स्थानांतरण के कारण एवं प्रभाव

राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक अथवा अन्य कारणों से मनुष्य के एक स्थान से दूसरे स्थान में स्थानांतरण को प्रवास कहा जाता है। प्रवास के लिए आवास स्थान में परिवर्तन पर्याप्त अवधि के लिए होना चाहिए। जिसस्थानांतरण में स्थायित्व का अभाव हो उसे प्रवास की संज्ञा नही दी जा सकती हैं जैसे ऋतु प्रवास एवं अभिगमन । "प्रवास एक भौतिक और सामाजिक संक्रमण हैं, यह मात्र एक असंदिग्ध जैव शारीरिक घटना नहीं हैं" जेलिंस्की | प्रवास शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग रॉब्सटीन महोदय ने 1885 में प्रकाशित "प्रवास के नियम' नामक शोध पत्र में किया था।

स्थानांतरण के कारण 

जनसंख्या के स्थानांतरण के पीछे आकर्षण कारक, विकर्षण कारक तथा कुछ अन्य कारक भी महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे सामूहिक सुरक्षा, जलवायु की अनुकूलता, धार्मिक स्वतंत्रता, आवागमन के साधन और सूचना प्राप्ति की सुलभता आदि । प्रवास की प्रक्रिया अत्यंत जटिल होती हैं तथा कई कारकों से प्रभावित होती हैं। अतः प्रवास के कारणों का सामान्यीकरण करना कठिन होता हैं । प्रवास के कारकों को निम्न वर्गों में बांटा जा सकता हैं

प्राकृतिक कारक— जलवायु, नदियाँ, मृदा, भूकंप, ज्वालामुखी भूस्खलन आदि|स्थानान्तरण के प्राकृतिक कारकों के परिणाम स्वरूप 19 वीं एवं 20 वीं शताब्दी के प्रारंभ में अकालो की बारंबारता के कारण भारत और चीन से लोगों को प्रवास द.पू. एशिया, पू. अफ्रीका, फीजी, गुयाना आदि देशों में हुआ। कठोर शीतकाल में टुंड्रा प्रदेश के लोगों का दक्षिण की ओर तथा ग्रीष्म ऋतु में उत्तर की ओर प्रवास आदि।

मानवीय कारक— आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं जनांकिकी कारक।भारत में प्रवास के प्रमुख कारणों में जनाधिक्य, संयुक्त परिवार का पालन-पोषण, अधिक आय की लालसा, नगरीय आकर्षण, ग्रामीण / नगरीय बेरोजगारी, कुटीर उद्योग ऋणग्रस्तता, लघु कृषि जोते से उत्पन्न समस्याएँ आदि हैं।

आर्थिक कारक— औद्योगिकरण, खनिज क्षेत्रों का विकास, नये कृषि क्षेत्रों की प्राप्ति, कृषि तकनीकी का विकास, रोजगार के अवसर, आवागमन के साधन व्यापार की सुविधा । 19वीं सदी में यूरोप में जनाधिक्य से जीविकोपार्जन के साधनों की कमी होने पर जनसंख्या का उ. अमेरिका, द. अमेरिका, अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया की ओर प्रवास हुआ । औद्योगिक नगरों जैसे कलकत्ता, बंबई, अहमदाबाद, भिलाई, बेंगलुरू, टाटानगर आदि में प्रवासी जनसंख्या का आधिक्य हैं।

सामाजिक कारक - सामाजिक रीति-रिवाज, उत्तराधिकार के नियम, धार्मिक स्वतंत्रता। 18वीं सदी में धार्मिक स्वतंत्रता के लिए यूरोप से अनेक परिवार अमेरिका जाकर बस गये। भारत-पाक विभाजन के समय हिन्दू-मुसलमानों का बड़ी संख्या में स्थानांतरण हुआ। बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु भारत से श्रीलंका, थाइलैण्ड, बर्मा, इण्डोनेशिया को स्थानांतरण हुआ ।

राजनैतिक कारक राजनैतिक अस्थिरता, युध्द, बलपूर्वक किया गया स्थानांतरण, उपनिवेशन सुरक्षा । प्रवास जनसंख्या परिवर्तन का तीसरा महत्वपूर्ण घटक हैं जबकि अन्य दों घटक जन्म और मृत्यु हैं। वर्तमान में प्रवास का सबसे प्रेरक कारण आर्थिक हैं। रोजगार और मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति, अच्छे जीवन स्तर की चाह और उपयुक्त काम की अनुपलब्धता आदि कारण उत्प्रवास को प्रेरित करते है। 19वीं सदी में यूरोपीय लोग राजनीतिक अस्थिरता, उत्पीड़न आदि से त्रस्त होकर अन्य महाद्वीपों में बस गये। यूरोपीय जातियों ने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड के मूल निवासियों को वहा से भगाकर अपना राज्य स्थापित किया । अंग्रेजों ने भारत से गुयाना, मॉरीशस, फीजी और पूर्वी अफ्रीकी देशों में गन्ने की खेती के विस्तार हेतु बलपूर्वक स्थानांतरण करवाया।

