गुरु अमरदास जी का जीवन परिचय

गुरु अंगद देव जी ने तीसरे गुरु के रुप में गुरु गद्दी अपने बेटों में से किसी को भी न सौंपकर, उसपर गुरु अमरदास जी को आसीन कराया । इससे गुरु अंगद के पुत्र असंतुष्ट और रुष्ट हो गए थे । तृतीय नानक के रुप में गुरु अमरदास जी ने गुरु-गद्दी की शोभा बढाई । वे आयु में गुरु 1479 अंगद देव जी से पच्चीस वर्ष बड़े थे । गुरु अमरदास जी का जन्म अमृतसर में सन् में एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था । सन् 1502 में उनका विवाह हुआ । उन्हें दो लड़के । और दो लड़कियाँ थी । वे वैष्णव विचारों वाले थे । गुरु अमरदास निरंतर इक्कीस वर्षों तक तीर्थयात्रा करते रहे । 62 वर्ष की आयु में इनका परिचय गुरु अंगद देव जी से हुआ । गुरु अमरदास जी में गुरु-परम्परा के प्रति अगाध श्रद्धा और सेवा-भाव को देखते हुए उन्हें गुरु-गद्दी पर विराजमान कराया गया । गुरु अमरदास ने लंगर प्रथा पर विशेष ध्यान दिया, क्योंकि एकता और भ्रातृत्व पर बल देने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण सिद्ध हुई थी । उन्होंने इसके अंतर्गत ‘पहले पंगत, फिर संगत” का आदर्श रखा । गुरु अमरदास जी ने हुमायूँ के बेटे अकबर के साथ सुखद संबंध स्थापित कर अपने शिष्यों को एक सौहार्द्रपूर्ण सामाजिक वातावरण दिया, जिसमें वे गुरु-घर के सिद्धांतों का प्रचार, बिना किसी भय या आतंक के कर सकते थे । इक्कीस वर्षों तक उन्होंने गुरु-गद्दी की शोभा बढ़ाई और 95 वर्ष की आयु में चतुर्थ गुरु को गद्दी सौंपकर शरीर त्याग दिया ।

‘गुरुग्रंथ साहिब’ में उनके कुल 907 पद और श्लोक मिलते हैं । इनकी प्रतिनिधि रचना ‘अनंदु’ है जो रामकली राग में रचित है । इस रचना में उन्होंने दार्शनिक और धार्मिक तत्वों की व्याख्या की है और सच्चे आनंद तथा हर्षोल्लास का सूक्ष्म विवेचन प्रस्तुत किया है । अपनी रचनाओं में उन्होंने गुरु भक्ति, अहम्-त्याग, नैतिक जीवन और सफल जीवन के निर्माण का संदेश दिया है । साथ ही, उन्होंने भक्तिहीन मनुष्य के जन्म को व्यर्थ माना है । उनका हृदय विश्व बंधुत्व की भावना से ओत-प्रोत है जो सबकी पीड़ा को देखकर दुखी हो जाता है । उनकी रचनाओं की भाषा शुद्ध सरल पंजाबी भाषा है । अलंकारों के स्वाभाविक और चमत्कारपूर्ण प्रयोगों से उनकी रचनाएँ विशिष्ट बन पड़ी हैं । गुरु अमरदास जी की, पंजाबी वर्णमाला के आधार पर रचित ‘पट्टी' नामक रचना पंजाबी काव्य को एक विशेष देन है । यह रचना एक अक्षरमाला है जिसके एक-एक अक्षर से ही कविता का आरंभ होता है । इनके व्यापक अनुभव-क्षेत्र ने इनकी शैली को विशेष गरिमा प्रदान की । गुरु अमरदास जी ने अपनी रचनाओं द्वारा गुरु काव्य परम्परा को जीवंत बनाए रखा और अपने व्यक्तित्व की अनोखी छाप देकर संत काव्य को अलंकृत किया ।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

Post a Comment

Previous Post Next Post