आइसोस्टेसी (भूसंतुलन) शब्द ग्रीक भाषा के ‘आइसोस्टेसियॉज’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है संतुलन की स्थिति। आप जानते हैं और आपने ऐसा देखा भी होगा कि पर्वतों के बहुत से शिखर होते हैं और उनकी ऊँचाई भी अधिक होती है। इसी तरह से पठार का ऊपरी भाग सपाट होता है और मैदान समतल होते हैं। पठारों की ऊँचाई सामान्य जबकि मैदानों की बहुत कम होती है, इसके विपरीत समुद्र तलों और खाइयों की गहराई बहुत अधिक होती है। इन उच्चावचों की ऊँचाई में बहुत अन्तर होता है। आप यह भी जानते हैं कि पृथ्वी अपनी धुरी पर परिभ्रमण कर रही है और उसने अपने विविध भूलक्षणों में सन्तुलन बना रखा है। अत: हमारी पृथ्वी को समस्थिति की अवस्था में माना जाता है।
उदाहरण - मान लीजिए आप अपने दोनों हाथों में भिन्न-भिन्न ऊँचाईयों (जैसे 5 और 15 इंच की) वाले लंबवत टुकड़े सीधे पकड़े हुए एक निश्चित दिशा में जा रहे हैं। क्या आपको अपने शरीर और उन दो टुकड़ों के साथ सामंजस्य बिठाने में कोई कठिनाई होती है? निश्चित रूप से लम्बे टुकड़ों की अपेक्षा छोटे टुकड़ें के साथ सन्तुलन बनाए रखना आसान होगा। ऐसा गुरूत्व केन्द्र के कारण होता है। लम्बे टुकड़े की तुलना में छोटे टुकड़े के साथ गुरूत्व केन्द्र आपके हाथ के अधिक पास होगा। इस प्रकार से छोटे धरातलीय लक्षण जैसे मैदान ऊँचे पर्वतों की तुलना में अधिक स्थिर होंगे।
भू सन्तुलन : एअरी के विचार
भू वैज्ञानिक एअरी ने विभिन्न स्तम्भों जैस पर्वत पठार और मैदान आदि के घनत्व को एक जैसा माना है। अत: उसने विभिन्न मोटाइयों के साथ एक समान घनत्व के विचार को सुझाया। हम जानते हैं कि पृथ्वी की ऊपरी परत हल्के पदार्थों से बनी है। इस परत में सिलिका और एल्मुनियम भारी मात्रा में पाए जाते हैं, इसलिए इसे ‘सियाल’ के नाम से जाना जाता है। यह नीचे की परत से कम घनत्व वाला है। एअरी ने माना कि सियाल से बनी भूपर्पटी सिमा (सिलिका और मैग्नेशियम, नीचे की अधिक धनत्व वाली परत) की परत के ऊपर तैर रही है। भूपर्पटी की परत का घनत्व एक समान है जबकि इसके विभिन्न स्तम्भों की ऊँचाई अलग-अलग है। इसलिए ये स्तम्भ अपनी ऊँचाई के अनुपात में दुर्बलता मण्डल में धंसे हुए हैं। इसी कारणवश इनकी जड़ें विकसित हो गई है अथवा नीचे गहराई में सिमा विस्थापित हो गया है।
![एअरी के भू संतुलन के विचार के चित्र एअरी के भू संतुलन के विचार के चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiC7M8DUI2PlncUCwoWL0hH_3EtHYdlRe9f9c91LSBS1cbmK_8T3VuLywBcZXNoCBmOMnOhAyRGE5_toTqzgJ5VzwnJB9gkg2zpIMMtYO07CnevUFTTPDyTZCVOJcixl4bcaguy9XCx237/s320-rw/%25E0%25A4%258F%25E0%25A4%2585%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%2580+%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2587+%25E0%25A4%25AD%25E0%25A5%2582+%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25A8+%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2587+%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%259A%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B0+%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2587+%25E0%25A4%259A%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0.png) |
1- एअरी के भू संतुलन के विचार के चित्र |
