और सूचनाओं से अनभिज्ञ बाजारों में आनें वाले इन्ही हाट बाजारों में अपनें से अधिक ज्ञान रखने वाले साथियों से विभन्न विषयों से सम्बन्धित जानकारियाँ प्राप्त करतें है। इन जानकारियों में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सभी जानकारियाँ सम्मिलित होती हैं ।

7) सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार : सरकार द्वारा चलाई गयी विभिन्न योजनाओं का प्रचार-प्रसार इन्ही हाट बाजारों के माध्यम से गांवों तक किया जाता हैं। जहां दूर-दूर से आने वालें इन जानकारियों को अपनें—अपनें गाँवों तक ले जातें हैं।

8) विनिमय का स्त्रोत : साप्ताहिक हाट बाजार स्थानीय उत्पादन और बाहर के क्षेत्रों से लाई गई वस्तुओं के विनिमय का मुख्य स्त्रोत हैं

9) व्यापारिक क्रिया में शोषण : हाट बाजार में आनें वालें किसान प्रचलित किमतों से अनभिज्ञ होतें हैं, साथ ही वे आधुनिक नाप - तोल से भी कम परिचित होते हैं। जिससे उन्हें हर अवसर पर शोषण का सामना करना पडता हैं, चाहे वे क्रेता हो या विक्रेता ।

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