देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व || आर्थिक विकास में कृषि क्षेत्र का योगदान

भारत एक विकासशील कृषि प्रधान देश है। आर्थिक नियोजन को अपनाने के पश्चात इसके स्वरूप में कुछ परिवर्तन हुए हैं तथापि यहां कृषि की प्रधानता बनी हुई है। भारत की 50.8% से अधिक जनसंख्या कृषि कार्य में संलग्न है किन्तु इसके बावजूद भारतीय कृषि पिछड़ी अवस्था में है और यह देश के आर्थिक विकास में एक बहुत बड़ी बाधा है। 

मानव सभ्यता के विकास के प्रारम्भ से ही कृषि लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन रही है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में भी कृषि विश्व की अधिकाँश जनसंख्या के लिए व्यवसाय एवं आय प्राप्ति का बड़ा स्रोत है। भारत जैसे विकासशील देशों में कृषि प्रमुख व्यवसाय होने के कारण राष्ट्रीय आय का सबसे बड़ा स्रोत, रोजगार एवं जीवनयापन का साधन है। कृषि औद्योगीकरण का आधार एवं अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। कृषि आर्थिक विकास का एक ऐसा मार्ग है जिस पर चलकर आज विश्व के अनेक राष्ट्र आर्थिक विकास के शिखर पर पहुँच सके हैं। प्राचीनकाल से लेकर आजतक के विचारकों ने कृषि के विकास पर पर्याप्त बल दिया है। इंग्लैण्ड, जर्मनी, जापान आदि देशों के विकास में कृषि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा औद्योगीकरण के लिए आधार प्रदान किया।

आर्थिक विचारों के इतिहास पर यदि ध्यान दे तो स्पष्ट होता है कि हमारे भारतीय समाज में कृषि को बहुत अधिक महत्व दिया जाता था पूर्व वैदिक काल में ही आर्यों ने कृषि को अपना व्यवसाय बना लिया था। वे गेहूँ तथा जो मुख्यतः उगाते थे। उत्तर वैदिक काल में कृषि ने उन्नति की। कृषि सम्बन्धी यंत्रों का विस्तार तथा सिंचाई और खाद से लोग अच्छी तरह परिचित हो गये थे। हमारे भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही पृथ्वी को माता के समान माना गया है। यहाँ कृषि कर्म को प्रथम, वाणिज्य को द्वितीय सेवा कार्य को तृतीय तथा माँगने को चतुर्थ स्थान प्रदान किया है। अरस्तू फसलों एवं पशुओं द्वारा ही द्रव्य के उपार्जन को प्राकृतिक मानते थे। सुकरात के प्रमुख शिष्य जीनोफन ने कृषि को विशेष महत्व प्रदान किया। यूनानी विचारकों ने कृषि को विशेष महत्व प्रदान किया। सिसेरो (Cicero) केटो ( Cato), वारो (Varro) आदि ने मत व्यक्त किया कि कृषि ही समस्त प्राप्तियों का आधार है। प्राचीन वाणिकवादियों ने भी खाद्यान्न में आत्मनिर्भर होने की बात कही। खोजों के दौरान प्रकृतिवादियों ने कृषि की महत्ता पर पर्याप्त बल दिया। उनका विश्वास था कि केवल कृषि ही समाज की सम्पत्ति उत्पन्न करने वाली तथा उत्पादक है और इसके अतिरिक्त समस्त अन्य व्यवसाय अनुत्पादक हैं। 

केने के अनुसार, "कृषि राज्य की समस्त सम्पत्ति तथा समस्त नागरिकों के धन का स्रोत है। अतः कृषि का लाभप्रद होना सरकार एवं राष्ट्र के लिए अनुकूल बात होगी।"

