सूफी सम्प्रदायों का संक्षिप्त परिचय (चिश्ती, सुहरावर्दी, कादरी, नक्शबंदी तथा शत्तारी)

सूफी सम्प्रदाय का भारत में प्रवेश 12वीं सदी के अन्त में हुआ था। लेकिन सूफी साधक इससे पहले ही भारत से भलीभाँति परिचित थे। इन साधकों ने अपने प्रभाव में लाकर अनेक लोगों को सूफी विचारधारा में दीक्षित किया। इन दीक्षित लोगों ने आगे चलकर सूफी सम्प्रदाय में अनेक सम्प्रदायों और उप-सम्प्रदायों का श्रीगणेश किया। प्रायः इन सम्प्रदायों का नामकरण भी इनके प्रवर्तक सूफियों के नाम पर ही हो गया। लेकिन प्रमुख सूफी सम्प्रदाय हजरत मुहम्मद को ही अपना जन्मदाता मानते हैं और हजरत मुहम्मद के बाद के चौथे खलीफा हजरत अली से अपना सम्बन्ध स्थापित करते हैं।'

विद्वान् लोग प्रायः सभी सूफी सम्प्रदायों की उत्पत्ति चार पीरों से हुई मानते हैं।

विद्वानों ने चारों पीरों के नाम इस प्रकार बताए हैं- (1) हजरत मुर्तजा अली (ये पैगम्बर के दामाद थे) (2) ख्वाजा हसन बसरी (ये अली के बनाए खलीफा थे) 3. ख्वाजा हबीब आजमी (ये हसन के द्वारा फलीफा मनोनीत किए गए थे) 4. अब्दुल वाहिद बिन जैद कूफी ।

लेकिन इन चारों पीरों के नामों पर विद्वान एकमत नहीं हैं। दूसरे विद्वानों ने अन्य चार नाम गिनाए हैं, जो ये हैं- (1) इमाम हसन (2) हमाम हुसैन (3) ख्वाजा हसन बसरी (4) कामिल। इन चारों पीरों से चौदह खानकाहों की उत्पत्ति हुई। इन चारों पीरों के नामों पर भी विद्वानों में मतैक्य नहीं है; फिर भी सभी विद्वान हसन अल बसरी के नाम पर एकमत हैं। अली के नाम के बाद उन्हीं का स्थान है।

'सूफीमत साधना और साहित्य' ग्रन्थ में रामपूजन तिवारी ने बारह और चौदह सूफी सम्प्रदाय होने का उल्लेख किया है। ए. जे. आखरी ने भी चौदह सूफी सम्प्रदायों का उल्लेख किया है। अबुल फजल ने भी अपने ग्रन्थ में चौदह सूफी सम्प्रदायों का उल्लेख किया है। ये हैं- (1) चिश्ती (2) सुहरावर्दी (3) हबीबी (4) तफूरी (5) करवी (6) सम्बी (7) जुनैदी (8) काजकनी (१) तूसी (10) फिरदौसी (11) जैदी (12) इमादी (13) सरहमी (14) हुवेरी। परन्तु भारत में प्रमुख रूप से पाँच सूफी सम्प्रदायों एवं उनके अनुयायियों का ही विस्तृत वर्णन मिलता है। ये प्रमुख सम्प्रदाय हैं - चिश्ती, सुहरावर्दी, कादरी, नक्शबंदी तथा शत्तारी । इनमें चिश्तिया और सुहरावर्दी का सम्बन्ध हबीबी से था। कादिरिया तरतवसिया का ही एक विकसित रूप है और नक्सबंदिया जुनैदिया से निकली हुई शाखा मानी जाती है। ख्वाजा हसन निजामी के अनुसार सहुरावर्दी सम्प्रदाय ने भारत में सर्वप्रथम प्रवेश किया और इसने सिन्ध को अपनी साधना का केन्द्र बनाया था।

प्रमुख सूफी सम्प्रदाय

भारत में प्रमुख रूप से पाँच सूफी सम्प्रदायों एवं उनके अनुयायियों का ही विस्तृत वर्णन मिलता है। ये प्रमुख सम्प्रदाय हैं - चिश्ती, सुहरावर्दी, कादरी, नक्शबंदी तथा शत्तारी । 

(1) चिश्ती सम्प्रदाय

ख्वाजा इसहाक शामी चिश्ती को चिश्ती सम्प्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है।5 कुछ विद्वान् ख्वाजा अबू अब्दाल को इसका संस्थापक मानते हैं। एशिया माइनर से आकर चिश्त (खुरासान) में बस जाने के कारण इस सम्प्रदाय का नाम चिश्तिया पड़ा।

