गैट का उद्देश्य और सिद्धांत - GATT

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी थी तो इस चरमराती हुई अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए तथा 1930 की विश्व व्यापी मन्दी की समस्याओं से निजात पाने के लिए जुलाई 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में हैमशायर नामक स्थान पे यह तय हुआ कि तीन अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं स्थापित की जाए।

(क) विश्व बैंक (I.B.R.D.) (ख) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F.) (ग) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन (I.T.O.) पहली दो संस्थाए विश्व बैंक व अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तो 27 दिसम्बर 1945 को स्थापित हो गई लेकिन अमेरिका की सीनेट में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन का विरोध होने के कारण इसकी स्थापना न हो सकी।

लेकिन 23 राष्ट्रो ने (भारत सहित) 30 अक्टूबर 1947 में एक समझौते पर हस्ताक्षर कर सीमा शुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौते (G.A.T.T.) की स्थापना की। इस समझौते का उद्देश्य समस्त देशों में स्वतन्त्र व्यापार को बढ़ावा देना था। यह समझौता 1 जनवरी 1948 से लागू किया गया। इस समझौते में यह तय किया गया कि सदस्य राष्ट्रों के बीच एक बैठक प्रत्येक पाँच वर्ष पर होगी जिसके अन्तर्गत प्रत्येक चक्र में प्रशुल्क की दरें कम की जाएगी। धीरे-धीरे प्रशुल्क की दरें इतनी कम हो जाएगी कि प्रशुल्क शून्य के बराबर हो जाएगा इस व्यवस्था के स्थापित हो जाने पर सदस्य राष्ट्रों के व्यापार के मार्ग में अब तक प्रशुल्क की दीवारों के कारण जो कठिनाई होती थी वह समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार प्रशुल्क की दीवारों को कम करने के लिए क्रमशः प्रत्येक पाँच वर्ष पर कुल 8 सम्मेलन किए जिनमें सदस्य देशों ने आपस में सीमा शुल्क कम करने के लिए द्विपक्षीय समझौते किए जिससे कि उन देशों के व्यापार में वृद्धि हो सके। प्रारम्भ में 'गैट' की स्थापना एक अस्थायी प्रबन्ध के रूप में की गई थी किन्तु कालान्तर में यह एक स्थायी समझौता बन गया। गैट का मुख्यालय जेनेवा में था। 12 दिसम्बर 1995 को गैट का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया इसकी जगह 1 जनवरी 1995 से स्थापित विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.) ने ले ली है।

गैट का उद्देश्य-

गैट की स्थापना के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य थे-

(1) व्यापारिक क्षेत्र से पक्षपात हटाकर सभी देशों को बाजार की प्राप्ति के लिए समान अवसर प्रदान करना।

(2) वास्तविक आय वृद्धि तथा वस्तुओं के लिए प्रभावकारी माँग को बढ़ाना।

(3) पारस्परिक लाभ के लिए व्यापारिक तरकरों एवं रूकावटों को कम करना तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से भेदभाव मिटाना।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सम्बन्धी समस्याओं का पारस्परिक सहयोग व परामर्श द्वारा सुविधापूर्वक सुलझाना आदि।

(5) विश्व में समग्र दृष्टिकोण के आधार पर सम्पूर्ण समाज के लोगों का जीवन-स्तर ऊचाँ उठाना।

