मध्यान्ह भोजन योजना कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य

वर्ष 1995 में मध्यान्ह भोजन योजना प्रारम्भ हुई थी। तत्समय प्रत्येक छात्र को इस योजना के अर्न्तगत हर माह तीन किलोग्राम गेहूँ या चावल उपलब्ध कराया जाता था। केवल खाद्यान्न उपलब्ध कराये जाने से बच्चों का स्वास्थ्य एवं उनकी स्कूल में उपस्थिति पर अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ा।

तमिलनाडु में देश की सबसे पुरानी मध्यान्ह भोजन योजना संचालित है। वहाँ पर बच्चों को मध्यान्ह में पका पकाया भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। बच्चों को इस योजनार्न्तगत विद्यालयों में मध्यावकाश में स्वादिष्ट एवं रुचिकर भोजन प्रदान किया जाता है। इससे न केवल छात्रों के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है अपितु वह मन लगाकर शिक्षा भी ग्रहण कर पाते हैं। इससे विद्यालय छोड़ने की स्थिति में भी सुधार आया है। भारत सरकार द्वारा निर्देशित किया गया था कि बच्चों को समस्त प्रदेशों में मध्यान्ह अवकाश में पका पकाया भोजन उपलब्ध कराया जाए। कतिपय कारणों से इस योजना के अर्न्तगत पका पकाया भोजन उत्तर प्रदेश में सितम्बर 2004 के बाद ही उपलब्ध कराया जा सका है।

प्रदेश सरकार शिक्षा की विभिन्न योजनाओं में अत्यधिक पूंजी निवेश कर रही है। इस पूंजी निवेश का पूर्ण लाभ तभी प्राप्त होगा जब बच्चे कुपोषण से मुक्त होकर अपनी पूर्ण क्षमता से शिक्षा निर्बाध रूप से ग्रहण करते रहें। मध्यान्ह भोजन योजना इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण कड़ी है। इस योजना के माध्यम से शिक्षा के सार्वभौमीकरण के निम्न लक्ष्यों की प्राप्ति होगी-

1. प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन में वृद्धि करना।

2. बालकों के विद्यालय छोड़ने की प्रवृति को कम करना।

3. उपस्थिति में वृद्धि करना तथा गरीब बालकों को विद्यालय में आने के लिए आकर्षित करना।

4. ग्रामीण स्तर पर रोजगार के अवसर प्रदान करना।

5. विश्व एकता एवं बन्धुत्व को बढ़ावा देना।

6. लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना।

7. धर्म जाति एवं रंगभेद को दूर करना तथा सभी छात्र-छात्राओं को एक स्थान पर भोजन उपलब्ध कराकर उनके मध्य सामाजिक सौहार्द, एकता एवं परस्पर भाई-चारे की भावना जागृत करना।

8. सभी बालकों को पाँच वर्षीय प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करवाना।

9. राष्ट्रीय एवं सामाजिक एकता की स्थापना करना।

10. विद्यालयों में पारिवारिक वातावरण बनाना।

11. अभिभावकों को अपने बालकों को विद्यालय भेजने के लिए आकर्षित करना।

12. समाज एवं विद्यालयों के बीच एक सम्पर्क स्थापित करना।

13. अभिभावकों ग्राम सभा के अधिकारियों/ सदस्यों और समाज का विद्यालय के कार्यों एवं निर्णयों में सहयोग करवाना।

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