चंदायन किसकी रचना है

सूफी ग्रन्थों में चंदायन सबसे पुरानी मानी जाती है। इसके प्रणेता मौलाना दाऊद थे। मौलान दाऊद का निवास स्थान रायबरेली (उ. प्र.) जिले के डलमऊ नामक नगर में था। इसकी पुष्टि इस दोहे से भी होती है-

दलमो नगर बसे नव रंगा।
ऊपरि कोट तले बहे गंगा ।

अवध प्रदेश के गजेटियर (1858) में डलमऊ नगर के इतिहास के बारे में जानकारी उपलब्ध है। इसके अनुसार फिरोज तुगलक ने डलमऊ नगर में मुस्लिम धर्म एवं विद्या के प्रचार-प्रसार के लिए एक विद्यालय की स्थापना की थी। यहीं पर 779 हिजरी में मौलाना दाऊद ने 'चंद्रनी' नामक ग्रन्थ का सम्पादन किया था।

मौलाना दाऊद कृत 'चंदायन' के नाम पर विद्वानों में बहुत मतभेद है। विद्वानों की मण्डली इसका नाम चंदायन, चंदावत, चांदायन, चंद, चूरक, चंद्रनी, चंद्रावती आदि बताते हैं। लेकिन उपलब्ध प्रतियों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इसका 'चंदायन' नाम ही अधिक प्रचलित है। माता प्रसाद ने इसका नाम चांदायन तथा डॉ. परमेश्वरी लाल ने इसका नाम चंदायन माना है। लेकिन विभिन्न उपलब्ध साक्ष्यों जैसे रायबरेली गजेटियर एवं बदायूँनी की 'मुन्तखब-उल-तवारिख' के आधार पर इसका नाम चंदायन ही उपयुक्त जान पड़ता है।

चंदायन के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। मिश्रबन्धु विनोद ने इसकी रचना का समय 1328 ई. माना है। डॉ. पीताम्बर दत्त के अनुसार चंदायन की रचना सन् 1440 ई. में हुई थी। डॉ. दत्त मौलाना दाऊद को अलाउद्दीन का समकालीन मानते हैं। अलाउद्दीन का सिंहासनारोहण 1296 ई. में हुआ था और इसकी मृत्यु 1316 ई. में हुई थी। अतः डॉ. दत्त द्वारा मौलाना दाऊद को अलाउद्दीन का समकालीन बताना इतिहास सम्मत नहीं है।

मौलाना दाऊद ने अपने आश्रयदाता के रूप में फिरोजशाह तुगलक की प्रशंसा की है। मौलाना दाऊद ने फिरोज तुगलक के साथ-साथ उसके मंत्री जौनाशाह की भी प्रशंसा की है। मुगलकालीन इतिहासकार बदायूँनी ने अपने ग्रन्थ मुन्तखब-उल-तवारिख' में लिखा है कि 1370 ई. में खानेजहाँ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जौनाशाह (जूनाशाह) अपने पिता का . उत्तराधिकारी बना।' इस सम्बन्ध में एक पद् द्रष्टव्य है -

बरिस सात से होइ इक्यासी ।
तिहि माह कवि सरसेउ भासी। 
ताहि फिरोज दिल्ली सुलतानू। 
जौना ताहि वजीर बखानू। 
मलिक वयां पूत उधरन धीरु। 
मलिक मुबारिक तहाँ के मीरु ।

उपर्युक्त उद्धरण से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि चंदायन की रचना मौलाना दाऊद ने फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल में की थी। इससे एक बात यह भी स्पष्ट होती है कि उस समय जौनाशाह फिरोज तुगलक का मन्त्री था। मौलाना दाऊद ने अपने ग्रन्थ को जौनाशाह को समर्पित किया है। संभवतः वह इसका आश्रयदाता भी था।

मौलाना दाऊद की रचना चंदायन की कथा एक प्रचलित लोकगाथा है। इसके पात्र एवं घटना निम्न वर्ग के समाज के साथ सम्बद्ध है। इसमें शुभाशुभ, शकुन, जादू-टोना, और मंत्रादि का भी उल्लेख है। घटना वर्णन पर अत्यधिक बल दिया गगा है। मौलाना दाऊद ने अपने ग्रन्थ चंदायन में प्रेम को सर्वोच्च स्थान प्रदान करने के साथ ही साथ इसे धर्म प्रचार का भी माध्यम बनाया। मौलाना दाऊद ने अपने ग्रन्थ की भाषा सरल एवं सुबोध रखी। जिससे जनसामान्य को समझने में कोई कठिनाई नहीं हुई। मौलाना दाऊद ने अपने काव्य की भाषा 'हिन्दवी' रखी है। इसकी लिपि फारसी है किन्तु इसमें फारसी लिपि की जटिलता नहीं है। साधारण जनता भी इसे आसानी से समझ सकती थी। चंदायन की भाषा पर टिप्पणी करते हुए परमेश्वरी लाल गुप्त ने कहा है- "चंदायन की भाषा ऐसी है कि जौनाशाह से लेकर दिल्ली की साधारण जनता भी उसे लिख एवं पढ़ सकती थी।'' वे आगे लिखते हैं कि चंदायन में कुछ ऐसी विशेषताएँ मिलती हैं, जो अन्य प्रेमाख्यानों में देखने को नहीं मिलली। निश्चित ही उसकी भाषा अनूठी है। मौलाना दाऊद ने चंदायन की रचना मसनवी के आधार पर की है। मसनवी शैली के अन्तर्गत कथा आरम्भ करने से पूर्व ईश्वरवंदना, मुहम्मद साहब की स्तुति, तत्कालीन बादशाह की प्रशंसा तथा आत्म-परिचय आदि दिया जाता है।

दाऊद की कृति चंदायन की नायिका चंदा है। चंदा के माध्यम से दाऊद ने भारतीय जन-जीवन का वर्णन बड़ी सुन्दरता से किया है। इसके पात्र समाज के शोषित वर्ग से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत घटनाओं के वर्णन पर अत्यधिक बल दिया गया है। रामचन्द्र शुक्ल मृगावती को प्रथम सूफी रचना और कुतुव्वन को प्रथम सूफी कवि मानते हैं। लेकिन उपलबन्ध साक्ष्यों के आधार मुल्ला दाऊद को प्रथम सूफी कवि एवं चंदायन को प्रथम सूफी रचना माना जाता है।

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