इन उपर्युक्त वर्णित उद्देश्यों की प्राप्ति स्वतन्त्र और बहुपक्षीय व्यापार को प्रोत्साहित करके अप्रत्यक्ष रूप से की जाती थी। गैट चार्टर में यह स्पष्ट किया गया था कि गैट के किसी भी सदस्य देश द्वारा किसी दूसरे देश के उत्पादों के लिए जो लाभ, अनुग्रह अथवा छूट दी जाए, वह बिना किसी शर्त के समस्त सदस्य देशों के सम्बन्धित उत्पदों के लिए स्वतः दी जाएगीं इस प्रकार 'सबसे अधिक प्रिय राष्ट्र' का सिद्धान्त स्पष्ट करता है कि प्रत्येक राष्ट्र को सर्वाधिक अनुग्रह प्राप्त राष्ट्र समझा जाना चाहिए। सदस्य देशों के मध्य द्विपक्षीय आधार पर किए जाने वाले समझौते के अन्तर्गत जो रियायतें दी जाती हैं, वे सभी सदस्य देशों को दी जानी चाहिए। सीमा संघों तथा स्वतन्त्र व्यापार क्षेत्रों की स्थापना की अनुमति इस शर्त पर दी जा सकती है कि उनके फलस्वरूप सम्बन्धित क्षेत्रों में व्यापार सुविधाजनक हो तथा अन्य सदस्य राष्ट्रों के व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ते हो।

गैट वार्ताओं के दौर-

गैट के स्थापना वर्ष 1947 से उनके अन्त तक इसकी वर्ताओं के आठ चक्र दौर आयोजित किए गए इनमें से प्रथम छः चक्रों का सम्बन्ध मुख्य रूप से प्रशुल्क दरों में कमी करने से रहा था। गैट वार्ता के सातवें दौर में गैर प्रशुल्क बाधाओं चक्र अपने पूर्व सम्मेलनों से पूर्णतः भिन्न रहा, क्योंकि इस वार्ता में अनेक नयें विषयों को सम्मलित किया गया। उरूग्वे चक्र नाम से प्रसिद्ध इस वार्ता दौर के परिणामस्वरूप ही गैट के स्थान पर एक अधिक शक्तिशाली संगठन 'विश्व व्यापार संगठन' 1 जनवरी 1995 से अस्तित्व में आ गया।

उरूग्वे राउण्ड तथा डंकल प्रस्ताव-

गैट के आँठवे राउण्ड अर्थात उरूग्वे राउण्ड का प्रारम्भ सितम्बर 1986 में हुआ। इस दौर की वार्ता की की विभिन्न बैठकों मांट्रियल, जेनेवा, ब्रसेल्स आदि देशों में सम्पन्न की गयी। इस वार्ता की समाप्ति के लिए चार वर्षो की अवधि (1986-1990) निर्धारित की गई थी। इस प्रकार उरूग्वे राउण्ड को दिसम्बर 1990 की ब्रसेल्स बैठक में अपने निष्कर्ष देने थे। किन्तु यह वार्ता अनेक विवादों के कारण लम्बी चलती गयी अन्ततः गैट के तत्कालीन महानिदेशक आर्थर डंकल को इस समस्या के समाधान का दायित्व सौंपा गया। 20 दिसम्बर 1991 को आर्थर डंकल ने नए सिरे से सदस्य देशों के सामने आपसी सहमति के लिए एक विस्तृत दस्तावेज प्रस्तुत किया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि इन प्रस्तावों को एक साथ इनके मूल रूप में स्वीकार कर लिया जाना चाहिए। यद्यपि अधिकांश सदस्य देशों ने इन्हें एक रूप में स्वीकार कर लेने में कठिनाई जाहिर की तथापि उरूग्वे दौर की वार्ता को इन प्रस्तावों पर आधारित करके जारी रखना स्वीकार किया गया इन प्रस्तावों को ही 'डंकल प्रस्ताव' अथवा 'ड्राफ्ट फाइनल एक्ट' कहा जाता है। प्रस्ताव के निष्कर्षो के लिए अन्तिम रूप से 15 दिसम्बर 1993 को जेनेवा में स्वीकृति प्रदान कर दी गयी। 15 दिसम्बर 1994 को मोरक्को के मराकश नगर में 124 सदस्य देशों द्वारा समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए गए।

गैट की आंठवें दौर की वार्ता में कुल 15 क्षेत्रों को सम्मलित किया गया था। जिन्हें दो भागों में विभाजित किया गया। पहला भाग व्यापारिक वस्तुओं से सम्बन्धित था जबकि दूसरा भाग सेवाओं से सम्बन्धित था।

