कारागार अथवा जेलों के उद्देश्य क्या हैं?

कारागार अथवा जेलों के उद्देश्य क्या हैं?

कारागार अंग्रेजी के 'Prison' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है । कारागार वह स्थान है जहाँ दण्ड प्राप्त अपराधियों को हिरासत में रखा जाता है अथवा रोका जाता है ।

डिक्शनरी आफ सोशियोलोजी कारागार वह संस्था है जो दण्ड को लागू अथवा क्रियान्वित करती है, इसका संचालन राज्य अथवा संघीय सरकार द्वारा होता है। कारागार अधिनियम 1894 कारागार राज्य सरकार द्वारा परिभाषित वह निश्चित स्थान है जहाँ बन्दियों को स्थायी अथवा अस्थायी रूप से रोका रखा जाता है । सरल शब्दों में कारागार एक दण्ड संस्था है जो राज्य द्वारा संचालित होती है तथा जिसमें रखकर अपराधियों को दण्ड किया जाता है और उन्हें सुधारा जाता है । 

कारागार एक प्रकार की संस्था है इस संस्था का संचालन और निरीक्षण राज्य सरकार द्वारा किया जाता है । इस प्रकार कारागार सरकार द्वारा स्वीकृति - प्राप्त संस्था का नाम है ।

कारागार वह स्थान है जहाँ अपराधियों को रोका जाता है । 

अपराध सार्वभौमिक प्रक्रिया हैं। इसके साथ ही अपराध निरोध भी सभी समाजों में किसी न किसी रूप में पाया जाता रहा है। अपराधियों से घृणा करना सार्वभौमिक सिद्धान्त नहीं है वरन् अपराधियों के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की योजनाएं सभी देशों व समाजों में समान रूप से पायी जाती रही है । कभी - 2 अपराधी को अधिक कष्ट देने की ओर सोचा जाता है । मृत्युदण्ड या देश निष्कासन समाज के अपराधी के प्रति सन्तोष नहीं दिला पाते है। अपेक्षाकृत समाज यह चाहता है कि व्यक्ति ने गम्भीर अपराध किया है और उसे गम्भीर से गम्भीर दण्ड भी दिया जाये । एक निश्चित स्थान में असहाय रूप में रखकर ही उसे एक निश्चित दण्ड दिया जा सकता है। लेकिन यदि आदमी गलती करता है तो उसे इस गलती की इतनी लम्बी सजा नहीं दी जानी चाहिये । गलती करने वाले के साथ प्रतिशोध को किसी भी प्रकार से बुद्धिमानी नहीं कहा जा सकता है। यदि अपराधी को दण्ड भी देना चाहते हैं और उससे पश्चाताप भी करवाना चाहते हैं तो इसका सबसे सरल और अच्छा उपाय यह है कि अपराधी को एक ऐसा मौका दिया जाये जहां रहकर वह अपन घृणित कार्यों का विकास न कर सके। वह अपनी अन्तरात्मा से ऐसा सोचे कि उसका जो कार्य था वह गलत था और उसे ऐसा नहीं करना चाहिये था। अपराधी को अपने कार्यों की स्वयं अनुभूति कराने के लिये कुछ संस्थाओं का जन्म हुआ और 'कारागार' या 'जेल' इन संस्थाओं में से एक है जहां अपराधी को रखकर उसके सुधार के प्रयास किये जाते हैं।

अपराध उतने ही पुराने है जितना समाज । अपराध विहीन समाज मात्र कल्पना की वस्तु है। समाज में शान्ति व व्यवस्था के लिए उत्तरदायी लोग, सदैव से अपराधियों के प्रति अपनाये गये दृष्टिकोण से कभी सन्तुष्ट नहीं रहे क्योंकि अपराधों की वृद्धि उन्हें लगातार सोचने पर विवश करती है । प्रारम्भ में अपराधियों को अधिकतम यातना दी जाती थी जिससे लोगों में दण्ड का भय व आतंक पैदा हो जाय, जिससे वे स्वप्न में भी अपराध करने का विचार न करे । समय के साथ-साथ अपराध की धारणा में परिवर्तन हुआ और अपराधी को सुधारने की दिशा में शारीरिक दण्ड के माध्यम से लाने का प्रयास किये गये।

ऐसी दशा में अपराधी को कहां रखा जाए ? इस प्रश्न पर सभी लोग इस विचार से सहमत थे कि उन्हें समाज से पृथक रखा जाए जहां उन पर कड़ा नियन्त्रण रखा जाए ? और उनकी स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध रखते हुए उनसे कठोर श्रम लिया जाए  ताकि वे अपने कृत्य का प्रायश्चित करके सभ्य जीवन बिताने को अग्रसर हो सकें। इस प्रकार जिस स्थान पर उन्हें रखा जाता था उसे जेल या बन्दीगृह कहा जाता था ।

कारागार अथवा जेल का औचित्य

कारागार वह स्थान है जहां विचाराधीन एवं दण्ड प्राप्त अपराधियों को हिरासत में रखा जाता है अथवा रोका जाता है। कारागार हिरासत (डिटेन्शन) में रखने के लिये एक स्थान है, प्रारम्भ विचाराधीन कैदियों के लिए हिरासत स्थल थे परन्तु आजकल ये स्थल सुधार गृहों में परिवर्तित हो गये ।

