लोकसभा स्पीकर के कार्य और शक्तियाँ

लोकसभा स्पीकर बहुत शक्तिशाली व्यक्ति होता है। वह सदन के अन्दर सर्वोच्च सत्ताधारी होता है। देश के सर्वोच्च व्यक्तियों में उसका 7वां स्थान है और उसको भारत के मुख्य न्यायाधीश के समान स्तर प्राप्त होता है। स्पीकर लोक सभा की सर्वोच्चता का प्रतिनिधित्व करता है, उसका पद बहुत गौरव वाला होता है जिसका सभी सदस्यों के द्वारा इस सीमा तक स्वीकार किया जाता है कि जब स्पीकर सदन में खड़ा होता है तो अन्य कोई भी सदस्य सदन में खड़ा नहीं होता और जब वह बोलता है तो अन्य कोई भी नहीं बोलता, सभी उसको सुनते हैं। 

पंडित जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में, स्पीकर सदन का प्रतिनिधित्व करता है। वह सदन के गौरव का प्रतिनिधित्व करता है और क्योंकि सदन एक विशेष ढंग से राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है इस प्रकार स्पीकर देश की स्वतन्त्रता का प्रतीक बन जाता है। लोक सभा के भूतपूर्व स्पीकर हुकम सिंह ने एक बार कहा था, लोकसभा स्पीकर देश के सबसे उच्च पदों में से एक पद संभालता है। 

लोकसभा स्पीकर का चुनाव

लोक सभा की बैठकों की अध्यक्षता करने के लिए इसके सभी सदस्यों के द्वारा एक व्यक्ति को अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया जाता है उसको लोक सभा का स्पीकर कहा जाता है। संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार, लोगों के सदन (लोक सभा) के द्वारा जितनी जल्दी हो सके, सदन के दो सदस्यों का निर्वाचन स्पीकर और उप-स्पीकर के रूप में किया जाएगा। आम चुनावों के पश्चात नई सरकार बनने पर स्पीकर का चुनाव सदन के द्वारा अपनी प्रथम बैठक में किया जाता है। सामान्य रूप में स्पीकर का निर्वाचन सर्वसम्मति से किया जाता है। विरोधी दलों के नेताओं से परामर्श के पश्चात बहु-संख्या वाले दल के नेता के द्वारा स्पीकर का नाम प्रस्तावित किया जाता है। इस प्रस्ताव का विरोधी दल के नेता के द्वारा समर्थन किया जाता है। स्पीकर का चुनाव तभी होता है यदि सदन में बहुमत वाले दल और अन्य दल इस मुद्दे पर असहमत हों। 

लोकसभा स्पीकर की योग्यताएं

स्पीकर के पद के लिए औपचारिक योग्यताएँ निश्चित नहीं की गई। सदन के द्वारा लोक सभा के किसी भी विद्यमान सदस्य को स्पीकर चुना जा सकता है। हम कह सकते हैं कि लोक सभा के सदस्य बनने के लिए जो योग्यताएँ आवश्यक हैं, वही योग्यताएँ स्पीकर के पद के लिए भी आवश्यक हैं, परन्तु वास्तव में केवल एक अनुभवी और लोकप्रिय लोक सभा का सदस्य ही इस महान् पद के लिए निर्वाचित किया जाता है।

लोकसभा स्पीकर का कार्यकाल

स्पीकर का कार्यकाल लोक सभा जितना अर्थात् 5 वर्ष होता है, परन्तु लोक सभा भंग हो जाने के पश्चात् भी वह अपने पद पर बना रहता है। वह तब तक पद पर बना रहता है जब तक नई लोक सभा अपना स्पीकर नहीं निर्वाचित कर लेती। स्पीकर अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले किसी भी समय अपने पद से त्याग-पत्र दे सकता है।

