प्रभा खेतान का जन्म 1 नवम्बर 1942 को कलकत्ता में हुआ। प्रभा खेतान अपने माता-पिता जी की पाँचवीं संतान थी । कुल मिलाकर पाँच भाई-बहनों में पली बड़ी थी। इनका बचपन एक संयुक्त परिवार में बीता ।
मात्र 9 वर्ष की आयु में ही पिता का साया उनके सिर से उठ गया। प्रभा खेतान आम मारवाडी लड़कियों की तरह सुंदर नहीं थी। उनका मर्दाना अंदाज, भड़कीला शरीर माता जी को इस बात की चिंता रहती थी कि कौन इससे ब्याह करेगा । प्रभा खेतान बालमन में शोषण, वंचना, अपमान, तिरस्कार ने कितने घाव लगाए इसका उल्लेख उन्होंने अपने आत्मकथा 'अनन्या' में किया है।
प्रभा खेतान की आरंभिक शिक्षा बालीगंज शिक्षा सदन में हुई थी। उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। प्रभा खेतान ने दर्शनशास्त्र में पीएच. डी. की उपाधि भी प्राप्त की । प्रभा खेतान की रुचि वैचारिक विषयों में अधिक थी।
प्रभा खेतान का मानना है कि उनकी कोई भी कृति उनके जीवन से अलग नहीं है। उनका हर उपन्यास कही न कही उनके आत्मकथा का अंश है। कक्षा चौथी से ग्यारहवीं तक मन्नू भंडारी जी उनकी शिक्षिका के रूप में थी। उनकी साहित्यिक प्रतिभा की तलाश वही से ही आरंभ हुई थी।
डॉ. सर्राफ से प्रेम संबंध बना रहा परंतु कभी सामाजिक मान्यता प्राप्त नहीं हुई थी। डॉ. सर्राफ चाहते थे कि प्रभा खेतान उन पर आश्रित न रहे बल्कि उनके न रहने पर प्रभा खेतान आर्थिक रूप से स्वयं संपन्न रहे। इसीलिए उन्होंने प्रभा खेतान को 'ब्युटी थेरेपी' का कोर्स करने के लिए 'लास एंजिलस' भेजा। 1966 में पहली बार प्रभा खेतान विदेश गई। वहाँ लौटकर आने के बाद उन्होंने 'फिगरेट' नामक महिला स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना की। दस वर्ष तक इसी संस्था के साथ जुड़ी रही। इसके बाद उन्होंने उद्योग जगत की तरफ अपने कदम को रखा |
प्रभा खेतान पढ़ाकू व्यक्तित्व की स्वामिनी थी । प्रभा खेतान की पैनी दृष्टि के बारे में यादव जी कहते हैं कि "दस पन्नों का लेख प्रभा पाँच मिनट में पढ़कर उसकी बारीकियों पर बहस कर सकती थी, उसे याद भी खूब रहता था" लेखकीय रचना तो उनमें कूट-कूटकर भरी थी । प्रभा खेतान जब एम. ए. में पढ़ती तब यादव जी ने उन्हें दे सेकेंड सेक्स पढ़ने को कहा । 'सीमोन बोउबार' की उस पुस्तक ने प्रभा खेतान को काफी प्रभावित भी किया और उन्होंने उस पुस्तक का अनुवाद अंग्रेजी में किया। उनकी गीता जहाँ रखी रहती थी वहीं यह पुस्तक भी उनकी मेज पर पड़ी रहती थी । प्रभा खेतान ने अस्तिववाद को ही पीएच. डी. में चुना।
व्यवसाय के क्षेत्र से जुड़े होने के कारण नारीवाद का आर्थिक पक्ष भी उनका प्रिय विषय था । नब्बे के दशक में एक बार जब हंस पर आर्थिक संकट गहराया तब प्रभा खेतान की कोशिशों से वह संकट से निकल गया। चेगलपेट तमिलनाडु में भी चार वर्षों तक प्रभा खेतान ने वस्त्रों उद्योग चलाया। इस काम में 500 स्त्रियाँ काम करती थी। यहाँ काम कर रही स्त्रियों का उन्होंने लक्ष्यपूर्ण अध्ययन किया। प्रभा खेतान प्रतिष्ठित संस्था कलकत्ता चेंबर ऑफ कामर्स की प्रथम महिला अध्यक्ष बनी।
प्रभा खेतान की रचनाएँ
उपन्यास1) आओ पेपे घर चले
2) तालाबंदी
3) छिन्नमस्ता
4) अग्नि संभवा
5) पीली आँधी
6) अपने-अपने चेहरे
7) एड्स
कविता संग्रह
1) अपरिचि उजाले
2) सीढ़िया चढ़ती हुई मैं
3) एक और आकाश की खोज में
4) कृष्णधर्मा मैं
5) एक और पहचान
6) हुस्न बनो और अन्य कविताएँ
7) अहिल्या
चिंतन
1) स्त्री का अस्तित्ववाद
2) शब्दों का मसीहा
3) आल्बेयर कामू वह पहला आदमी
4) उपनिवेश में स्त्री
5) बाजार के बीच : बाजार के खिलाफ
आत्मकथा
अन्या से अनन्या
अनुवाद
सॉकलो में कैद कुछ क्षितिज
स्त्री-उपेक्षित
संपादन
एक और पहचान
पुरस्कार
1) भारत निर्माण संस्था द्वारा - प्रतिभाशाली महिला पुरस्कार
2) केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा (राष्ट्रपति द्वारा)
3) महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार
4) के. के. बिड़ला फाउंडेशन द्वारा बिहारी पुरस्कार
सम्मान
1) इंडिया इंटरनेशनल सोसायटी फोर यूनिटी द्वारा रत्न शिरोमणि सम्मान
2) इंडियन सालिडियरीटी काउंसिल द्वारा इंदिरा गाँधी सालिडियरिटी सम्मान
3) लायंस क्लब द्वारा उद्योग क्षेत्र के लिए टॉप पर्सनाल्टी सम्मान
4) उद्योग टेक्नोलॉजी फाउंडेशन द्वारा उद्योग विशारद सम्मान