हिन्दू धर्म के सम्प्रदाय एवं मत

हिन्दू धर्म किसी सम्प्रदाय विशेष के विचारों को व्यक्त करने वाला अथवा केवल अलौकिक सत्ता के सम्बन्ध में विश्वासों को प्रकट करने वाला धर्म नही है। इसके सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द कहते हैं, 'अन्य धर्मों के समान हिन्दू धर्म भिन्न-भिन्न प्रकार के मत-मतांतरों पर आधारित विश्वास से सम्बन्धित नहीं है, वरन् हिन्दू धर्म प्रत्यक्ष अनुभूति अथवा साक्षात्कार का धर्म हैं। हिन्दू धर्म में आध्यात्मिकता का एक जातीय भाव निहित है। यह अनुभूति की वस्तु है। अपने द्वारा कही गई मनमानी बात, मतवाद अथवा युक्तिमूलक कल्पना नहीं हैं- चाहे वह कितनी ही सुन्दर क्यों न हो। आत्मा को ब्रह्मा के रूप में समझ लेना और उसका साक्षात्कार करना, यही धर्म है |

इरावती कर्वे ने अपने अध्ययन में उत्तरप्रदेश में, एक ही देवता के दो अवतारों में से पूर्व में राम की, तो पश्चिम में कृष्ण की विशेष रूप से पूजा की जाती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के अधिकांश नाम भी 'राम' मूलक होते हैं। दक्षिणी बिहार में महावीर अर्थात् हनुमान की विशेष रूप से पूजा की जाती है। एक ही सम्प्रदाय के अनुयायियों के धार्मिक जीवन में भी कतिपय अन्तर देखे जा सकते हैं। बैष्णवों की कुछ विविधताऐ ये हैं- पार्थसारथी के रूप में कृष्ण की पूजा केवल तमिलनाडू में ही की जाती है। नृसिंह भगवान के मन्दिर केवल महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश एवं कर्नाटक में ही पाए जाते हैं। नरसिम्हा, नरसैय्या जैसे पुरूष नाम भी इन्ही तीन प्रदेशों में पाये जाते हैं। महाराष्ट्र और कर्नाटक में विष्णु की 'विट्दू' नाम से भी पूजा की जाती है।

भारत वर्ष की संस्कृति के समान ही हिन्दू धर्म में भी अनेकता में एकता दिखाई देती है। समय-समय पर इस धर्म में अनेक परिवर्तन आए, जैसा कि इरावती कर्वे ने कहा है। आराध्य के नाम और पूजा-पद्धति में स्थान और समय के अनुसार विभिन्न स्थानों में विभिन्नता दिखाई देती है। परन्तु फिर भी समय के अनुसार हिन्दू धर्म में कई मत एवं सम्प्रदाय प्रचलन में आये। कृष्ण बल्लभ द्विवेदी ने अपनी पुस्तक में हिन्दुओं के मुख्य नौ सम्प्रदाय बताए हैं- आत्मवादी, सौरधारा, शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य अथवा योगनाथ, वैदिक और चर्वाक । इसमें से चर्वाक सम्पादय तो लुप्त हो गया। किन्तु बाकी सम्प्रदाय प्रचलन में हैं। आत्मावादी सम्प्रदाय आत्मतत्व को परम सत्य मानते हुए अपने धर्म सम्बन्धी सिद्धान्तों का वर्णन करते हैं। सौरधारा सम्प्रदाय के अनुसार, भगवान सूर्यदेव दी परमब्रह्म परमात्मा हैं, वही इस जगत के कर्ता-धर्ता है। शैव एवं वैष्णव सम्प्रदाय के समर्थक शिव एवं विष्णु भगवान को मानने वाले हैं। शैव और वैष्णव धाराओं के बाद महत्त्व की दृष्टि से तीसरा स्थान निर्विवाद रूप से शाक्त धारा का आता है। यह मत शैव धारा से बहुत कुछ समानता रखता है और इसकी दार्शनिक भूमि भी लगभग शैव सिद्धान्तों के समान ही है। सम्प्रदाय के रूप में गाणपत्य धारा का विशेष प्रचार महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्रप्रदेश में है। वहां अनेक गणेश मन्दिर स्थापित हैं योगनाथ की परम्परा हिन्दू-धर्म-प्रांगण की एक अति पुरातन विरासत है। उसकी जड़ें वेदों से जुड़ी हुई है। 'योग' को षड्दर्शन में भी गिना जाता है। वैदिक सम्प्रदाय को वैदिक काल में अलग सम्प्रदाय के रूप में मान्यता मिली। इस कर्मकाण्ड परक यज्ञीय वैदिक धारा का सबल रूप से समर्थन और पृष्ठ पोषण 'पूर्व मीमांसा दर्शन' में किया गया है |

वर्तमान में भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित शैव तथा वैष्णव सम्प्रदाय है।

