पृथ्वी की आंतरिक संरचना

पृथ्वी की आंतरिक संरचना को समझने में जिन स्रोतों की भूमिका प्रमुख हे उनको हम दो भागों में विभाजित कर सकते है। 
  1. प्रत्यक्ष श्रोत :- जिनके अन्तर्गत खनन से प्राप्त प्रमाण एवं ज्वालामुखी से निकली हुयी वस्तुयें आती है।
  2. अप्रत्यक्ष प्रमाण :- जिसके अन्तर्गत (1) पृथ्वी के अन्दर तापमान दबाव एवं घनत्व में अन्तर (2)अन्तरिक्ष से प्राप्त उल्कापिंड (3) गुरूत्वाकर्षण (4) भूकम्प संबंधी क्रियायें आदि आते है।
  3. भूकम्पीय तंरगे - प्राथमिक तरंगे एवं द्वितीयक तरंगें भी भूगर्भ को समझने में सहायक है।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

पृथ्वी की आंतरिक परतों का वर्गीकरण और उनकी मोटाइयों को चित्र में दर्शाया गया है। पृथ्वी की सबसे अधिक गहराई वाली परत को क्रोड कहते हैं। 

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

पृथ्वी का क्रोड मुख्यत: क्रोड मुख्यत: भारी पदार्थो जैसे निकल व लोहे से बना है? पृथ्वी के धरातल से क्रोड मुख्यत: तीन परते है :-
  1. भूपर्पटी :- यह पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग है। यह ध्रातल से 100 कि.मी की गहराई तक पाया जाता है। इस परत की चट्टानो का घनत्व 3 ग्राम प्रति घन से. मी. है।
  2. मैटंल :- भूपर्पटी से नीचे का भाग मैटंल कहलाता है। यह भाग भूपर्पटी के नीचे से आरम्भ होकर 2900 कि.मी गहराई तक है। मैटंल का ऊपरी भाग दुबर्ल ता मंडल हे इस मंडल की चट्टाने जले ी की तरह की सरं चना की है। यह भाग 400 कि.मी. तक है। भूपर्पटी एवं मैटंल का ऊपरी भाग मिलकर स्थल मंडल बना है। मेटंल का निचला भाग ठोस अवस्था में हे इसका घनत्व लगभग 3.4 ग्राम प्रति घन से.मी. है।
  3. क्रोड :- मंटेल के नीचे क्रोड है जिसे हम आन्तरिक व बाहय क्रोड कहते है बाहय क्रोड तरल अवस्था में हे आन्तरिक क्रोड ठोस है। इसका घनत्व 13 ग्राम प्रति घन समे ी लगभग है। क्रोड निकिल व लोहे जैसे भारी पदार्थो से बना है।
इसका घनत्व 3.1 से 5.1 तक है। मैंटल पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत से घिरा है। इसे स्थलमण्डल कहते हैं, जिसका घनत्व 2.75 से 2.90 है। स्थलमण्डल के प्रमुख निर्माणकारी तत्व सिलीका (सि) एल्यूमीनियम (एल) हैं। इसलिए इस परत की स्याल (सिलीका+एल्यूमीनियम) भी कहते हैं। स्थलमण्डल के ऊपरी भाग को भूपर्पटी कहते हैं। पृथ्वी की ​ त्रिज्या 6370 कि. मी. है। 

भूगर्भ का तापमान, दबाव तथा घनत्व

तापमान  

गहरी खानों और गहरे कूपों से जानकारी मिलती है कि पृथ्वी के भीतर गहराई बढ़ने के साथ तापमान बढ़ता है। यह बात ज्वालामुखी के उद्गारों में पृथ्वी के अन्दर से निकले अत्यन्त गर्म लावा से भी सिद्ध होती है कि भूगर्भ की ओर तापमान बढ़ता जाता है। विभिन्न प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि भूगर्भ में ध्धरातल से केन्द्र की ओर तापमान बढ़ने की दर एक समान नहीं है। कहीं पर यह तेज है और कहीं पर धीमी। प्रारम्भ में तापमान बढ़ने की औसत दर प्रत्येक 32 मीटर की गइराई पर 10 सेल्सियस है। तापमान की इस स्थिर वृद्धि के आधार पर 10 किलोमीटर की गहराई में तापमान धरातल की अपेक्षा 3000 से. अधिक होना चाहिये और 40 किलोमीटर की गहराई में इसे 12000 से. होना चाहिये। तापमान की इस वृद्धि दर के अनुसार भूगर्भ के सभी पदार्थ पिघली हुई अवस्था में होने चाहिये। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। चट्टानें जितनी अधिक गहराई में होंगी उनके पिघलने का तापमान-बिन्दु उतना ही ऊँचा होगा। इसका कारण यह है कि भूगर्भ में नीचे दबी शैलों पर ऊपर की शैलों का इतना अधिक दाब होता है जिससे उनके पिघलने का तापमान-बिन्दु धरातल की तुलना में बहुत अधिक हो जाता है। 