बन्दीगृह एक प्रकार की संस्था है इस संस्था का संचालन और निरीक्षण राज्य सरकार द्वारा किया जाता है । इस प्रकार बन्दीगृह सरकार द्वारा स्वीकृति - प्राप्त संस्था का नाम है

बन्दीगृह वह स्थान है जहां अपराध के अपराधियों और अपरोपियों को दो कारणों से रोका जाता है

1- अपराधियों को दण्ड देना और उनका सुधार करना तथा

2- अपराधियों से समाज की रक्षा करना ।

बन्दीगृह में अपराधी को या तो स्थायी तौर पर रखा जाता है या अस्थायी तौर पर। बन्दीगृह में अपराधी को रखने का उददेश्य उसे दण्ड देना है यह दण्ड समाज विरोधी कार्यो को बदले के स्वरूप में दिया जाता है । बन्दीगृह का अन्तिम तत्व सुधार सुधार के अभाव में बन्दीगृह की कल्पना ही नहीं किया जा सकता है।

इसकी उत्पत्ति का उद्देश्य अपराधियों का सुधार करना था । लोम्ब्रासों ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था कि अपराधी जन्मजात होते हैं और यदि समाज को अपराध विहीन करना है तो इसका सबसे सरल व उपयुक्त तरीका यह है कि अपराधियों को ही समाप्त कर दिया जाय। धीरे- धीरे लोम्ब्रासों के सिद्धान्तों को अस्वीकार किया जाने लगा और इस सिद्धान्त का जन्म और विकास हुआ कि अपराध बनते हैं, पैदा नहीं होते है। अब अपराधियों के सुधार की समस्या आती है और बन्दीगृहों का विकास इन्हीं अपराधियों के सुधार के लिये किया गया।

मानवतावादी दृष्टिकोण भी बन्दीगृहों के विकास में अत्यन्त ही महत्वपूर्ण तत्व है । मनुष्य की रक्षा करनी चाहिए, उसे समाप्त नहीं करना चाहिए । इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये भी बन्दीगृहों का जन्म व विकास हुआ। मृत्युदण्ड के द्वारा समाज अपने उददेश्यों की प्राप्ति करने में असमर्थ रहा है । व्यक्ति को मार डालने से समाज अपने उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर सका है। उसके उददेश्यों की पूर्ति करने का सबसे सरल उपाय यह था कि अपराधी का सुधार किया जाय। अब अपराधी का सुधार कहां किया जाय ? बन्दीगृहों का विकास अपराधियों के सुधार के लिये किया गया था । बन्दीगृहों के विकास का उद्देश्य समाज में आपसी संघर्ष को समाप्त करना है यदि अपराधी को समाज में छोड़ दिया जाय तो अव्यवस्था अशान्ति और क्रांन्ति का जन्म हो सकता है। इस अव्यवस्था को रोकने के लिये अपराधी को समाज से अलग रखने के लिये बन्दीगृह नामक संस्था का विकास हुआ। अन्त में समाज में न्याय दिलाने एवं अपराधियों के सुधार के उद्देश्य से ही बन्दीगृहों का विकास हुआ।

कारागार अथवा जेल के उद्देश्य

कैद का उद्देश्य राज्य की शक्ति को प्रदर्शित करना है कि वह अपराधी को जब चाहे वैधानिक रूप से दण्ड दे सकता है । कैद का उद्देश्य अपराधी के मस्तिष्क में प्रायश्चित की भावना का भी विकास करना है जिससे वह अपने कार्यो का स्वयं मूल्यांकन कर अपनी गलती की अनुभूति कर सके। अपराधी के मस्तिष्क में एक प्रकार का भय उत्पन्न करना है जो समाज में अपराध रोकने में सहायक हो सके और अपराधों की संख्या में कमी लाना है । कैद का उददेश्य अपराधी को मानसिक पीड़ा पहुंचाना भी रहा है कारागार के कठोर अनुशासन में मनुष्य पग- पग पर मानसिक यंत्रणा उठाता है जिससे पुनः भय से वह उस प्रकार के अपराध न करें ।

दण्ड के प्रायश्चित लक्ष्य की स्वीकृति के उपरान्त ही 17वीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षो में विश्व के समस्त देशों में कारागारों की स्थापना ऐसे संस्थानों के रूप में की गयी जिसका उददेश्य सजा पाये हुए अपराधियों को बन्दी बनाकर रखना तथा शारीरिक एवं  मानसिक यातनायें देकर उनके द्वारा किये गये अपराधों के लिये प्रायश्चित कराना था। उस युग से लेकर आज के अपराधी सुधार के युग तक कारागार को अपराध निरोध एवं अपराधियों के पुर्नवास के लिए एक आवश्यक संस्थान के रूप में स्वीकार किया जा रहा है । दण्ड के सुधारात्मक लक्ष्य की मान्यता एवं महत्व को स्वीकार करने के बाद उन्नीसवीं शदी के प्रारम्भ से ही कारागार सुधार का एक विश्वव्यापी आन्दोलन चला आ रहा है, जिसका उददेश्य कारागारों को दण्ड प्राप्ति संस्था न समझकर अपराधी - सुधार की एक प्रमुख संस्था के रूप में परिवर्तित करना तथा कारागारों में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करना है जिससे अपराधी व्यक्ति अपनी कारावास की अवधि में सुधार सके और मुक्ति के उपरान्त एक आदर्श नागरिक की भांति व्यवहार कर सके। 

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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