जनांकिकी कारक जनाधिक्य, अल्प जनसंख्या, प्राकृतिक वृद्धि में क्षेत्रीय विभिन्नता। यूरोप से 18वीं एवं 19वीं सदी में उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया को प्रवास जनाधिक्य के कारण हुआ। उ.प्र. व बिहार से म.प्र. एवं दिल्ली, राजस्थान आदि राज्यों में स्थानांतरण जनाधिक्य के कारण हो रहा हैं ।

स्थानांतरण का प्रभाव 

जन स्थानांतरण के परिणाम अत्यंत जटिल होते हैं, फिर इनमें प्रादेशिक अंतर भी होता है अतः इसके प्रभाव का सही मूल्यांकन कर पाना जटिल कार्य हैं। फिर भी इसके कुछ सामान्य परिणाम निम्नलिखित हैं

जनांकिकी संबंधित प्रभाव अंतःप्रवास तथा बर्हिप्रवास से दोनों क्षेत्रों के जनसंख्या घनत्व, जन्मदर, मृत्युदर, वृद्धिदर, आयु लिंगानुपात, साक्षरता, व्यवसाय तथा नगरीकरण में परिवर्तन होते हैं। अंतः प्रवास के क्षेत्र में जनसंख्या-संसाधन अनुपात असंतुलित होने लगता हैं। साथ ही युवा कार्यशील जनसंख्या बढ़ने से सामाजिक प्रगति भी तीव्र होने लगती हैं। जबकि बर्हिप्रवास के क्षेत्र में स्त्रियों, बच्चों एवं वृद्धों की संख्या अधिक हो जाती हैं। जिससे वहाँ की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं।

स्वास्थ्य संबंधित प्रभाव – आप्रवास के क्षेत्र में जनाधिक्य से आवास की संख्या बढ़ने लगती है। स्वच्छ जल, मकान, शौचालय, भोजन आदि की पर्याप्त व्यवस्था न होने से तथा विभिन्न प्रजातियों के मिश्रण से स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याएँ उत्पन्न होने लगती हैं।

भाषा व धर्म संबंधित प्रभाव – जब प्रवासी एक बड़े समूह और सम्पन्नता लिए होते हैं तो वे जिस क्षेत्र में अप्रवास करते हैं, वहाँ की स्थानीय जनता को अपना धर्म और भाषा से प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। उदा. भारत में अंग्रेज तथा इजराइल में यहूदी लोगों ने अपनी भाषा व धर्म को स्थानीय लोगों पर थोंपने का प्रयास किया हैं ।

आर्थिक प्रगति संबंधित प्रभाव – आप्रवास के क्षेत्रों में संसाधनों के समुचित उपयोग से वहाँ उन्नति होती हैं। आवासित और प्रवासित देशों के बीच पारस्परिक सहयोग से दोनों क्षेत्रों की सभ्यता और संस्कृति का विकास होता है। जैसे अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि देशों में यूरोपीय लोगों के आप्रवास से वहाँ वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान का प्रसार व आर्थिक प्रगति हुई। नगरों के आकार में वृद्धि उद्योग धंधों और व्यापार में वृद्धि के साथ यातायात और रोजगार समस्याएँ भी जटिल होती जाती है ।

अन्य प्रभाव –प्रवासी व्यक्ति को नये क्षेत्र के वातावरण से समायोजित होना पड़ता हैं, जिससे उसके रहन-सहन और आचार-विचार में बदलाव आते हैं। जिसका परिणाम सकारात्मक या नकारात्मक कुछ भी हो सकता हैं। यद्यपि प्रवास से अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव बढ़ता हैं। पंरतु कुछ देशों में प्रजाति, रंग, भाषा, धर्म आदि के कारण प्रवास उन्मुक्त रूप से संभव नहीं हैं। जैसे आस्ट्रेलिया की खेत नीति, अमेरिका की रंगभेद नीति आदि। कुछ देश केवल तकनीकी रूप से दक्ष व बौद्धिक कौशल से युक्त लोगों को ही आप्रवास की अनुमति देते हैं, जैसे विकासशील देशों से विकसित देशों की ओर ब्रेन–ड्रेन होना ।

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