गांधार देश का इतिहास

गांधार एक प्राचीन देश है । इसका वर्णन वेदादि ग्रन्थों में भी पाया जाता है । गांधार के बारे में कहा गया है-

Gandhar is the name of a Country between India and Persia, "The Modern Kandara". !

सिन्धु नदी के पूर्व और उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित देश जिसमें वर्त्तमान अफगानिस्तान का पूर्वी भाग सम्मिलित था वही गांधार था । वर्तमान के कंधार नगर ही प्राचीन गांधार था । गांधार का अपभ्रंश कंधार है । कान्धार शब्द " काण्डहार" का अपभ्रंश है । कंधार एक फल का नाम है जो अमृतफल के नाम से प्रसिद्ध है ।

गांधार की वर्त्तमान सीमा आधुनिक जिला पेशावर, जिला मरदान तथा रावलपिण्डी जिले का पश्चिमोत्तरी भाग है । अटक शहर के बाद सिन्धु प्रदेश शुरू हो जाता है ।

ऋग्वेद में गांधार के निवासियों को गन्धारी कहा गया है और उनकी भेड़ो के ऊन को सराहा गया है ।

अथर्ववेद में गंधारियों का उल्लेख हैं । इसमें गंधारियों की गणना अवमानित जातियों में की गई है । किन्तु परवर्तीकाल में गांधारवासियों के प्रति आर्यजनों का दृष्टिकोण बदल गया था और गांधार में बड़े-बड़े विद्वान् और पण्डित जाकर बसने लगे थे । 

काबुल के नीचे के देश व कंधार को गांधार देश कहते थे । अफगानिस्तान में काबुल बाद कंधार सबसे बड़ा शहर है। गांधार शब्द की व्युत्पत्ति गन्ध देने वाला पुष्प गन्ध रस से हुआ है । इस प्रदेश को सिन्धु शब्द से भी कहा गया है । सिन्धूर एक प्रकार संगीत का राग भी है जो कंधार देश में प्रमुख हैं । संगीत के सप्तक का “गा" = गांधार सम्भवतः इस देश के नाम पर आधारित है ।

भारत और फारस के बीच का देश आधुनिक कंधार है । छान्दोग्य उपनिषद् से पता लगता है कि उपनिषद् काल में गांधार देश आर्य निवास से बहुत ही दूर पड़ गया था। पूरब की ओर आर्यों के बढ़ाव के कारण गांधार देश दूर पड़ गया। इसमें उद्दालक आरुणि ने सद्गुरुवाले शिष्य के अपने अन्तिम लक्ष्य पर पहुँचने के उदाहरण के सम्बन्ध में गांधार का उल्लेख किया है ।

महाभारत काल में गांधार देश का मध्य देश से बहुत निकट का सम्बन्ध था । धृतराष्ट्र रानी गांधारी, गांधार की राजकन्या थी । शकुनि इसका भाई था, कौरव इनके पुत्र थे ।

जातकों में कश्मीर और तक्षशिला प्रदेश दोनों की ही स्थिति गांधार में बताई गई है ।

'चन्द्र (पौरव) वंश अरुद्ध का पुत्र ने (द्रुह्य की चौथी पीढ़ी में ) उत्तर पश्चिम में गांधार देश बसाया । ब्रह्माण्ड0 के अनुसार गांधार की चौथी पीढ़ी में प्रचेतस् के सौ पुत्र हुए, जो सब म्लेच्छाधिप कहे गये हैं । 

गांधार की कला-

गांधार अपनी विशिष्ट कला के लिये भी प्रसिद्ध था । गांधार कला की शैली मूलतः हेलेनिस्टिक

था । किन्तु वर्ण्य विषय मूलतः भारतीय था । प्रथम शताब्दी ई० तक गांधार कला का स्वरूप स्थिर हो चुका था । लम्बे एवं सुन्दर वक्र रेखाओं से घुघराले केश का प्रदर्शन, लम्बा उष्णीश एवं संतुलित शरीरावयव का अंकन इसकी विशेषताएँ बनी ।

गांधार में मुख्य उपास्य वस्तु स्तूप थी । वर्त्तमान काल में भी कान्धार में उन अधिकांश स्तूपों का शेषांश स्थित है । इस प्रकार प्राचीन गांधार आज के कान्धार के रूप में हमारे सम्मुख आज भी विद्यमान है ।

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