पहले भाग में निम्नलिखित 14 मदें शामिल थी (1) प्रशुल्क (2) गैर प्रशुल्क उपाय (3) उष्णकटिबन्धित उत्पाद (4) राष्ट्रीय संसाधनों पर आधारित उत्पाद (5) वस्त्र एवं कपड़ा (6) कृषि (7) गैट धाराएं (8) सुरक्षा (१) बहुपक्षिय व्यापार समझौते तथा व्यवस्थाएँ (10) सब्सिडी (11) विवाद निपटारे (12) बौद्धिक सम्पदा अधिकार के व्यापार सम्बन्धी पहलू (13) व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय (14) गैट कार्य पद्धति।

द्वितीय भाग में सेवाओं के व्यापार को अलग से वार्ता हेतु सम्मिलित किया गया। आगे चलकर उपर्युक्त वर्णित 14 क्षेत्रों को निम्नलिखित सात क्षेत्रों के अन्तर्गत पुनः विभाजित किया गया। (1) बाजार पहुँच (2) कृषि (3) वस्त्र (4) ट्रिम्स (5) ट्रिप्स (6) सेवाओं का व्यापार तथा (7) संस्थागत मामले।

उपयुक्त विषयों पर आपसी विचार-विमर्श के बाद आम सहमति प्राप्त करनी थी किन्तु ऐसा नही हो सका वस्तुतः बौद्धिक सम्पदा अधिकार के व्यापार सम्बन्धी पहलू (TRIPS) और व्यापार सम्बन्धी निवेश उपायों (TRIMS) तथा सेवाओं को गैट के अन्तर्गत ले आने के प्रश्न पर ही मुख्य विरोध उत्पन्न हो गया। आठवें दौर के पहले तक इन मुद्दो को गैट के अन्तर्गत सम्मिलित नही किया गया था। अमेरिका द्वारा प्रस्तुत इन प्रस्ताव का भारत सहित अनेक विकासशील देशों ने विरोध किया। इन विषयों के सम्बन्ध में विकासशील देशों का दृष्टिकोण यह रहा था कि यदि सेवा, निवेश एवं प्रबन्ध जैसे क्षेत्रों में विकसित देशों को मुक्त व्यापार करने की छूट दे दी जाएगी तो विकासशील देशों में इन क्षेत्रों का विकास रूक जएगा। किन्तु विकसित देश यह चाहते थे कि विकासशील देश उन्हें प्रत्येक क्षेत्र में मुक्त व्यापार की सुविधा प्रदान करे, ताकि उनके देशों के ये अग्रणी क्षेत्र (सेवा, बौद्धिक सम्पत्ति तथा निवेश) विकासशील देशों के इन क्षेत्रों को अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा से बाहर करके अपना पूर्ण एकाधिकार स्थापित कर सके।

अन्ततः 15 अप्रैल 1994 को मराकश में 123 सदस्य राष्ट्रों ने गैट के उरूग्वे चक्र समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए व इसके परिणामस्वरूप 1 जनवरी 1995 से विश्व व्यापार संगठन की स्थापना भी कर दी गई। गैट के सभी सदस्यों द्वारा 1 जनवरी 1995 तक विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता ग्रहण न कर पाने के कारण यह निर्णय लिया गया कि गैट का अस्तित्व अभी एक वर्ष बाद (1995) तक बना रहेगा। अन्ततः लगभग पाँच दशक तक विश्व व्यापार की निगरानी करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सजग प्रहरी के रूप में विख्यात गैट को 12 दिसम्बर 1995 को खामोशी के साथ अलविदा कर दिया गया।

गैट के मूल सिद्धान्त

अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए गैर में तीन मौलिक सिद्धान्त स्वीकार किए गए। (1) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार बिना किसी भेद-भाव के होना चाहिए। (2) व्यापार में परिमाणात्मक प्रतिबन्धों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। (३) व्यापारिक वाद-विवादों का निपटारा आपसी विचार विमर्श द्वारा होना चाहिए।

गैट का डंकल प्रस्ताव: भारत ने क्या खोया क्या पाया

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