शैव सम्प्रदाय

भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव कहते हैं। सबसे प्राचीन सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय को ही माना जाता है। शैव में शाक्त, नाथ, दसनाम, नग आदि उप सम्प्रदाय हैं। महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के चार सम्प्रदाय बताए गए हैं- शैव, पाशुपत, कालदामन और कापलिक । शैव मत का मूलरूप ऋग्वेद में रूद्र की आराधना में है। बारह रुद्रों में प्रमुख रूद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए।

शिव पुराण में शिव के दशावतारों के अतिरिक्त अन्य का भी वर्णन मिलता है, जो निम्नलिखित है- 1. महाकाल, 2. तारा, 3. भुवनेश, 4. षोडश, 5. भैरव, 6. छिन्नमस्तक गिरिजा, 7. धूम्रवान, 8. बगलामुखी, 9. मातंग तथा 10. कमल । ये दसों अवतार तन्त्र शास्त्र से सम्बन्धित है।

शास्त्रों में शैवों के निम्नांकित संस्कारों का उल्लेख मिलता है-
1. शैव सम्प्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं। वे शिवलिंग की ही पूजा करते हैं।
2. इसके संन्यासी जटा रखते हैं।
3. इनमें सिर तो मुडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते।
4. इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं।
5. इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं।
6. ये निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमण्डल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं।
7. शैव चन्द्र पर आधारित व्रत-उपवास करते हैं।
8. शैव सम्प्रदाय में समाधि लेने की परम्परा है।
9. शैव मन्दिर को शिवालय कहते हैं, जहां सिर्फ शिवलिंग होता है।
10. ये भभूति एवं आडा तिलक भी लगाते हैं।

शिव के अन्य ग्यारह अवतारों, 1. कपाली, 2. पिंगल, 3. भीम, 4. विरूपाक्ष, 5. विलोहित, 6. शास्ता, 7. अजपाद, 8. आपिर्बुध्य, 9. शम्भू, 10. चण्ड तथा 11. भव, माने गय हैं। इन अवतारों के अलावा शिव के दुर्वासा, हनुमान, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सनुटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा किरात तथा नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी शिव पुराण में हुआ, जिन्हें अंशावतार मान जाता है।

वैष्णव सम्प्रदाय

भगवान विष्णु और उनके अवतारों को मानने वाले सम्प्रदाय को बैष्णव सम्प्रदार माना गया। वैष्णव के अनेक उप सम्प्रदाय माने गए हैं। जैसे बैरागी, दास, रामानन्द, बल्लभ निम्बार्क, माध्य, राधाबल्लभ, सखी, गौड़ीय आदि । वैष्णव का मूलरूप आदित्य या सूर्य देव के आराधना में मिलता है। भगवान विष्णु का वर्णन भी वेदों में मिलता है। पुराणों में विष्णु पुराण प्रमुख है। विष्णु का निवास समुद्र के भीतर माना गया है।

शास्त्रों में वैष्णव के निम्नांकित संस्कारों का उल्लेख मिलता है-
1. वैष्णव मन्दिर में विष्णु, राम और कृष्ण की मूर्तियां होती हैं। वे एकेश्वरवाद के प्रति कठोर नहीं हैं।
2. इसके संन्यासी सिर मुंडाकर चोटी रखते हैं।
3. ये सभी अनुष्ठान दिन में करते हैं।
4. ये सात्विक मंत्रों को महत्त्व देते हैं।
5. ये जनेऊ धारण कर पीले वस्त्र पहनते हैं और हाथ में कमंडल तथा दंडी रखते हैं।
6. बैष्णव सूर्य पर आधारित व्रत और उपवास करते हैं।
7. बैष्णव सम्प्रदाय में दाह-संस्कार की रीति हैं।
8. बैष्णव चन्दन का तिलक लगाते हैं।

शास्त्रों में विष्णु के चौबीस अवतार बताए गए है, लेकिन प्रमुख दस अवतार माने जाते हैं- मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि । 24 अवतारों का क्रम इस प्रकार हैं- 1. आदि पुरुष, 2. चार सनत कुमार, 3. वराह, 4. नारद, 5. नर-नाराण, 6. कपिल, 7. दन्तात्रेय, 8. याज्ञ, 9. ऋषभ, 10. पृथु, 11. मत्स्य. 12. कच्छप, 13. धनवन्तरि. 14. मोहिनी, 15. नृसिंह, 16. हयग्रीव, 17. वामन, 18. परशुराम, 19. ब्यास, 20. राम, 21. बलराम, 22. कृष्ण, 23. बुद्ध, तथा 24. कल्कि (Agnihotri 2014b: 92) |

ऋग्वेद में भी बैष्णव विचारधारा का उल्लेख मिलता है। प्रमुख ग्रंथ है - ईश्वर संहिता, पाघतन्त्र, विष्णुसंहिता, शतपथ, ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, महाभारत, रामायण, विष्णु पुराण आदि ।

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