भारत में चिश्ती सम्प्रदाय की स्थापना का श्रेय मुइनुद्दीन चिश्ती को है। इनका जन्म 1141 ई. में ईरान के सिस्तान नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम सैय्यद गयासुद्दीन था जो धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। कहा जाता है कि पिता की मृत्यु के बाद एक बार मुइनुद्दीन अपने बाग में बैठे थे। उसी समय संयोग से उधर से शेख इब्राहीम कुंदुजी उधर से पधारे और उन्होंने बालक को आध्यात्मिक दीक्षा दी। 

2. सुहरावर्दी सिलसिला

सुहरावर्दी सम्प्रदाय के संस्थापक शिहावउलदीन उमर बिन अब्द अल्लाह अल सुहरावर्दी थे। भारत में इसके प्रवर्तक शेख बहाउद्दीन जकारिया थे। इनका जन्म सुल्तान के  कोट अरोर नामक स्थान पर 1182 इ. में हुआ था। बाल्यावस्था से ही ये सरल स्वभाव के थे। इस कारण इनका नाम बहाउद्दीन (देवदूत) रखा गया था।इनके आध्यात्मिक गुणों से - प्रभावित होकर बाबा फरीद ने इन्हें 'शेख-उल-इस्लाम' की उपाधि दी थी। एक कहानी के अनुसार इल्तुतमिश के समय में कुलाचा के विद्रोह की सूचना इन्होंने पहले ही दे दी थी। इन्होंने खुरासान, बुखारा तथा मदीना में अपनी शिक्षा पूर्ण की थी। बाद में ये बगदाद जाकर शेक शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के शिष्य हो गये। शेख शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के आदेश का पालन करते हुए ये भारत आये और यहीं बस गये। इनका विश्वास संतुलित जीवन के प्रति था। इन्होंने सुहरावर्दी संगठन को सुदृढ़ किया। जकारिया चिश्ती सम्प्रदाय के विपरीत राजनीति में रुचि लेते थे। ये शासक वर्ग से घनिष्ठ सम्बन्ध रखते थे। सुहरावर्दी सिलसिले के खानकाह अपनी चमक-दमक के लिए प्रसिद्ध थे। इनमें केवल अमीरवर्ग ही प्रवेश कर सकता था, साधारण वर्ग का इसमें प्रवेश वर्जित था। शेख जकारिया स्वयं कहा करते थे कि वे साधारण जनता पर विश्वास नहीं करते। उच्चवर्ग अपनी योग्यता से उनकी कृपा प्राप्त करता है। चिश्ती सम्प्रदाय के खिलाफ इसके साधक सम्पत्तिशाली थे। उन्होंने अपने जीवन में काफी धन सञ्चय किया। इनका विश्वास धन के वितरण में नहीं था, बल्कि ये उसके संग्रह में विश्वास रखते थे।

सुहरावर्दी सम्प्रदाय आगे चलकर छिन्न-भिन्न हो गया। इसमें अनेक सम्प्रदाय एवं उपसम्प्रदाय बन गये, जो निम्नलिखित हैं -

बशरा सम्प्रदाय
जलाली शाखा, मजदूमी शाखा, मीरानशाही शाखा, इस्माइल शाखा, दौलाशाखा

(सं) सैय्यद जलालुद्दीन मीर मुहम्मद हाफिज इस्माइल,  स्थूलशाही शाखा, मजदूम जहाँनिया, शाहदरिया, नियामत उल्लाह
(1) शेख जलालुद्दीन शाहमीर कुखारी सुर्खपोश
(2) अहमद कबीर
(3) अबूमुहम्मद

फिरदौसी शाखा
(सुहरावर्दी की लघु शाखा)
(1) बद्रउद्दीन समरकंदी (13वीं सदी)
(2) ख्वाजा कनुद्दीन
(3) अहमद याहिया मनेरी

बेशरा सम्प्रदाय
सुहागिमा शाखा
लाल शाह (1) मुसाशाही सुहागा
वजिया शाखा
(1) लाल शाहवान

3. कादिरी सम्प्रदाय

अब्दुल कादिर अल जीलानी सूफीमत में कादिरी सिलसिले के संस्थापक थे । फारस के जीलान नामक स्थान पर सन् 1078 ई. में इनका जन्म हुआ था। कादिरी सिलसिले के साधक प्रतिक्रियावादी थे और सनातनपंथी इस्लाम के समर्थक थे। अल जिलानी की मृत्यु 1165 ई. में हुई थी। ये सभी सूफी साधकों के आदरणीय रहे ।

