गजल क्या है

गजल उर्दू साहित्य की ऐसी विधा है जिसमें प्रेम और श्रृंगार का वर्णन अधिकता से होता आ रहा है यह बात गज़ल की शब्दिक परिभाषा में ही कही जाती है। वर्तमान में काव्य जगत और संगीत जगत में सबसे अधिक प्रभावित करने वाली रचना ‘गज़ल' है । गज़ल मूलतः फारसी भाषा की काव्य-गत शैली है तथा इसमें प्रणय, प्रधान गीतों का समावेश होता है, मोहब्बत के जज्बातों की अभिव्यक्ति है । "

अरबी में गज़ल का शाब्दिक अर्थ कातना - बुनना होता है । गज़ल शब्द की उत्पत्ति ‘गज़ाल' से भी स्वीकारी जाती है, जिसका अर्थ हरिण होता है और आधार पर गज़ल को हरिण की चौकड़ी की तरह प्रेम व्यापार की काव्यात्मक अभिव्यक्ति भी कहा गया है । "

गज़ल गायकी की विधा स्वतंत्रतापूर्व से ही भारतीय हिन्दुस्तानी संगीत में व्याप्त थी। स्वतंत्रता के पश्चात् गज़ल की सांगीतिक बंदिशों में शुद्ध रागों के प्रयोग के साथ-साथ चयनित रागों में विवादी स्वरों का प्रयोग भी किया जाने लगा।

प्रायः गज़ल की सांगीतिक रचना गज़ल की शाब्दिक रचना के आधार पर किया जाता है। अगर गज़ल के शब्द गम्भीर है तो गज़ल की रचना करते समय स्वरों के प्रयोग में और राग के प्रयोग में गम्भीरता लिये हुए राग का और स्वरों का संयोजन किया जाता है। जैसे- मेंहदी हसन, गुलाम अली, फरीदा खानम, बेगम अख़्तर इत्यादि अनेक कलाकार गज़ल की प्रस्तुतिकरण रचना विशेष को ध्यान में रखकर करते है जिससे गज़ल का सौन्दर्य या उसमें निहित 'रस' का अर्थ सार्थक होने लगता है। उदाहरण स्वरूप मेंहदी हसन की गायी गयी गज़ल यथा (फूल ही फूल खिल उठे पैमाने में, आप क्या आए बहार आ गई मै खाने में) इस रचना को जो राग गौड़ मल्हार में बाँधी गयी है लेकिन गज़ल की स्थायी में जहाँ 'बहार' शब्द की सांगीतिक प्रस्तुति हुई है वहाँ बड़ी खूबी से राग 'बहार' की छाया दर्शायी गयी है । गज़ल में राग के स्वरूप का प्रकटीकरण मुख्यतया आलाप आश्रित होता है जो कि ध्रुपद शैली का प्रमुख आधार है। गज़ल गायकी में अधिकांशतः तानों का प्रयोग वर्जित है, यदा-कदा ख़्याल शैली के प्रभाव से कभी-कभी कुछ गज़ल गायक प्रस्तुति में विचित्रता पैदा करने के लिए छोटी-छोटी स्वर तानों का प्रयोग कर लेते हैं ।

वस्तुतः गज़ल कंठ संगीत के अन्यान्य आनुषंगिक तत्वों के एकीकृत नाद स्वरूप को प्रकट रूप में उभारने वाली सरलतम सांगीतिक विधा है। इसमें शब्द, स्वर, स्वर–भेद, राग, स्थायी अन्तरा, आलाप, तान, अलंकार, ताल, लय इत्यादि संगीत के सभी तत्व विद्यमान रहते है और वे सभी सम्मिलित होकर अंततः नाद के एक विराट स्वरूप को अल्पकालीन समयावधि की प्रस्तुति में प्रकट करते हैं। वस्तुतः सांगीतिक दृष्टि से गज़ल अल्पावधि में संगीत के समग्र विराट स्वरूप को मूर्त रूप में स्थापित करने का प्रयास है।"

गज़ल गायकी वह काव्यात्मक संगीतात्मक अभिव्यक्ति है, जो सांगीतिक स्वरों के आसन पर बैठकर सीमित शब्दों में श्रोताओं को भावों और रसों के सागर में समाहित कर देती है । गज़ल गायन शैली में भावाभिव्यक्ति और रसानुभूति के लिए उचित स्वर संयोजनों, तालों और लयों का प्रयोग होता ही है परन्तु साथ में गायक अपनी आवाज़ के आरोह-अवरोह, आवाज़ को गम्भीर अथवा चपल बनाकर, शब्दों को अपनी आवाज में सुख और दुःख के साथ उच्चारित करके गज़ल की भावाभिव्यक्ति और रसानुभूति को सरल और सटीक बनाकर श्रोताओं के कानों तक पहुँचाने का यत्न करते हैं, फलस्वरूप श्रोता, गायक के द्वारा प्रस्तुत किये गये भावों और रसों की उत्पत्ति को गज़ल गायक श्रोताओं तक पहुँचाने में अधिक उपयोगी सिद्ध होते है ।

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