लोकसभा स्पीकर को कैसे हटाया जा सकता है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 94 में कहा गया है कि यदि स्पीकर सदन का सदस्य नहीं रहता तो उसकी स्पीकर के रूप में सेवाएँ समाप्त हो जाती हैं। स्पीकर स्वयं भी अपने पद से कभी भी त्याग-पत्र दे सकता है। लोक सभा स्पीकर को पद से हटा भी सकती है। इस सम्बन्ध में यदि सदन की बहुसंख्या उसको पद से हटाने के बारे में प्रस्ताव पास कर देती है। तो स्पीकर को पद छोड़ना पड़ता है। परन्तु स्पीकर के विरुद्व अविश्वास प्रस्ताव लाने से 14 दिन पहले ऐसा प्रस्ताव लाने वालों को सदन को एक नोटिस देना पड़ता है।

लोकसभा स्पीकर का वेतन और भत्ते

स्पीकर के वेतन और भत्ते संसद के द्वारा निश्चित किए जाते हैं। वेतन और भत्तों के अतिरिक्त उसको मुफ्रत निवास, मुफ्रत डॉक्टरी सहायता, यात्रा भत्ता और अन्य बहुत-सी सुविधाएँ मिलती हैं। उसका वेतन संचित निधि (Consolidated Fund) में से दिया जाता है।

लोकसभा स्पीकर के कार्य और शक्तियाँ 

लोक सभा का स्पीकर महत्त्वपूर्ण कार्य करता है:

1. सदन की बैठकों की अध्यक्षता – स्पीकर सदन की बैठकों की अध्यक्षता करता है और इसकी कार्यवाही चलाता है। वह दोनों सदनों की साझी बैठक की भी अध्यक्षता करता है।

2. सदन में अनुशासन स्थापित रखना – स्पीकर सदन में अनुशासन स्थापित रखता है। यदि कोई सदस्य सदन की कार्यवाही में विघ्न डालना है या विघ्न डालने का प्रयास करता है तो स्पीकर उसको चेतावनी दे सकता है या उसको सदन से बाहर जाने के लिए कह सकता है। यदि स्पीकर किसी सदस्य को अनुशासन और मर्यादा का उल्लंघन करने का दोषी पाता है तो वह सम्बन्धित सदस्य की सदस्यता को एक निश्चित समय के लिए स्थगित कर सकता है।

3. सदन की कार्य-सूची निश्चित करना – स्पीकर सदन के अन्य सदस्यों, समितियों और प्रधानमन्त्री के परामर्श से सदन के अधिवेशन की कार्य-सूची निश्चित करता है। वह सदन के अलग-अलग प्रकार के कार्यों के लिए समय निर्धारित करता है।

4. प्रश्न पूछे जाने के बारे आज्ञा देना – सदन का प्रत्येक सदस्य अलग-अलग मामलों के बारे में जानकारी लेने के लिए मन्त्रियों से अलग-अलग प्रकार के प्रश्न पूछ सकता है, परन्तु इस अधिकार का प्रयोग करने से पहले उसको स्पीकर से आज्ञा लेनी पड़ती है। इससे सम्बन्धित स्पीकर अन्तिम रूप में निर्णय लेता है और सदस्यों को सदन में प्रश्न पूछने की आज्ञा देता है।

5. सदन की कार्यवाही चलाना – स्पीकर सदन की कार्यवाही चलाता है। सदस्यों को बिल पेश करने, ध्यान दिलाओ प्रस्ताव और कार्य रोको प्रस्ताव रखने की आज्ञा देता है। वह सदन में सदस्यों को मान्यता देता है, सदन में बोलने की आज्ञा देता है, सदन में बहस के लिए समय निश्चित करता है। मामलों पर वोट डलवाता है और मतदान के परिणामों की घोषणा करता है। गैर-संसदीय भाषा प्रयोग करने के लिए वह सदस्यों को चेतावनी दे सकता है और ऐसी टिप्पणी को रिकार्ड में से निकालने का आदेश दे सकता है।

6. नियमों की व्याख्या – सदन का कार्य कार्यवाही के निश्चित नियमों के अनुसार चलाया जाता है। यदि सदन के नियमों के बारे में कोई विवाद हो जाए तो स्पीकर व्याख्या करता है और इन नियमों को लागू करता है। स्पीकर के द्वारा नियमों की, की गई व्याख्या अंतिम होती है और उसको किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।