एडम स्मिथ ने प्रकृतिवादियों की इस विचारधारा का खण्डन किया कि केवल कृषि ही उत्पादक है फिर भी उन्होंने कृषि को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया। मार्शल सहित अनेक अर्थशास्त्रियों ने कृषि के सम्बन्ध में मिलते जुलते विचार व्यक्त किये। कृषि के सम्बन्ध में विभिन्न विचारकों के कुछ भी मत रहे हों किन्तु इस बात की हम उपेक्षा नहीं कर सकते कि कोई भी देश कृषि के बिना आर्थिक विकास के शिखर पर पहुँच सकता है क्योंकि कृषि मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं भोजन, कपड़ा, आवास आदि की पूर्ति करता है।

अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व 

सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए कृषि विकास पहले होना चाहिए और यदि किसी क्षेत्र के अविकसित होने से दूसरे क्षेत्र के आर्थिक विकास में बाधा पड़ती है तो वह अविकसित क्षेत्र कृषि ही होगा जो अन्य क्षेत्रों के विकास को बाधित करेगा। निम्नांकित तत्व देश की अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व को स्पष्ट करते हैं -

> राष्ट्रीय आय में योगदान
> रोजगार की दृष्टि से कृषि का महत्व
> औद्योगिक विकास में कृषि का महत्व
> अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और कृषि
> खाद्यान्न आपूर्ति

राष्ट्रीय आय में योगदान 

कृषि क्षेत्र में राष्ट्रीय आय का योगदान एक ऐसा मापदण्ड - है जिससे अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र के महत्व का पता चलता है। 1948-49 के पूर्व व्यक्तिगत आधार पर दादाभाई नौरोजी, लार्ड कर्जन, बोरिंग बारबर आदि विद्वानों ने समय-समय पर जो आकलन तैयार किया उससे स्पष्ट है कि 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से प्रथम विश्वयुद्ध तक लगभग दो तिहाई राष्ट्रीय आय कृषि क्षेत्र से प्राप्त होती थी। इसका प्रमुख कारण औद्योगिक पिछड़ापन था। इसके बाद बी० के०आर०वी० राव द्वारा जो आकलन किया गया उनके अनुसार कुल उत्पादन में कृषि का अनुपात 1925-29 की अवधि में 57% एवं 1931-32 के दौरान 53% रहा। इससे स्पष्ट है कि स्वतन्त्रता पूर्व राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान आधे से अधिक रहा है। स्वतन्त्रता के बाद योजनाओं को लागू करने के पश्चात् द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रों के विकास के कारण कृषि का हिस्सा लगातार कम होता गया है।

संसार के अन्य विकसित देशों की राष्ट्रीय आय में कृषि का भाग बहुत कम है क्योंकि इनकी कृषि पर निर्भरता बहुत कम है। विश्व बैंक के प्रकाशन (World Development Report, 1995) के अनुसार विकसित देशों में कृषि का राष्ट्रीय आय में 1965 में 5% योगदान था जो 1988 में घटकर 3% रह गया। उदाहरण के लिए अमेरिका और इंग्लैण्ड में कृषि से केवल राष्ट्रीय आय का 2% प्राप्त होता है इससे सिद्ध होता है जैसे-जैसे देश विकसित होता जाता है उसकी कृषि पर निर्भरता कम होती जाती है।

रोजगार की दृष्टि से कृषि का महत्व

भारत में कृषि प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अधिकाँश जनसंख्या के लिए रोजगार का साधन रही है। भारत में की गई जनगणनाओं से पता चलता है कि वर्ष 1901 से अब तक कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता 75% से 60% के बीच रही है। नियोजन काल में निजोजकों का विश्वास था कि कृषि निर्भरता में कमी होगी, लेकिन बड़े दुर्भाग्य की बात है कि इस दिशा में कोई कमी नहीं हुई है। अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों का उपयुक्त विकास न होने के कारण उनमें रोजगार अवसर में वृद्धि नहीं हुई है। अतः लोगों को मजबूरन कृषि पर निर्भर रहना पड़ा है। हालाँकि भूमि पर सीमान्त उत्पादकता बहुत कम है जिससे बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है।