![भू संतुलन की स्थिति भू संतुलन की स्थिति](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9QFXl8v6D9j56ehurDIkbeBw7bf4xXMfiAGJTcB6_aoVdWDY_er-x5aMroi7OcRNTWuKKsIpFzIa3R3PTQhVeYwpmmlxaVo2nvrzISHqVliuH7gCZseqF5MdWJVS1DjlpvgaB6qFKkYRF/s320-rw/%25E0%25A4%25AD%25E0%25A5%2582+%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25A8+%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580+%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25A5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BF.jpg) |
2 - भू संतुलन की स्थिति (ए होम्स व डी एल होम्स पर आधारित) |
इस अवधारणा को सिद्ध करने के लिए, एअरी ने विभिन्न आकारों के लकड़ी के टुकड़े लिए और उन्हें पानी में डुबो दिया। (चित्र - 01) सभी टुकड़े एक जैसे घनत्व के हैं। ये अपने आकार के अनुपात में भिन्न-भिन्न गहराई तक पानी में डूबते हैं। इसी प्रकार से पृथ्वी के धरातल पर अधिक ऊँचाई वाले भूलक्षण उसी अनुपात में अधिक गहराई तक धंसे होते हैं जबकि कम ऊँचाई वाले लक्षणों की जड़ें छोटी होती हैं। यह अधिक गहराई तक धंसी हुई जड़ें ही हैं, जो अधिक ऊँचाई वाले भूभागों को स्थिर रखे हुए हैं। उनका विचार था कि, भू-भाग एक नाव की तरह (मैग्मा वाले दुर्बलता मण्डल) अध: स्तर पर तैर रहे है। इस अवधारणा के अनुसार माउँट एवरेस्ट की जड़ समुद्र स्तर से 70, 784 मीटर नीचे होनी चाहिए (8848 × 8 = 70,784)। एअरी की इसी बात को लेकर आलोचना हुई है कि, जड़ का इतनी गहराई पर रहना संभव नहीं है, क्योंकि इतनी गहराई पर विद्यमान उच्च तापमान जड़ के पदार्थों को पिघला देगा।
भू-सन्तुलन : प्रैट के विचार
प्रैट ने विभिन्न ऊँचाईयों के भूभागों को भिन्न-भिन्न घनत्व का माना है। ऊँचे भूभागों का घनत्व कम है, जबकि कम ऊँचाई वाले भूभागों का अधिक। दूसरे शब्दों में ऊँचाई और घनत्व में विपरीत सम्बन्ध है। अगर कोई ऊँचा स्तम्भ है तो उसका घनत्व कम होगा और अगर कोई स्तम्भ छोटा है तो उसका घनत्व अधिक होगा। इसको सही मानते हुए उन्होंने स्वीकार किया कि, विभिन्न ऊँचाईयों के सभी स्तम्भों की क्षतिपूर्ति अध: स्तर की एक निश्चित गहराई पर हो जाती है। इस प्रकार से एक सीमारेखा खींच दी जाती है, जिसके ऊपर विभिन्न ऊँचाईयों का समान दवाब पड़ता है। अत: उसने एअरी के आधार या जड़ अवधारणा को खारिज कर दिया और क्षतिपूरक स्तर की अवधारणा को स्वीकार किया। उसने अपनी अवधारणा को सिद्ध करने के लिए समान भार वाली भिन्न-भिन्न घनत्व की कुछ धातु की छड़ें ली और उन्हें पारे में डाल दिया
![भू-सन्तुलन के प्रैट के विचार का प्रयोग भू-सन्तुलन के प्रैट के विचार का प्रयोग](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgzytDz053VY_Ps697UbCqqiAdPFbxPqsxIWl5v8nVS7VnfNAjzgSH6pJa6APeGlIJ7oN0xMRNt2IHqeBCtGfbP0qfft-BHg4zxG5RLvSwq_R4Hz5mE4OKnFWABLBgidDWnHZKgToTkRU6X/s320-rw/%25E0%25A4%25AD%25E0%25A5%2582-%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25A8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25A8+%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2587+%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%2588%25E0%25A4%259F+%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2587+%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%259A%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B0+%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE+%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%258B%25E0%25A4%2597.jpg) |