भारत में कादिरी सम्प्रदाय के मूल संस्थापक के विषय में मतभेद है। इतिहासकारों ने इस सम्प्रदाय के वास्तविक संस्थापकों में सैय्यद अहमद बगदादी, सैय्यद युसुफद्दीन, सैय्यद अहमद गौस इत्यादि के नाम दिये हैं। वैसे भारत में इस शाखा के प्रवर्त्तक मखदूम मुहम्मद गौस माने जाते हैं; क्योंकि इन्होंने ही यहाँ इसे पहली बार संगठित किया था। 42 दिल्ली के सुल्तान सिकन्दर लोदी ने अपनी पुत्री का विवाह इनसे कर दिया था। ये 1428 ई. में भारत आये थे और कच्छ में बस गये थे जहाँ 1517 ई. में इनकी मृत्यु हो गयी थी ।

4. नक्शबंदी सिलसिला

इस शाखा की स्थापना 14वीं शताब्दी में ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी ने तुर्किस्तान में की थी। लेकिन रशहात ऐन अल हयात के अनुसार इसके प्रवर्तक ख्वाजा उबैदुल्ला थे। 49 भारत में नक्शबंदी शाखां को प्रचारित करने का श्रेय ख्वाजा बाकी विल्लाह एवं उनके शिष्य शेख अहमद फारुकी सरहिंदी को था। ये लोग तरह-तरह के आध्यात्मिक तत्त्वों के नक्शे बना कर उसमें रङ्ग भरा करते थे, जिसके कारण उनके अनुयायी को नक्शबंदी कहा गया ।

भारतीय सूफी सम्प्रदायों के अतिरिक्त कुछ अन्य उपसम्प्रदाय 

चार भारतीय सूफी सम्प्रदायों के अतिरिक्त कुछ अन्य उपसम्प्रदाय भी थे। जो निम्नलिखित हैं-

शत्तारी सम्प्रदाय भारत में शत्तारी सम्प्रदाय का प्रवर्तक शाह अब्दुल शत्तारी को माना जाता है। उनको 'हजरत उद्दौला' के नाम से भी जाना जाता है। शत्तार का शाब्दिक अर्थ 'गीत' है परन्तु यह शब्द उन सूफियों के लिए प्रयोग किया गया, जो कि कम से कम समय में 'फना' एवं 'बका' की स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। अब्दुलशाह को सर्वप्रथम इस स्थिति को प्राप्त करने के कारण शत्तारी की उपाधि से विभूषित किया गया था। 61 अब्दुलशाह शेख शिहाबुद्दीन सोहरावर्दी के वंशज थे। इन ने भारत आने के बाद अपना निवास जौनपुर में बनाया। कुछ समय बाद शर्की सुल्तानों से सम्बन्ध में शिथिलता आने के बाद ये मालवा चले गये। वे 1428-29 ई. तक माँडू में रहे। इनके शिष्यों में सर्वप्रथम नाम शेख कजान का आता है। इनके दूसरे शिष्य हाफिज जौनपुरी तथा इनके शिष्य शेख बोधन काफी लोकप्रिय रहे। इन्होंने शत्तारी सम्प्रदाय के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका अदा की। लेकिन शत्तारी सम्प्रदाय को लोकप्रियता के चरम पर पहुँचाने का श्रेय शेख मुहम्मद गौस तथा उसके भाई शेख बहलोल को है। मुहम्मद गौस बाबर के समकालीन थे, जबकि इनके भाई हुमायूँ एवं अकबर के समकालीन थे। मुहम्मद गौस को रहस्यवाद के बारे में सूक्ष्म जानकारी थी और ये खुदा से काफी नजदीक थे। इन्होंने 'जवाहिर-ए-खासा' तथा 'वहारुल हमात' नामक दो महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की थी। मुहम्मद गौस की मृत्यु के बाद उसके शिष्य शाह वजीहउद्दीन ने गुजरात में शत्तारी सम्प्रदाय का श्रीगणेश किया था। इन्होंने लगभग तीन सौ ग्रन्थों की रचना की थी। 

इस सम्प्रदाय के संत 'बहादत-उल-वजूद' में विशेष आस्था रखते थे। ये योग तथा साधना करते थे तथा अद्वैत वेदान्त का अध्ययन भी करते थे। इस विचारधारा का मुख्य केन्द्र बिन्दु 'प्रेम' था।

