महाभारत की गांधारी कहाँ की राजकुमारी थीं?

गान्धार देश के राजा सुबल की पुत्री गांधारी थी। सुबल के पिता के रूप में प्रह्लाद के शिष्य नग्नजित का नाम महाभारत में उल्लिखित है । सम्भवतः इसी राजा नग्नजित को जैन उत्तराध्ययन सूत्र में जैन नरेश नग्गति के रूप में उल्लेख किया गया है । प्रह्लाद के शिष्य के रूप में उल्लेख किये जाने से इस वंश की धर्मपरायणता भी स्पष्ट होता है ।

गांधारी को सुबलात्मजा भी कहा जाता था । जन्म भूमि एवं पिता के नाम से योग करके उनका नाम रक्खा गया था । अंशावतरण वर्णन के समय व्यासदेव के अनुसार — मातृकागण के मध्य मति देवी सुबल नरेश की कन्या के रूप में जन्म ग्रहण की थी ।

“गान्धार की पट्टराजमहिषी आर्या कुंडलिका थी । वे मध्य देश के स्वनामधन्य प्रतापी सृजयों की कन्या थीं । उन्होंने सृ॑जयों के बीच व्याप्त वैदिक संस्कृति से पावन मर्यादा का संस्कार पायी थी । सुवलराजमहिषी आर्या कुंडलिका गांधारी की माता थी ।

राजमहिषी कुंडलिका ने समूचे गान्धार व राजभवन को अपनी कठोर अनुशासन एवं संस्कारों की विशिष्टता से संचालित किया था । गान्धार की सर्वांगसुन्दरी महारानी मानवती थीं, और उनकी इच्छा के विरुद्ध कोई नहीं जा सकता था ।

महारानी कुंडलिका अपने पुत्रों एवं पुत्रियों में सबसे प्रिय एवं संस्कारी गांधारी को मानती थी । गांधारी, कला और रूप-सौन्दर्य की साकार प्रतिमा थी, उसमें अपनी माता की कठोर अनुशासन, मर्यादा, संस्कार, धर्मपरायणता एवं वैदिक संस्कृति की विशिष्टताएँ तथा उदारता और गरिमा थी । राजमहिषी कुंडलिका को अपने ज्येष्ठ पुत्र शकुनि का आचार-व्यवहार और अत्यन्त उच्छृंखलतापूर्ण कार्यों से विरोध था । शकुनि ने द्यूतक्रीड़ा सिखी थी जिसे महारानी अत्यन्त हेय और निकृष्ट मानती थी । यद्यपि वैदिक परम्परा के यज्ञों में इस क्रीड़ा का महत्त्वपूर्ण स्थान था । परन्तु महारानी इस क्रीड़ा से घृणा करती थी । परन्तु शकुनि अत्यन्त अल्पवय में ही राज्य की न्याय से लेकर रणकौशल की समस्याओं को सुलझाने में पुरी तरह समर्थ था । इसलिये महाराज सुबल उस पर निर्भर रहते थे । "" गांधारी के 13 भाई एवं 10 बहन थी । शकुनि इनके ज्येष्ठ भ्राता । इनके विषय में कहा गया है कि गान्धार नरेश सुबल के किसी पाप के कारण देवता कुपित हुये एवं शकुनि का जन्म हुआ ।

गांधारी के अन्य भाइयों का नाम – वृषकः, बृहद्वलः, अचलः, शरभः, सुभगः, विभुः, भानुदत्तः, गजः, गवाक्षः, चर्मवान्, आर्जयः, शुकः ।

महाभारत युद्ध के अवसर पर शकुनि के अलावा गांधारी के अन्य भाइयों का भी दुर्योधन के पक्ष में सामिल होकर युद्ध करने का उल्लेख मिलता है—

गांधारी की बहनें भी धृतराष्ट्र की पत्नियाँ थीं— सत्यव्रता, सत्यसेना, सुदेष्णा, संहिता, तेजश्वा, सुश्रवा, निकृतिः, शुभा, शम्बष्ठा, दशार्णा ।

सुबल दुहिता गांधारी बाल्यावस्था से ही "महादेव" की आराधना करती थी । इससे प्रसन्न होकर महादेव ने वरदान दिया कि गांधारी को सौ पुत्रों की प्राप्ति हो- अथ शुश्राव विप्रेभ्यो गांधारीं सुबलात्मजाम् । आराध्य वरदं देवं भगनेत्रहरं हरभू ॥ गांधारी किल पुत्राणां शतं लेभे वरं शुभा ॥

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