1- भू-सन्तुलन के प्रैट के विचार का प्रयोग |
![स्थलमंडलीय तुकडे के क्षतिपूर्ति का चित्र स्थलमंडलीय तुकडे के क्षतिपूर्ति का चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDgj2C4Vfaj5jE3NIUhZ6NdCsKEkPxLgW6AUVTO5eL4aQo9E2piyJfI739qZmrMP5eAiG2UsnKQ7_zMw544z3ch1LMO8GcnCVIQwkxJdY48vQAoE9YGYP-jnXN6ScMc0J3qfCThDjsDMB0/s320-rw/%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25A5%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25AE%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%25A1%25E0%25A4%25B2%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25AF+%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25A1%25E0%25A5%2587+%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2587+%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B7%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%2582%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BF+%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE+%25E0%25A4%259A%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0.jpg) |
2 - स्थलमंडलीय तुकडे के क्षतिपूर्ति का चित्र |
एअरी और प्रैट के विचारों में अन्तर
एअरी के विचार | प्रैट के विचार |
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1. भूपर्पटी के पदार्थों में एक समान घनत्व। | भूपर्पटी के पदार्थों के घनत्व में भिन्नता। |
2. भिन्न-भिन्न गहराई, जिस तक जड़ पहुँचती है। | एक समान गहराई, जिस तक भूपर्पटी का पदार्थ पहुँचता है। |
3. पर्वतों के नीचे गहरी जड़ और मैदानों के नीचे छोटी जड़। | किसी प्रकार की जड़ नहीं परन्तु क्षतिपूरक |
भूमंडलीय भू-संतुलन सामंजस्य
यह बिल्कुल स्पष्ट है कि, पृथ्वी पर पूर्ण भूसंतुलन नहीं है। पृथ्वी अस्थिर है। आन्तरिक शक्तियाँ अक्सर भूपर्पटी के संतुलन को भंग कर देती हैं। एक निश्चित पेटी में नियमित भूकम्प और ज्वालामुखी उद्भेदन असंतुलन को दर्शाते हैं, इसलिए लगातार एक प्रकार के सामंजस्य की आवश्यकता बनी रहती है। आंतरिक शक्तियाँ और उनके विवर्तनिक प्रभाव धरातल पर असंतुलन के कारण हैं परन्तु प्रकृति हमेशा समस्थितिक सामंजस्य स्थापित करने का प्रयत्न करती है। वाह्य शक्तियाँ पृथ्वी के धरातल पर आए अन्तरों को दूर करने का प्रयत्न करती हैं और इस प्रक्रिया में वे ऊँचे भूभागों से पदार्थों को खुरचकर बहुत दूर ले जाकर निचले भागों में निक्षेपित कर देती हैं। इस प्रक्रिया में निक्षेपण के स्थान पर धंसाव द्वारा नीचे के पदार्थों के प्रवाह के कारण एवं खुरचने के स्थान पर अनाच्छादन के अनुपात में उत्थान द्वारा भूमंडलीय संतुलन बना रहता है।
![भू-संतुलन सामंजस्य भू-संतुलन सामंजस्य](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjKtIBxevtsQRq4d83iD3rPrXnZwYth_96J44wgCJ8NK_XOS8D7pSWh0ZjLyrp-0r9zSmrPjDpADpz7TDkDqB5YHGbOwDMdi8E83a4JN3l65FVJtX5q6NdKAyj06FmH2KGKWhTfLXCDorox/s320-rw/%25E0%25A4%25AD%25E0%25A5%2582-%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25A8+%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AE%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%259C%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AF.jpg) |
भू-संतुलन सामंजस्य का रचना तंत्र |