अधिकतर अल्पविकसित देशों में कृषि पर निर्भरता बहुत अधिक होती है। उदाहरण के लिए 1999 में बांग्लादेश में 57%, पाकिस्तान में 48% कृषि में लगी हुई थी। इसके विपरीत विकसित देशों में जनसंख्या का एक छोटा भाग कृषि कार्य में संलग्न है। उदाहरण के लिए 1999 में जापान और फ्रांस में 4% तथा इंग्लैण्ड व अमेरिका में मात्र 2% कृषि कार्य में लगा हुआ था। 

औद्योगिक विकास में कृषि का महत्व

कृषि क्षेत्र विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करता है। भारत में महत्वपूर्ण उद्योगों को जिनमें सूती वस्त्र, जूट, चीनी तथा वनस्पति उद्योग उल्लेखनीय हैं, कृषि से ही कच्चे पदार्थ की प्राप्ति होती है इसके अतिरिक्त और भी ऐसे अन्य उद्योग हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर हैं जैसे हथकरघा, दवाइयाँ, आदि तो कृषि क्षेत्र द्वारा की जाने वाली माँग पर ही निर्भर हैं। इससे स्पष्ट है कि कृषि क्षेत्र विभिन्न उद्योगों के अस्तित्व एवं विकास का आधार है।
इसके अतिरिक्त औद्योगिक क्षेत्र में कृषि या ग्रामीण क्षेत्र से ही श्रमिकों की आपूर्ति होती है। शाही श्रम आयोग 1931 ने भी इस बात की पुष्टि की है। औद्योगिक क्षेत्र में लगे हुए लोगों के लिए खाद्यान्नों के उत्पादन की जिम्मेदारी कृषि पर ही है। औद्योगिक विकास एवं कृषि पर निर्भरता बढ़ने के कारण मजदूरों का कृषि क्षेत्र से औद्योगिक क्षेत्र की ओर पलायन आज भी जारी है।

अन्तराष्ट्रीय व्यापार और कृषि 

विदेशी व्यापार की दृष्टि से भारतीय कृषि का स्थान - अत्यन्त महत्वपूर्ण है। बहुत लम्बे समय से तीन कृषि वस्तुओं (चाय, पटसन तथा सूती वस्त्रों) का भारत के निर्यात में 50% योगदान था । यदि हम अन्य कृषि वस्तुओं जैसे कॉफी, तम्बाकू, काजू, वनस्पति तेल, चीनी आद को भी सम्मिलित करें तो कृषि निर्यात आय में हिस्सा 70 से 75% तक पहुँचता हा कृषि वस्तुओं पर इतनी अधिक निर्भरता भारत के अल्प विकास को प्रलिक्षित करती है। आर्थिक विकास के साथ-साथ निर्यात आय में कृषि का हिस्सा कम हुआ। उदाहरण के लिए 1960-61 में कुल निर्यात आय में कृषि का हिस्सा 44.2% था। यह गिरते-गिरते 1980-81 में 30.7% तथा 20001-02 में 13.4% रह गया। आयातों में मुख्य हिस्सा पूँजीगत वस्तुओं तथा औद्योगिक मशीनरी का रहा है लेकिन कभी-कभी खाद्यान्नों की कमी को पूरा करने के लिए खाद्यान्नों का आयात करना पड़ा है। नवीन निर्यातों से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होगी जिससे हम औद्योगिक विकास के लिए पूँजीगत माल को वित्तपोषित कर सकते हैं। प्रो० रोस्टोव के अनुसार, "कृषि औद्योगिक विकास की आधारशिला है और कृषि उत्पादन, औद्योगीकरण के लिए मूलभूत कार्यशील पूँजी है।"