2. कलंदरिया सम्प्रदाय - 'कलंदर' शब्द को सर्वप्रथम अब्दुल अजीज मक्की ने ग्रहण किया था। इनके बारे में कहा जाता है कि ये मुहम्मद साहब के साथियों में थे। अब्दुल अजीज की वृद्धावस्था में बाल गिर गए थे। इनके अनुयायियों ने भी अपने बाल मुंडवाने की परम्परा आरम्भ कर दी। ये जब दिल्ली आये तो इनकी मुलाकात बख्तियार कान्नी से हुई। बख्तियार कामी ने चिश्ती सम्प्रदाय में इनको दीक्षित किया। इन्होंने भी बख्तियार काकी को कलंदरिया शाखा में दीक्षित किया।63 इस प्रकार चिश्ती सम्प्रदाय में चिश्ती कलन्दरी उपशाखा तथा कलन्दरी शाखा में कलन्दरी चिश्तिया उपशाखा का जन्म हुआ।

भारत में कलंदरी शाखा को आरम्भ करने का श्रेय नजमुद्दीन गयासुद्दहर कलन्दर को है। 64 ये निजामुद्दीन औलिया के शिष्य थे। ये उनके आदेश पर इस शाखा का प्रचार करने भारत आये। इनके बारे में कहा जाता है कि ये दो सौ वर्षों तक जीवित रहे। इनकी मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन कलन्दर इनके वारिस बने। इनकी उपाधि 'सर अन्दाज गौस' थी। इनके बारे में यह प्रचलित है कि ईश्वर आराधना के समय इनका सिर धड़ से अलग हो जाता था। इनकी मृत्यु 145 वर्ष में 1518 ई. में हुई। 65 कलन्दरी शाखा के संतों में शरफुद्दीन अली कलन्दर पानीपत का नाम भी प्रसिद्ध था।

3. मदारिया शाखा -  आबू इसहाक शामी के पुत्र वदीउद्दीन शाह मदार इस शाखा के संस्थापक थे। ये जाति से यहूदी थे। बचपन में ही इनके माता-पिता की मृत्यु हो गयी थी। इन्होंने अनेक धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन किया। गुरु की आज्ञा पर वे मक्का में कुछ समय व्यतीत करने के बाद ये मदीना चले आये। यहाँ से अजमेर आये और मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का दर्शन किया। इन्होंने कानपुर के समीप स्थित मकनपुर नामक स्थान पर रहकर मदारिया शाखा का प्रचार किया। यहाँ 1485 ई. में इनकी मृत्यु हो गयी। शाह मदार एकान्त को पसंद करते थे किन्तु प्रत्येक सोमवार को वे अपने भक्तों को आशीर्वाद देते थे। इनकी मजार पर स्त्रियों को नहीं जाने दिया जाता था; क्योंकि कहा जाता है कि स्त्रियों के जाने से उनके शरीर में तीव्र वेदना होती थी। आज भी इनकी मंजार पर हजारों हिन्दू-मुस्लिम श्रद्धा से अपने सिर नवाते हैं।

4. शादविलिया सम्प्रदाय -  इस सम्प्रदाय की स्थापना आबू मदमान ने की थी; किन्तु इसके प्रचार-प्रसार का श्रेय अली शादविली को है। इस सम्प्रदाय के समर्थक अधिकतर टर्की, रूमानिया तथा उत्तरी अफ्रीका में पाये जाते हैं।

5. निमातुल्लादिया सम्प्रदाय - यह सम्प्रदाय भारत में ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ था। वर्तमान में इसके अनुयायी ईरान में पाये जाते हैं।

6. तेजनियाँ सम्प्रदाय - अहमद तिज्मनी इसके संस्थापक थे।

7. रिफाई सम्प्रदाय -  इसकी स्थापना अहमद रफी ने सन् 1175 में की थी।

8. सुन्सिया सम्प्रदाय -  इसकी स्थापना 1237 में शेख अब्दुल ने की थी। इसके अनुयायी वर्तमान में 30 पू० अफ्रीका में पाये जाते हैं। यह सम्प्रदाय कादिरिया सम्प्रदाय की एक उप-शाखा के रूप में विकसित हुआ था।

9. मौलवी सम्प्रदाय - इसकी स्थापना जलालुद्दीन अमी ने की थी। इसके अनुयायी विशेषकर टर्की में पाये जाते हैं।

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