7. सदन की कार्यवाही स्थगित करना – यदि सदन का कोरम पूरा न हो या यदि सदस्यों के अनुचित व्यवहार के कारण सदन का कार्य चला सकना संभव न हो या अन्य किसी उद्देश्य या कुछ गम्भीर मामले पर स्पीकर सदन की बैठक स्थगित कर सकता है।

8. वित्त बिल के बारे में निर्णय – यदि किसी बिल के वित्त बिल होने या न होने के बारे में विवाद पैदा हो जाए तो इसके सम्बन्ध में स्पीकर के द्वारा निर्णय लिया जाता है। उसका निर्णय अंतिम होता होता है और इसको सदन में या उससे बाहर चुनौती नहीं दी जा सकती।

9. बिल पेश करने की आज्ञा देना – यदि सदन में बिल पेश करना हो तो स्पीकर की आज्ञा लेना आवश्यक होती है। स्पीकर की आज्ञा से ही कोई सदस्य या एक मन्त्री सदन में बिल पेश कर सकता है।

10. निर्णायक वोट डालना – स्पीकर सदन की बहस और विचार-विमर्श में भाग नहीं लेता। वह बिलों पर वोट डालते समय भी वोट नहीं डालता, परन्तु यदि किसी बिल पर मत बराबर हो जाएं तो वह अपनी निर्णायक वोट डाल सकता है।

11. सदन के सदस्यों के विशेष अधिकारों की रक्षा – सदन के सदस्यों के कुछ विशेष अधिकार हैं जिनकी रक्षा स्पीकर के द्वारा की जाती है। स्पीकर के द्वारा सदस्यों के अधिकारों से सम्बन्धित सभी झगड़ों के मामले विशेष अधिकारों के बारे समिति को भेजे जाते हैं। इस समिति के सुझाव या इच्छा के अनुसार स्पीकर इनसे सम्बन्धित निर्णय लेता है। इस प्रकार स्पीकर सदस्यों के विशेष अधिकारों का रखवाला होता है। वह विश्वसनीय बनाता है कि सदस्यों के द्वारा मन्त्रियों के द्वारा मन्त्रियों को पूछे गए प्रश्नों के उत्तर ठीक और समय पर मिलें।

12. राष्ट्रपति और संसद के बीच सम्पर्क सूत्र – लोक सभा के सदस्य स्पीकर के माध्यम से ही राष्ट्रपति तक पहुँच कर सकते हैं। इस प्रकार स्पीकर राष्ट्रपति और संसद के बीच सम्पक्र सूत्र के रूप में कार्य करता है।

13. दर्शक गैलरी पर नियंत्रण – स्पीकर दर्शकों की गैलरी पर नियंत्रण रखता है। वह दर्शकों को सदन की गैलरी में बैठने की आज्ञा दे सकता है और अनुचित व्यवहार या शोर-शराबे के कारण उनको गैलरी से बाहर जाने का आदेश दे सकता है।

14. सदन की समितियों से सम्बन्धित भूमिका – सदन के कार्य का पर्याप्त भाग सदन की समितियों द्वारा किया जाता है। स्पीकर इन समितियों के गठन से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह कुछ महत्त्वपूर्ण समितियों जैसे कारोबार परामर्शदाता समिति (Business Advisory Committee), नियम समिति आदि का अध्यक्ष भी होता है।

15. प्रशासकीय कार्य – स्पीकर के बहुत-से प्रशासनिक उत्तरदायित्व होते हैं। लोक सभा के सचिवालय पर उसका अंतिम रूप में नियंत्रण होता है। वह सचिवालय के कर्मचारी नियुक्त करता है, उनकी सेवा के नियम निश्चित करता है और उनके कार्य की निगरानी करता है। सदन की कार्यवाही के रिकार्ड से सम्बन्धित संभाल का उत्तरदायित्व स्पीकर का होता है। टास्क लोकसभा के अध्यक्ष को प्राप्त शक्तियों पर अपने मत प्रस्तुत कीजिए।

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