खाद्यान्न आपूर्ति 

तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद्य पदार्थों को - उपलब्ध कराना कृषि का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है। खाद्यान्न आपूर्ति न होने से देश में अस्थिरता पैदा हो जाती है। एक बार कनफ्यूशिस से पूछा गया कि "पर्याप्त खाद्यान्न, पर्याप्त सैनिक शक्ति और शासन के प्रति पर्याप्त लोक विश्वास" इसमें से कौन सा एक छोड़ा जा सकता है तो उनका उत्तर था, "सैन्य शक्ति छोड़ दीजिए।" इसी से कृषि का महत्व स्पष्ट है। भारत में जनसंख्या की वृद्धि 2.5 से 3 प्रतिशत वार्षिक होने के कारण खाद्यान्न की माँग तेजी से बढ़ती जा रही है तथा विकसित देशों की अपेक्षा इन देशों में खाद्य पदार्थों की माँग की आय लोच ऊँची होती है। ऐसा अनुमान है कि भारत में ग्रामीण परिवार अपने कुल व्यय का लगभग 64 प्रतिशत तथा शहरी परिवार अपने कुल व्यय का लगभग 56 प्रतिशत खाद्य पदार्थों पर व्यय करते हैं। 

आर्थिक विकास में कृषि क्षेत्र का योगदान

कृषि समस्त उद्योगों की जननी तथा औद्योगीकरण का मूल आधार है। आर्थिक दृष्टि से पिछडे देशों में कृषि प्रधान व्यवसाय है। राष्ट्रीय आय का बड़ा भाग इसी क्षेत्र में उत्पादित होता है। अतः इन देशों के आर्थिक विकास में कृषि विकास की भूमिका का महत्वपूर्ण होना स्वाभाविक है। आर्थिक विकास के इतिहास से स्पष्ट है कि कृषि व्यवसाय से भारी संख्या में लोगों का दूसरे व्यवसायों में स्थानान्तरण आवश्यक है ऐसा सम्भव बनाने के लिए व्यापक स्तर पर औद्योगिक विकास करना होगा तभी स्थानान्तरित व्यक्तियों को कृषि क्षेत्र के बाहर कार्य मिल सकेगा और जो लोग कृषि व्यवसाय में रहेंगे, वे उसका विवेकीकरण कर सकेंगे जिसका विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर व्यापक अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।

कृषि क्षेत्र में प्रगति को औद्योगिक विकास का आधार कहा जाता है। एक ऐसा देश जिसका अन्य देशों से व्यापार नहीं है, यह अत्यन्त आवश्यक है कि वह कृषि विकास का स्तर ऊँचा उठाए और खाद्य पदार्थों में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सके। कृषि क्षेत्र में अत्यधिक उत्पादकता से औद्योगिक विकास होता है। कृषि उत्पादकता अधिक होने पर कृषि क्षेत्र से अन्य क्षेत्रों को श्रमशक्ति का स्थानान्तरण होता है साथ ही कृषक वर्ग की आय बढ़ जाती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि कृषि उत्पादिता एवं उत्पादन आर्थिक विकास में निम्न प्रकार से योगदान करते हैं -
अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को खाद्यान्न एवं कच्चा माल उपलब्ध होता है। निर्यात एवं आयात प्रतिस्थापन द्वारा विदेशी विनिमय सम्भव होता है। कृषि उत्पादन अधिक होने पर श्रमिकों को रोजगार प्राप्ति होती है। अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों का विकास होने से विवेश योग्य अतिरेक की प्राप्ति होती है।

अतः स्पष्ट है कि कृषि उत्पादकता में वृद्धि अर्थव्यवस्था के विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है। महात्मा गाँधी ने भी कहा था, "प्रारम्भ से ही यह मेरा अटूट विश्वास रहा है कि केवल कृषि ही इस देश के लोगों को अचूक एवं सतत सहायता प्रदान करती है। "

 सदर्भ-

1. चरण सिंह, भारत की भयावह आर्थिक स्थिति, पृ० 39 ।
2. M.H. Suryanarayan, "Food Securities and Calorie Adequecy across States: Implication for Reform", Journal of Indian School of Political Economy. Vol. Vill, No. 2 1906 P. 222.
3. A.J. Coal and E.M. Hoovor: Population Growth and Economic Development in Low Income Countries.
4. राष्ट्रीय कृषि आयोग की रिपोर्ट, भाग 2, पृ० 21
5. राष्ट्रीय कृषि आयोग की रिपोर्ट ।

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