निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख कवि

निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख कवि -

1. रामानन्द

रामानन्द अपने युग के सर्वाधिक यशस्वी साधक एवं प्रगतिशील विचारक थे। सन्त मत के प्रचार एवं प्रसार का श्रेय इन्हीं को है। इनका जन्म 1299 ई. में प्रयाग के कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनकी शिक्षा प्रयाग तथा वाराणसी में हुई। आगे चलकर राघवानंद को इन्होंने अपना गुरु बनाया। राघवानंद श्री सम्प्रदाय के महान् संत थे।

1875 में लिखी गई रामानुज हरिवर दास की हरि भक्ति प्रकाशिका के अनुसार " रामानन्द ने देखा कि भगवान के शरणागत होकर जो भक्ति के पथ में आ गया उसके लिए वर्णाश्रम का बन्धन व्यर्थ है, इसीलिए भगवद् भक्त को खान-पान के झंझट में नहीं पड़ना चाहिये। इस प्रकार सभी भाई-भाई हैं, सभी एक जाति के हैं। श्रेष्ठता भक्ति से होती है, जन्म से नहीं । ब्राह्मण से चांडाल तक सभी को राम नाम का उपदेश दिया। 

रामानन्द के शिष्यों में रैदास (चमार), कबीर (जुलाहा ), धन्ना (जाट किसान), पीपा (राजपूत) आदि थे। सभी जातियों के लोगों को अपना शिष्य बनाकर उन्होंने भ्रातृत्ववाद का प्रतिपादन किया। कबीर को अपना शिष्य बनाकर हिन्दू मुस्लिम समन्वयवाद का मार्ग प्रशस्त किया।

2. कबीरदास

कबीर का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा, सोमवार विक्रम संवत् 1456 माना जाता है । कबीर ने प्रसिद्ध सूफी मुसलमान फकीर शेख तकी से दीक्षा ली थी, कुछ विद्वानजन उस सूफी फकीर को ही कबीर का गुरु मानते हैं यद्यपि उनके विश्व प्रसिद्ध गुरु स्वामी रामानन्द ही थे। 

3. रैदास या रविदास

रैदास का जन्म काशी में हुआ था। कबीर की भाँति उनके जीवन काल के विषय में भी बड़ा मतभेद है । रैदास की परिचायिका में जन्म काल का उल्लेख नहीं है। डॉ. भण्डारकर के अनुसार उनका जन्म 1299 ई. में हुआ था। डॉ. भगवत व्रत मिश्र ने यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि कवि का जन्मकाल 1398 ई. तथा मृत्युकाल 1448 ई. के मध्य होना चाहिये। 

4. गुरु नानक

नानक पंथ के प्रवर्तक सिक्ख धर्म के आदि संस्थापक गुरुनानक देव इतिहास प्रसिद्ध व्यक्ति हैं। उनके द्वारा स्थापित सम्प्रदाय ने उन्हीं के जीवन काल में एक व्यापक संगठन का रूप धारण कर लिया था। राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उनका सम्प्रदाय और भी व्यापक सुदृढ़ और सुव्यवस्थित होता गया ।

नानकदेव समन्वयशील और उदार प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, उनमें अद्भुत संगठन शक्ति, क्षमाशीलता और दूरदर्शिता विद्यमान थी। उनका आविर्भाव लाहौर के निकटस्थ राइ भाई की तलवण्डी ग्राम में 15 अप्रैल, 1469 ई. हुआ था । उनके पिता का नाम कालूचन्द एवं माता का नाम तृप्ता था। वे आरम्भ से ही आत्म चिन्तन ईश्वर भक्ति और सन्त सेवा की ओर उन्मुख रहे। इनके दो पुत्र हुए, जिनके नाम थे श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द । पिता की भाँति - श्रीचन्द भी विख्यात साधु हुए और उन्होंने उदासी सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया। उन्होंने सभी दिशाओं में यात्राएँ की थी। इस सन्दर्भ में सभी धर्मों और मतों के अनुयायी सन्तों से उनकी भेंट होती रहती थी। धार्मिक रूढ़िवाद, जाति के संकीर्ण बन्धनों तथा अनाचारों के प्रति उन्होंने सदैव विरोध का स्वर उठाया। उनके काव्य में निर्गुण ब्रह्म के प्रति उच्च कोटि की भक्ति भावना विद्यमान है, किन्तु इसके साथ ही अन्य धार्मिक विचार धाराओं के लिये भी उनके मन में श्रद्धा थी ।

नानक ने हिन्दी, फारसी और संस्कृत का अध्ययन किया। उन्होंने घूम-घूम कर धार्मिक उपदेश दिया। गुरू नानक ने जगन्नाथपुरी, हरिद्वार, कुरूक्षेत्र, वाराणसी व कैलाश आदि धार्मिक स्थलों की यात्रा की। 

6. मलूकदास

संत मलूकदास का जन्म लाला सुन्दरदास खत्री के घर वैशाख कृष्ण 15 संवत् 1631 को कड़ा जिला इलाहाबाद में हुआ । इनकी मृत्यु 108 वर्ष की अवस्था में वैशाख कृष्ण 14 संवत् 1739 में हुई। ये औरंगजेब के समय में दिल के अन्दर खोजने वाले निर्गुण मत के नामी संतों में हुए हैं। गुरु तेगबहादुर सन्त मलूकदास का सत्संग करने कड़ा आये थे। मलूकदास की आराध्य कड़ा देवी थीं। कड़ा में उनकी समाधि व मलूकग्रन्थ स्थापित है। 

7. सुन्दरदास

सन्त दादूदयाल के शिष्य सुन्दरदास संवत् 1596 को दौसा नामक स्थान (जयपुर) में उत्पन्न हुए थे। छह वर्ष की आयु में वे सन्त दादू के शिष्य हुए और ग्यारह वर्ष की अवस्था में सन्त जगजीवन तथा रज्जब के साथ काशी की यात्रा की थी। इन्होंने संस्कृत, व्याकरण, साहित्य तथा दर्शन का गम्भीर अध्ययन कर, समस्त विद्याओं में पारंगत होकर 1625 ई. में शेखावटी लौट आये।

सुन्दरदास ने 42 ग्रन्थों की रचना की थी, जिनमें 'ज्ञान समुद्र' और 'सुन्दर विलास' अधिक प्रसिद्ध है। पुरोहित हरिनारायण शर्मा द्वारा सम्पादित 'सुन्दर ग्रन्थावली' उनकी सभी रचनाओं का प्रमाणिक संकलन है। उनकी रचनाओं में भक्ति योग साधना और नीति को प्रधान स्थान प्राप्त हुआ है। 

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