न्यायपालिका की परिभाषा, कार्य

न्यायपालिका सरकार का वह अंग है जिसका प्रमुख कार्य संविधान की व्याख्या करना तथा कानूनों को भंग करने वालों को दण्ड देना है। इस तरह कानूनों की व्याख्या करने व उनका उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को दण्डित करने की संस्थागत व्यवस्था को न्यायपालिका कहा जाता है। 

न्यायपालिका सरकार का ऐसा अंग है जो सरकार की निरंकुशता से नागरिकों को बचाता है, कानून की व्याख्या करता है और गलत कार्य करने वालों को दण्ड देता है। 

न्यायपालिका की परिभाषा

कुछ विद्वानों ने न्यायपालिका को निम्न रूप में परिभाषित भी किया है ‘:-
वाल्टन एच0 हेमिल्टन के अनुसार- “न्यायिक प्रक्रिया न्यायाधीशों के द्वारा मुकदमों का निर्णय करने की मानसिक प्रविधि है।”
लास्की के अनुसार-”न्यायपालिका अधिकारियों का ऐसा समूह है, जिसका कार्य, राज्य के किसी कानून विशेष के उल्लंघन की शिकायत, जो विभिन्न नागरिकों व राज्य के बीच एक दूसरे के खिलाफ होती है, का समाधान व फैसला करना है।”
रॉले के अनुसार-”न्यायपालिका सरकार का वह अंग है जिसका कार्य अधिकारों का निश्चय और उन पर निर्णय देना, अपराधियों को दण्ड देना तथा निर्बलों की अत्याचार से रक्षा करना है।”
ब्राइस के अनुसार-”न्यायपालिका किसी सरकार की उत्तमता को जांचने की कसौटी है।”

भारत में न्यायपालिका की उत्पत्ति 

भारत में न्यायपालिका की उत्पत्ति औपनिवेशिक काल से मानी जाती है। 1773 में रेगूलेटिंग एक्ट (अधिनियम) पारित होने के पश्चात भारत में प्रथम सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई। यह कलकता में स्थापित किया गया जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश एवं तीन अन्य जज थे। इनकी नियुक्ति ब्रिटिश क्राउन के द्वारा की गयी थी। पहली बार सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना मद्रास में हुई तथा इसके बाद बंबई में। 

न्यायपालिका के कार्य

न्यायपालिका ही हमें सरकार की निरंकुशता से बचाती है। किसी भी देश में न्यायपालिका के कार्य हो सकते हैं :-
  1. न्याय करना - जो व्यक्ति कानूनों का उल्लंघन करता है, उसे कार्यपालिका द्वारा पकड़कर न्यायालयों के सामने पेश किया जाता है। न्यायपालिका फौजदारी और दीवानी दोनों प्रकार के मुकद्दमों में न्याय करती है। दीवानी झगड़े प्राय नागरिकों के बीच में होते हैं, जबकि फौजदारी मुकद्दमों में एक तरफ सरकार तथा दूसरी तरफ नागरिक होते हैं। गवाही के आधार पर न्यायपालिका सभी झगड़ों में कानून के अनुसार अपराधी को उचित दण्ड देती है और प्रभावित व्यक्ति के साथ न्याय करती है।
  2. कानून की व्याख्या करना - न्यायपालिका कार्यपालिका तथा विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों की व्याख्या करती है। कई बार कानून अस्पष्ट व संविधान के विरूद्ध होते हैं। उनकी व्याख्या किए बिना उनको लागू करने का अर्थ होगा - मानव अधिकार व स्वतन्त्रताओं पर कुठाराघात। न्यायपालिका ही सर्वोच्च शक्ति की स्वामी होने के नाते ऐसे कानूनों की अन्तिम व्याख्याकार होती है।
  3. संविधान की रक्षा करना - संविधान की प्रमुख संरक्षक भी न्यायपालिका ही होती है। संविधान की मर्यादा और पवित्रता को बचाए रखने के लिए वह विधायिका तथा कार्यपालिका द्वारा निर्मित कानूनों को संविधान के विरुद्ध होने पर असंवैधानिक घोषित कर सकती है। 
  4. नागरिक अधिकारों व स्वतन्त्रताओं की रक्षा - प्रत्येक देश में न्यायपालिका ही नागरिक स्वतन्त्रता व अधिकारों की रक्षक मानी जाती है। न्यायपालिका इनकी रक्षा के लिए सरकार को निरंकुशता को रोकती है और किसी भी नागरिक या संस्था द्वारा मौलिक अधिकारों को हानि पहुंचाने के प्रयास में दण्डित करती है। इनकी सुरक्षा के लिए वह न्यायादेश भी जारी कर सकती है। यदि किसी व्यक्ति के अधिकारों व स्वतन्त्रता को कोई हानि पहुंचती है तो वह न्यायपालिका की शरण ले सकता है। मौलिक अधिकारों की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए न्यायपालिका कार्यपालिका तथा विधायिका द्वारा निर्मित कानूनों को भी अवैध घोषित करने का अधिकार रखती है। अत: न्यायपालिका नागरिक स्वतन्त्रता व अधिकारों का सुरक्षा कवच है।
  5. सलाहकारी कार्य - कई देशों में न्यायपालिका सरकार को परामर्श भी देती है। लेकिन न्यायपालिका की सलाह मानना या न मानना सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है। 
  6. राजनीतिक व्यवस्था को स्थायित्व व शांति कायम रखना - राजनीतिक व्यवस्था में विघटनकारी ताकतों के विरुद्ध न्यायपालिका ही कड़ा रुख अपनाती है। जो व्यक्ति या संस्था राजनीतिक व्यवस्था के स्थायित्व से छेड़छाड़ करता है, वह देशद्रोह का अपराधी माना जाता है। सरकार का तीसरा अंग होने के नाते राजनीतिक स्थायित्व को कायम रखने का प्रमुख उत्तरदायित्व न्यायपालिका का ही बनता है। 
  7. प्रशासनिक कार्य - न्यायपालिका को अपना प्रशासन चलाने के लिए अधीनस्थ कर्मचारी वर्ग को भी आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए वह स्थानीय पदाधिकारियों और अधीनस्ाि कर्मचारियों की नियुक्ति करती है जो प्रशासन में न्यायपालिका का सहयोग करते हैं और सभी आवश्यक कागजात व अभिलेख सुरक्षित रखते हैं ताकि आवश्यकता पड़ने पर उन्हें न्यायपालिका को उपलब्ध कराया जा सके।
  8. अन्य कार्य - न्यायपालिका अनेक दूसरे महत्वपूर्ण कार्य भी करती है। सार्वजनिक सम्पत्ति के प्रन्यासियों को नियुक्त करना, अल्पव्यस्कों के संरक्षकों को नियुक्त करना, वसीयतनामे तैयार करना, मृतक व्यक्तियों की सम्पत्ति का प्रबन्ध करना, नागरिक विवाह की अनुमति देना, विवाह विच्छेद की अनुमति देना, शस्त्र लाइसेंस जारी करना, निर्वाचन सम्बन्धी अपीलें सुनना, उच्च अधिकारियों को शपथ दिलवाना आदि कार्य भी न्यायपालिका द्वारा ही सम्पन्न किए जाते हैं।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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