उदाहरण के लिये बैसाल्टी लावा शैल धरातल पर 12500 से. पर पिघलती है परन्तु वही शैल भूगर्भ में 32 किलोमीटर की गहराई पर 14000 से. तापमान पर पिघलेगी। भूकम्प की तरंगों के व्यवहार से भी यह बात सिद्ध होती है। उनसे इस बात की भी पुष्टि होती है कि भूगर्भ में तापमान के बदलने के साथ पदार्थों की संरचना में भी परिवर्तन आता है। भूगर्भ के ऊपरी 100 किलोमीटर में तापमान के बढ़ने की दर 120 से. प्रति किलोमीटर है, अगले 300 किलोमीटर में यह वृद्धि-दर 200 सेप्रति किलोमीटर है और इसके बाद यह वृद्धि-दर केवल 100 से. प्रति किलोमीटर रह जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि धरातल के नीचे तापमान के बढ़ने की दर पृथ्वी के केन्द्र की ओर घटती जाती है। इस गणना के अनुसार पृथ्वी के केन्द्र का तापमान लगभग 40000 से 50000 से. के बीच है। भूगर्भ में इतना ऊँचा तापमान उच्च दाब के फलस्वरूप हुई रासायनिक प्रक्रियाओं और रेडियोधर्मी तत्वों के विखंडन के कारण ही संभव है।

दबाव - 

भूगर्भ में ऊपरी परतों के बहुत अधिक भार के कारण पृथ्वी के सतह से केन्द्र की ओर जाने पर दबाव भी निरन्तर बढ़ता जाता है। पृथ्वी के केन्द्र पर अत्यधिक दबाव है। यह दबाव समुद्र तल पर वायुमंडल के दाब से 30-40 लाख गुना अधिक है। केन्द्र पर उच्च तापमान होने के कारण यहां पाये जाने वाले पदार्थों को द्रव रूप में होना स्वाभाविक है, परन्तु इस ऊपरी भारी दबाव के कारण यह द्रव रूप ठोस का आचरण करता है। सम्भवत: इसका स्वरूप प्लास्टिक नुमा है।

घनत्व - 

पृथ्वी के केन्द्र की ओर निरन्तर दबाव के बढ़ने और भारी पदार्थों के होने के कारण उसकी परतों का घनत्व भी बढ़ता जाता है। अत: सबसे गहरे भागों में अत्यधिक घनत्व वाले पदार्थों का होना स्वाभाविक है।

भूपर्पटी के पदार्थ

स्थलमंडल का सबसे ऊपर भाग भूपर्पटी कहलाता है। यह पृथ्वी का सबसे महत्वपूर्ण भाग है; क्योंकि इसकी ऊपरी सतह पर मानव रहते हैं। जिन पदार्थों से भूपर्पटी बनी है, उन्हें शैल कहते हैं। शैलें विभिन्न प्रकार की होती हैं। शैलें ग्रेनाइट की तरह कठोर, चीका मिट्टी की तरह मुलायम अथवा बजरी के समान बिखरी होती है। शैलें विभिन्न रंग, भार और कठोरता लिए होती है। शैलें खनिजों से बनी हैं। वे एक या एक से अधिक खनिजों का मिश्रण हैं। दूसरी ओर खनिज एक या एक से अधिक तत्वों के निश्चित अनुपात में मिलने से बने हैं। खनिजों में एक निश्चित रासायनिक संगठन होता है। भूपर्पटी 2000 से भी अधिक खनिजों से बनी है, परन्तु इनमें से केवल 6 खनिजों की अधिकता है। इन्हीं का पृथ्वी की ऊपरी परत के निर्माण में विशेष योग है। इन 6 खनिजों के नाम - फेल्सपार, क्वाटर््ज, पाइराक्सीन, एम्फीबोल, अभ्रक और ओलीबीन हैं।

ग्रेनाइट एक कठोर शैल है। इसके निर्माणकारी खनिज क्वार्टज, फेल्सपार और अभ्रक हैं। इन खनिजों के अनुपात में भिन्नता होने से ग्रेनाइट के रंग और उसकी कठोरता में अन्तर आ जाता है। जिन खनिजों में धात्विक अंश होता है, उन्हें धाित्त्वक खनिज कहते हैं। हैमेटाइट एक प्रमुख लौह-अयस्क है। यह धात्विक खनिज है। अयस्क धात्विक खनिज होते हैं, जिनसे धातुओं का निकालना लाभकारी होता है। शैलों का निर्माण खनिजों से हुआ है। इनका मानव जीवन में बहुत अधिक महत्व है।

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