मृगावती के रचनाकार कुतुव्वन है। कुतुव्वन के बारे में अधिक जानकारी नहीं प्राप्त होती; क्योंकि उसने अपने काव्य में अपने बारे में कुछ अधिक नहीं कहा है। फिर भी उसके बारे में जानकारी प्राप्त करने में उसकी रचना महत्त्वपूर्ण है। कुतुव्वन के अनुसार उसने अपने ग्रन्थ की रचना सन् 1503 ई. में की थी। उसने यह भी कहा है कि उसने 2 माह 10 दिन में ही अपने ग्रन्थ को पूर्ण कर दिया था। कुतुव्वन का कहना है कि वह जिस कथा की चर्चा कर रहा है वह बहुत प्राचीन है; लेकिन उसने उसे नवीन रूप प्रदान कर दिया है। मृगावती का एक दोहा उद्धृत है -
पहले ही जे दुइ कथा अही।योग सिंगार विरह रस कही।पुनि हम घोली भरख सब कता।लघु दीरघ कौतुक नहीं रहही।पहिले पख भादो छठी वही ।नौ सो नव जब संवत अही।रेअ मोहर्रम चांद उजियारी।यह कवि कही पूरी संवारी।गाहा दोहा अरेत अरल। सोरठा चौपाई के सरल ।
दोय मास दस दिन, यह रे दो रावे जाम।एक एक बोल मोती जस पुरवा इकठा मन चित लोय।
उपर्युक्त दोहे से यह स्पष्ट होता है कि कुतुव्वन ने अपने ग्रन्थ को हिजरी सन् 909 भादों की छठी को पूरा किया था। इस उद्धरण से यह स्पष्ट होता है कि कवि ने दोहे, सोरठा एवं चौपाई का भी इस्तेमाल बड़ी सूक्ष्मता से किया है।
कुतुव्वन किस शासक के समकालीन थे और इनके आश्रयदाता कौन थे ? इसके सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। कुतुव्वन ने अपने आश्रयदाता की प्रशंसा में लिखा है-
साह हुसैन आहि बड़ राजा ।छत्र सिंहासन उनको छाजा ।पंडित औ बुधिवन्त समाना।पढ़े पुरान अरथ सब जाना।
विद्वान लोग कुतुव्वन के आश्रयदाता हुसैनशाह को लेकर एकमत नहीं हैं। रामचन्द्र शुक्ल इन्हें जौनपुर का शासक मानते हैं। जबकि डॉ. रामकुमार वर्मा हुसैनशाह को शेरशाह का पिता। डॉ. रामकुमार वर्मा का तर्क उचित नहीं जान पड़ता; क्योंकि शेरशाह के पिता का नाम हसन खाँ था। वह जागीरदार था, सुल्तान नहीं। रामपूजन तिवारी श्री सुकुमार सेन, परशुराम चतुर्वेदी आदि विद्वान् रामचन्द्र शुक्ल के तर्क को उचित मानते हैं। श्री सुकुमार सेन का कहना है कि कुतुव्वन जौनपुर के शासक हुसैनशाह . शर्की के दरबार में रहता था। उसी के साथ वह बंगाल गया और वहाँ के उदार शासक हुसैनशाह के आश्रय में उसने हिजरी सन् 909 में मृगावती की रचना की। लेकिन श्याम मनोहर पाण्डेय ने इस मत का खण्डन किया है। उनके अनुसार जो सुल्तान कभी सिंहासन पर ही न बैठा हो उसके यशगान में किसी कविता की रचना नहीं की जा सकती है। लेकिन इनका खण्डन तर्कसङ्गत नहीं है; क्योंक उस समय हुसैनशाह नाम के दो राजा राज्य कर रहे थे। एक जौनपुर में शर्की वंश का हुसैनशाह तथा दूसरा बंगाल का। उस समय जौनपुर विद्या का महान केन्द्र था। इसी कारण उसे 'पूर्व का सिराज' कहा जाता था। हुसैनशाह शर्की की मृत्यु के बाद कुतुव्वन जो उसका आश्रित कवि था उसके दरबार को छोड़कर उदार विचारों वाले बंगाल के शासक हुसैनशाह के दरबार में चला गया। हुसैनशाह ने 'सत्य वीर' नामक आन्दोलन चलाया था। कुतव्वन ने यहीं पर अपने ग्रन्थ मृगावती की रचना हुसैनशाह की प्रशंसा में कीं।
कुतुवन की मृगावती की कहानी प्रेम पर आधारित है। इसमें चन्द्रगिरि के राजा गणपति देव के पुत्र राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूपमुरारि की पुत्री मृगावती की प्रेमकथा का वर्णन किया गया है। इसमें नायिका को उड़ने की विद्या में निपुण बताया गया है। वह न केवल अपने प्रेमी को धोखा दे सकती है, अपितु अपने पिता के देहान्त हो जाने पर उसकी जगह राज्य का भार भी सँभालने लग जाती है। इसमें भी कौतूहलवर्धन के लिये घटनाओं पर अत्यधिक बल दिया गया है। लेखक शैली के प्रति अपेक्षाकृत अधिक सतर्क रहाहै। इसमें जनभाषा अवधी को अपनाया गया है।
संदर्भ -1. रामचन्द्र शुक्ल-हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृष्ठ-66.
2. रामकुमार वर्मा, हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृष्ठ-307.
3. रामपूजन तिवारी, हिन्दी सूफी काव्य की भूमिका, पृष्ठ-170.
4. श्री सुकुमार सेन-इस्लामी बंगला साहित्य, पृष्ठ-8.
5. परशुराम चतुर्वेदी - हिन्दी के सूफी प्रेमाख्यान, पृष्ठ-65.
6. श्याम मनोहर पाण्डेय, मध्ययुगीन प्रेमाख्यान, पृष्ठ-65.
7. रामचन्द्र शुक्ल - हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृष्ठ-66.
8. डॉ. श्रीनिवास बत्रा - हिन्दी और फारसी सूफी काव्य का तुलनात्मक अध्ययन, पृष्ठ-71.